कंगना रनौत की फिल्म मणिकर्णिका झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से प्रेरित है. टीजर को दमदार रिव्यू मिलने के बाद आइए जानते है मणिकर्णिका कैसे बनीं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई. झांसी के मराठा शासित महाराजा गंगाधर राव निवालकर आठ साल की उम्र में शादी के बाद उनका नाम मनुबाई से बदलकर रानी लक्ष्मीबाई रखा गया. अपनी सूझ बूझ से लक्ष्मीबाई झांसी के किले के अहम फैसलों को लेनी लगी जिससे ब्रिटिश उत्ताराधिकारियों को किले पर कब्जा करना मुश्किल हो गया. लेकिन लक्ष्मीबाई के पति के कर्ज को ब्रिटिश सम्राज्य ने रानी के सालाना खर्च से वसूलने का फरमान जारी कर दिया जिससे रानी लक्ष्मीबाई को झांसी का किला छोड़कर झांसी महल में रहना पड़ा.
बॉलीवुड डेस्क, मुंबई. रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर बनी कंगना रनौत की फिल्म मणिकर्णिका द क्वीन ऑफ झांसी के टीजर रिलीज के बाद से एक बार दर्शकों के सामने मनुबाई का जीवन और आजादी की लड़ाई के लिए अंग्रेजों के साथ उनके साहस और वीरता की कहानी देखने को मिल रही है. कंगना की फिल्म तो अगले साल 25 जनवरी 2019 को रिलीज होगी लेकिन उससे पहले हम आपको बताते है झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पूरी कहानी. रानी लक्ष्मीबाई उर्फ मणिकर्णिका मराठा शासित राज्य झांसी की रानी थी जो उत्तर मध्य भारत में स्थित है. रानी लक्ष्मीबाई 1857 की पहली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थी जिन्होंने अल्पाई में ही ब्रिटिश सम्राज्य से संग्राम किया था.
लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी जिले के भदैनी नामक नगर में हुआ था. उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था जिस पर कंगना रनौत की फिल्म का नाम रखा गया है. लेकिन मणिकर्णिका को प्यार से मनुबाई भी कहा जाता था. मनुबाई के पिता का नाम मोरोपंत तांबे था. मनु की मां के देहांत के बाद उनके पिता उन्हें पेशवा के दरबार में ले गए जहां सुदंर और चंचल मन वाली मनु ने सबका मन मोह लिया. मई 1842 में 8 साल की उम्र में ही मणिकर्णिका का विवाह झांसी के मराठा शासित महाराजा गंगाधर राव निवालकर के साथ हुआ जिसके बाद वह झांसी की रानी कहलाई गई.
1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम दामोदर राव रखा गया लेकिन 4 साल की उम्र में बेटे के निधन के बाद राजा गंगाधर राव ने एक बेटे को गोद लिया. लेकिन राज्य का खजाना जब्त करने के बाद ब्रिटिश उत्तराधिकारियों ने मणिकर्णिका के पति के कर्ज को रानी लक्ष्मीबाई के सालाना खर्च से वसूल करने लगे. इस वजह से रानी को झांसी का किला छोड़कर झांसी के महल में जाना पड़ा. झांसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया. 1857 में झांसी के किले से भागते समय मणिकर्णिका के पसंदीदा घोड़े बादल ने अहम भूमिका निभाई थी. 17 जून 1858 में ग्वालियर के बांसकोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति प्राप्त की.
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