Kaashi Movie Review: शरमन जोशी की फिल्म काशी, ए सर्च फॉर गंगा सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. इससे पहले काशी फिल्म का ट्रेलर दर्शकों ने काफी पसंद किया ही था. जानिए फिल्म की कहानी और एक्टिंग में कितना दम है.
बॉलीवुड डेस्क, मुंबई. काशी, ए सर्च फॉर गंगा का ट्रेलर देखकर ही आपको लगेगा कि काफी दम है और कुछ सस्पेंस भी। फिल्म के पहले सीन से आप इस मूवी से जुड़ते चले जाते हैं। एक के बाद एक घटनाएं और इंटरवल तो ऐसे सीन के साथ होता है कि आप अगली सीन शुरू होने के लिए शायद ही पॉपकॉर्न या वॉशरूम के लिए सीट छोड़ें, लेकिन जब मूवी खत्म होती है तो हॉल में बैठे आधे लोगों को लगता है कि चलो ठीक है, तो बाकी आधों को लग सकता है कि क्या साले हम ही मिले थे फिरकी लेने के लिए।
आमतौर पर थ्री ईडियट जैसी मल्टी स्टारर फिल्में करने वाले शरमन जोशी कभी कभी सोलो फिल्मों में भी हाथ आजमा लेते हैं, ये मूवी भी उसी दिशा में उठाया गया एक कदम था। सो शरमन ने पूरी जान लगा दी, जो दिखती भी है, उनके गेटअप से लेकर, उनकी बोलचाल, लहजे और एक्टिंग से भी। डायरेक्टर धीरज कुमार और राइटर मनीष ने ये जान कुछ जरुरत से ज्यादा लगा दी, फिल्म को सस्पेंस से इतना भर दिया कि कई बार लॉजिक लगाना भी बेकार सा लगेगा।
फिल्म की कहानी है एक ऐसे युवा काशी (शरमन जोशी) की जो वाराणसी के तट पर डोम का काम करता है, यानी शवों के अंतिम संस्कार का, लेकिन जब वो लखनऊ से आई एक पत्रकार देविना (ऐश्वर्या दीवान) को गुंडों से बचाता है, तो वो उसे अपना दोस्त बना लेती है, धीरे धीरे दोनों एक दूसरे से प्यार भी करने लगते हैं। काशी उसे अपने मां बाप और बहन गंगा से भी मिलवाता है। एक दिन देविना उसे रात में ढूंढते हुई आती है और कहती है कि गंगा अभी तक घर नहीं पहुंची है, मां बाप परेशान है, तो वो उसे ढूंढने निकलता है। थाने में शिकायत भी करता है, अगले दिन कॉलेज जाता है तो प्रिंसिपल उसे कहती है कि हमारे यहां तो गंगा नाम की लड़की पढ़ती ही नहीं।
लेकिन गंगा की एक सहेली उसे बताती है कि गंगा स्थानीय नेता (गोविंद नामदेव) के बेटे अभिमन्यु पांडे से प्यार करती थी और वो प्रेग्नेंट हो गई थी, इसलिए दोनों लोग कोर्ट भी गए थे शादी की अर्जी लगाने, उसके बाद वो गायब हो गई। काशी देविना को लेकर अभिमन्यु का पता लगाकर मसूरी के होटल में पहुंचता है, जहां अभिमन्यु जब ये कहता है कि वो गंगा को जानता ही नहीं तो गुस्से में काशी उसे उठाकर होटल की छत से नीचे फेंक देता है, अभिमन्यु मौके पर ही मर जाता है। इधऱ गंगा की लाश वाराणसी में मिलती है।
इंटरवल तक की ये कहानी आपको सीट से चिपका देती है, लेकिन उसके बाद शुरू होता है कोर्टरूम ड्रामा। विपक्ष का वकील मिश्रा (अखिलेन्द्र मिश्रा) ये दावा करता है कि गंगा नाम की कोई लडकी थी ही नहीं, तो काशी का वकील सिन्हा (मनोज जोशी) अभिमन्यु की हत्या के एक एक गवाह को झूठा साबित कर देता है। फिर कहानी में आता है एक केमिकल लोचा और क्लाइमेक्स के बाद ही आपको पता चलेगा कि आपकी फिरकी ली गई है, या पैसे वसूल हो गए हैं।
हालांकि फिल्म में गोविंद नामदेव, अखिलेन्द्र मिश्रा, मनोज जोशी, मनोज पाहवा और शरमन जोशी जैसे सशक्त कलाकारों ने एक्टिंग तो काफी अच्छी की है, केरल की रहने वाली ऐश्वर्या दीवान जो कई साउथ फिल्मों में काम कर चुकी हैं, भी शरमन जोशी के अपोजिट उतनी बुरी नहीं लगीं। फिल्म का म्यूजिक भी ठीक है, दो गाने अच्छे बन पड़े हैं। वाराणसी की लोकेशंस भी काफी उम्दा तरीके से शूट की गई हैं, लेकिन फिल्म का जो सबसे मजबूत पक्ष था यानी कहानी और उसके ट्विस्ट, वही उसके लिए घातक साबित हो सकते हैं। कुछ को अच्छे लग सकते हैं और कुछ एकदम खारिज कर सकते हैं, केके मनन की मूवी ‘वोदका डायरीज’ की तरह।
स्टार रेटिंग—2.5
स्टार– शरमन जोशी, ऐश्वर्या देवन, मनोज जोशी, मनोज पाहवा, अखिलेन्द्र मिश्रा
डायरेक्टर- धीरज जोशी
अवधि– 2 घंटा 5 मिनट
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