नई दिल्ली. अमिताभ बच्चन का नाम भले ही किसी के साथ भी जोड़ा जाता रहा हो, लेकिन सच ये है कि जया बच्चन से उनकी दोस्ती शादी से पहले ही इतनी गहरी हो गई थी कि दोनों ही बिजनेस पार्टनर बन गए थे. दोनों ने एक फिल्म प्रोडक्शन हाउस ही शुरू कर दिया. इस प्रोडक्शन हाउस का नाम और उसके बैनर तले बनाई गई फिल्म दोनों की ही कहानी काफी दिलचस्प है और जया बच्चन के जन्मदिन से बेहतर कोई मौका नहीं है उसे जानने का. इस लेख में आप जानेंगे दोनों के फिल्मी साथ की कई ऐसी कहानियां जिनके बारे में आपको जानकारी नहीं होगी.
जया बच्चन की पहली ही हिंदी फिल्म में नजर आए थे अमिताभ बच्चन और वो फिल्म थी ‘गुड्डी’. 1971 में रिलीज हुई ये फिल्म जिसमें पहली बार जया बच्चन का एक फुल लेंथ रोल था और वो इसमें फिल्म स्टार धर्मेन्द्र की दीवानी थीं, चूंकि धर्मेन्द्र इसमें खुद का ही रोल कर रहे थे तो फिल्मी दुनिया के सीन भी दिखाए जाने थे. तो उसमें कई एक्टर्स गेस्ट रोल में थे, जिनमें राजेश खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, विश्वजीत, दिलीप कुमार, अशोक कुमार, माला सिन्हा, नवीन निश्चल आदि के साथ साथ अमिताभ बच्चन ने भी एक छोटा सी गेस्ट एपीयरेंस दी थी. बहुत कम लोगों को पता होगा कि इस फिल्म के हीरो पहले अमिताभ चुने गए थे, लेकिन कुछ रील शूट करने के बाद हृषिकेश मुखर्जी ने उन्हें फिल्म से हटाकर एक नए लड़के को ले लिया. दरअसल हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘आनंद’ में काका के साथ सेकेंड हीरो के तौर पर थे अमिताभ, लेकिन वो फिल्म सुपरहिट हो गई और अमिताभ को हर कोई जान गया था. जबकि गुड्डी के लिए उन्हें वो हीरो चाहिए था, जिसे कोई ना जानता हो. उन्होंने अमिताभ से कहा, ऐसा नहीं है कि तुम फिल्म में नहीं हो, लेकिन हीरो नहीं हो. अमिताभ का गेस्ट अपीयरेंस तभी रखा गया था.
जया की अगली फिल्म में भी अमिताभ बच्चन ने गेस्ट एपीयरेंस दी, ये फिल्म थी ‘अपना घर’. इस फिल्म में जया के हीरो थे वरुण धवन के ताऊ और डेविड धवन के बड़े भाई अनिल धवन, बासु चटर्जी की ये फिल्म 1972 में रिलीज हुई थी. इसी साल अमिताभ जया की तीसरी फिल्म में नजर आए, वो थी हृषिकेश मुखर्जी की ही ‘बावर्ची’, जिसमें राजेश खन्ना जया भादुरी के साथ लीड रोल में थे. अमिताभ बच्चन का यूं तो कोई रोल नहीं था, लेकिन इस फिल्म में अमिताभ बच्चन सूत्रधार थे, यानी फिल्म में अमिताभ बच्चन की आवाज गूंजती रहती है. ‘भुवनसोम’ के बाद बतौर सूत्रधार अमिताभ की दमदार आवाज का दूसरी बार किसी फिल्म में इस्तेमाल किया गया था. ‘आनंद’ के बाद राजेश खन्ना और अमिताभ दोनों की ये दूसरी फिल्म थी, लेकिन अमिताभ परदे पर नजर नहीं आए.
इस तरह से अमिताभ और जया की लीड जोड़ी बनने से पहले वो तीन फिल्मों में साथ साथ काम कर चुके थे. 1972 में ही उनकी पहली फिल्म जो बतौर जोड़ी साथ आई वो थी ‘बंशी बिरजू’, डायरेक्टर प्रकाश वर्मा की इस फिल्म में जया बंशी बनी थीं और बच्चन बिरजू. आपको ‘बंटी और बबली’ की याद आ गई होगी. इस फिल्म में अमिताभ के दोस्त और महमूद के भाई अनवर अली ने भी काम किया था, फिल्म से दोनों को ही कोई खास फायदा नहीं हुआ. अमिताभ की तब तक आनंद, रेशमा और शेरा, बॉम्बे टू गोवा जैसी फिल्में आ चुकी थीं तो जया की गुड्डी, जवानी दीवानी, परिचय और बावर्ची जैसी फिल्में आ चुकी थीं. पहली बार जया ने थोड़ा अलग किस्म का किरदार किया था, वो एक प्रॉस्टीट्यूट के रोल में थी.
