बॉलीवुड डेस्क, मुंबई. जॉन अब्राहम के लीड रोल वाली एक फिल्म का टाइटिल आपको काफी अजीब सा लगेगा. ये टाइटिल है ‘रोमियो अकबर वॉल्टर’. अब इस टाइटल में इस्तेमाल है तीनों नामों के पहले शब्द मिलाकर नया शब्द बनाइये, तो बनेगा RAW यानि रॉ, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग. देश की वो सबसे बड़ी संस्था, जिसके एजेंट्स विदेशी मोर्चों पर लगातार देश के लिए पैदा होने वाले खतरों को नाकाम करने में जुटे रहते हैं, अपनी जान की बाजी लगाकर. माना जा रहा है कि मूवी ‘रॉ’ के सबसे बड़े चेहरे की बॉयोपिक है.
अब जानिए कौन था ‘रॉ’ का सबसे बड़ा जासूस? नाम था रामेश्वर नाथ काव यानि आर एन काव. कहते हैं कि पूरी नौकरी के दौरान उनका फोटो केवल 2 बार ही लेने में लोग सफल रहे. वो इतना हैंडसम और स्मार्ट था कि जॉन अब्राहम भी उसके आगे कमतर लगेंगे। काव कश्मीरी मूल के थे, परिवार बनारस में रहता था. ब्रिटिश इंडियन पुलिस सर्विस में चुने जाने के बाद वो कानपुर में एएसपी रहे और बाद में आईबी में चुन लिए गए.
आईबी की एक छोटी सी फॉरेन यूनिट ही विदेशी मोर्चों पर फॉरेन खुफिया मिशन में रहती थी. लेकिन 1962 की जंग में चीन से हार के बाद लगा कि भारत में अपनी कोई ऐसी स्वतंत्र खुफिया एजेंसी होनी चाहिए जो विदेशी मोर्चों पर काम कर सके. 1965 के भारत पाक युद्ध के बाद इसकी जरूरत और मजबूत हो गयी. इंदिरा गांधी के कहने पर तत्कालीन डिप्टी डॉयरेक्टर आईबी आर एन काव ने एक प्रस्ताव तैयार करके उन्हें दिया. इंदिरा गांधी को इतना पसंद आया कि फ़ौरन हाँ कर दिया और काव को ही उसका हेड बना दिया गया, इस तरह 1968 में रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानि रॉ की स्थापना हुई.
रॉ के जासूसों ने 1971 की जंग में बड़ा रोल अदा किया, रॉ ने कई देशों में भारत के खिलाफ हो रही साजिशों को नाकाम किया। कई बार विवादों में भी रहे रॉ के जासूस क्योंकि उन्हें काफी फ्री हैण्ड और संसाधन मिलते हैं. काव बाद में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के सिक्योरिटी एडवाइजर भी रहे. नेहरू की सिक्युरिटी में वो रहे ही थे. काफी शर्मीले थे, इसलिए मीडिया से दूर रहते थे. लेकिन चाहे वो ऑपरेशन ब्लू स्टार हो या चीनी पीएम के एयर इंडिया प्लेन में बम लगाने की घटना, इंदिरा की हर मुश्किल में उन्होंने अहम रोल निभाया.
अब रॉबी ग्रेवाल ‘रोमियो अकबर वॉल्टर’ नाम की फिल्म बना रहे हैं. पहले सुशांत राजपूत को और फिर जॉन अब्राहम को साइन किया. जॉन के साथ उन्होंने 80 लोकेशन्स पर शूट किया है. इस मूवी में उन्होंने जॉन को 18 गेटअप दिए हैं, फिल्म के नाम से भी पता चलता है कि ये जॉन के अलग अलग किरदार होंगे जो उन्होंने बतौर रॉ एजेंट निभाए होंगे।.
हालाँकि रॉबी और जॉन दोनों ये तो मानते हैं कि फिल्म रॉ के ऊपर है, लेकिन ये कहीं नहीं बता रहे कि ये फिल्म काव की बॉयोपिक हो सकती है. लेकिन जिस तरह से फिल्म के लिए 70-80 के दशक की कारों और सेट का इस्तेमाल किया गया है, और काफी शूटिंग कश्मीर में की गयी है. उससे साफ लगता है कि ये मूवी बिना काव के किरदार के हो ही नहीं सकती क्योंकि काव ने ना केवल रॉ को खड़ा किया बल्कि 8-9 साल तक उसे संभाला भी और शायद सबसे उथल पुथल वाले दौर में. ऐसे में ये साफ़ लगता है कि ये मूवी आर एन काव के खुफिया ऑपरेशन्स को लेकर ही है.
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