नई दिल्ली, लाल सिंह चड्ढा अब रिलीज़ होने से पहले कई सवालों और विवादों से घिर गई है. फ़िल्म को लेकर जितनी अपेक्षा की जा रही थी उतना अच्छा रिस्पॉन्स उसके ट्रेलर को नही मिल रहा है उल्टा लोग अमीर खान को ऑस्कर विनिंग फ़िल्म की कॉपी बनाने को लेकर भी ट्रोल कर रहे हैं. […]
नई दिल्ली, लाल सिंह चड्ढा अब रिलीज़ होने से पहले कई सवालों और विवादों से घिर गई है. फ़िल्म को लेकर जितनी अपेक्षा की जा रही थी उतना अच्छा रिस्पॉन्स उसके ट्रेलर को नही मिल रहा है उल्टा लोग अमीर खान को ऑस्कर विनिंग फ़िल्म की कॉपी बनाने को लेकर भी ट्रोल कर रहे हैं. सोचने वाली बात ये है कि इस फ़िल्म को बनाने में 14 सालों का समय क्यों लगा? कुछ पहलुओं को सोचें तो यह संभव है कि फ़िल्म को हाइप करने के लिये इसको बनाने और रिलीज़ करने में इतना समय लिया जा रहा हो.
जनता बॉलीवुड से अधिक अब बहुभाषीय फिल्मों की ओर भाग रही है. जहां हिंदी सिनेमा मात्र हंसी का पात्र बना हुआ है. इसका एक बड़ा कारण फिल्मों का कंट्रोल C से कंट्रोल V होना भी है. बॉलीवुड लगातार अपना नयापन खो रहा है. जहां अब बड़े सितारे भी अपनी फिल्मों के लिये पुरानी या अलग भाषा की मास्टरपीस कहानियों का सहारा लेने लगे हैं. ऐसा ही कुछ हो रहा है आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा के साथ जो प्रसिद्ध ऑस्कर विजेता फिल्म ‘फॉरेस्ट गम्प’ पर आधारित है, जो स्वयं विंस्टन ग्रूम द्वारा रचित इसी नाम के पुस्तक पर आधारित है।
फिल्म में लाल सिंह चड्ढा एक मेडिकल स्थिति का शिकार व्यक्ति है जो इस दुनिया को अलग ही नज़र से देखता है. ये फिल्म इसी साल 11 अगस्त को रैली होगी. बता दें, आमिर खान का दावा है कि इस फिल्म को बनाने में उन्होंने करीब 14 साल का समय लिया है. पिछले दिन ही आईपीएल के फाइनल में इस फिल्म का ट्रेलर रिलीज़ किया गया है. जहां आमिर के फैंस को छोड़ दें तो फिल्म की पहली झलक अपनी उम्मीदों पर खरी उतरती नहीं दिखती.
लाल सिंह चड्ढा को लेकर जनता में एक्साइटमेंट फैलाने की कोशिश की जा रही है. यह साफ़ दिखाई दे रहा है. फिल्म को पहले ही रिलीज़ करने के लिए इतनी डेट्स का टाला जाना, जैसे कबीर खान की ‘83’ के साथ किया गया था. सोशल मीडिया यूज़र्स आमिर के इस अभिनय को उनकी पुरानी फिल्मों के किरदारों का मिला जुला रूप भी बता रहे हैं. फिल्म में एक नए किरदार कम, और ‘पीके’ एवं ‘धूम 3’ के ‘समर’ की झलक अधिक दिखती है. तो सवाल ये है कि क्या सच में किसी एक फिल्म को बनाने के लिए 14 सालों का समय लग सकता है वो भी तब जब आप इसे रीमेक के रूप में बना रहे हो. हालाँकि जवाब कुछ भी हो यह तो साफ़ है कि हिंदी सिनेमा अब अपनी ओरिजिनल सामग्री का महत्व धूमिल कर रहा है.