1972 में ही अमिताभ और जया की जोड़ी वाली दूसरी फिल्म रिलीज हुई, फिल्म का नाम था ‘एक नजर’. जिसके डायरेक्टर थे बीआर इशारा. अमिताभ एक मशहूर वकील के कवि हृदय बेटे के रोल में थे. अमिताभ को जया पसंद आ जाती हैं. इस फिल्म में भी जया जिस्म के धंधे वाले लोगों से जुडी थीं. वो सड़क के संजय दत्त की तरह जया को गंदगी से निकालने की कोशिश करते हैं, इसी दौरान किसी का खून होता है और इलजाम जया के सर आता है और अमिताभ के पब्लिक प्रॉसीक्यूटर बाप को मौका मिलता है जया पर अपनी गुस्सा निकालने का. इसी फिल्म से पहली बार रजा मुराद ने बॉलीवुड में डेब्यू किया था. वो रोल भी उन्हें तब मिला जब शत्रुघ्न सिन्हा ने रोल छोड़ दिया था. इसी फिल्म में पहली और आखिरी बार अमिताभ बच्चन के लिए महेन्द्र कपूर ने अपनी आवाज दी थी.
सबसे दिलचस्प बात थी कि इसी फिल्म के सैट से पहली बार अमिताभ और जया के अफेयर की खबरे उड़ी, जो नादिरा के हवाले से थीं. हालांकि दोनों की जोड़ी परदे पर कोई कमाल नहीं दिखा पा रही थी. इन दोनों के बाद अमिताभ की ‘रास्ते का पत्थर’ भी कोई खास नहीं चली. अमिताभ और जया दोनों को ही एक सुपरहिट की दरकार थी, जिसका मौका मिला उन्हें ‘जंजीर’ से, देवआनंद के लिए लिखी गई जंजीर को देव, राजकुमार जैसे कई हीरोज ने किसी ना किसी वजह से मना किया, लेकिन इसी फिल्म के जरिए प्रकाश मेहरा और सलीम जावेद की जोड़ी ने अमिताभ को बॉलीवुड के एंग्री यंग मैन के रूप में स्थापित कर दिया. जया का भी बड़ा दमदार रोल था. हालांकि अमिताभ और प्राण ने भी पहली बार साथ काम किया था, और दोनों की ट्यूनिंग लोग आज भी नहीं भूलते. प्राण ने अपनी बायोग्राफी में दावा किया है कि ये रोल अमिताभ को उनकी वजह से मिला था.
जंजीर की सफलता के बाद उसी साल रिलीज हुई ‘अभिमान’ को लोग आमतौर पर उनकी निजी जिंदगी से जुड़ी फिल्म मानते हैं, लेकिन कहा जाता है कि इस फिल्म का आइडिया किशोर कुमार और उनकी पत्नी रूमा घोष की जिंदगी की कहानी से लिया गया था. हालांकि कुछ लोग रवी शंकर और अन्नपूर्णा देवी की कहानी से जोड़ते हैं. इस फिल्म का नाम पहले ‘राग रागिनी’ थी, बाद में ‘अभिमान’ कर दिया गया था. इस फिल्म को प्रोडयूस करने के लिए अमिताभ और जया ने बनाई अपनी कंपनी अमिया प्रोडक्शंस. अमिया यानी AMIYA, यानी अमिताभ का ‘अमि’ और जया का ‘या’. डायरेक्शन के लिए उन्होंने साइन किया अपने गॉडफादर ऋषिकेश मुखर्जी को. लेकिन कंपनी के प्रमोटर बनाए गए उन दोनों के सेक्रेटरीज. लेकिन आज उस फिल्म के राइट्स बच्चन परिवार के पास नहीं है. बच्चन ने एक बार ब्लॉग में इसको लेकर अपनी निराशा भी व्यक्त की थी, उन्होंने लिखा था, ‘’ Abhimaan .. the wonderful moments spent during the making of this everlasting story and film. It was made under the understanding of AMIYA, a production house both Jaya and I set up very early in our career .. a production which we gave over to our respective secretaries to run .. who then took claim over it and which has remained that way till date .. sad .. but that has been the results of many creative inputs of artists never getting any rights for the future, in ventures where they have made the contribution but never been given commercial right ..!’’
फिल्म भारत से ज्यादा श्रीलंका में पसंद की गई और कोलम्बो के एम्पायर सिनेमा में पूरे 590 दिन तक चलती रही थी. म्यूजिक पर बेस्ड इस फिल्म में एसडी वर्मन और मजरूह सुल्तानपुरी ने गानों में अपनी जान लगा दी थी। जहां अमिताभ को ‘जंजीर’ से पहली बार फिल्म फेयर नॉमिनेशन मिला, अवॉर्ड क्यों नहीं मिला इसका खुलासा अपनी बायोग्राफी ‘खुल्लमखुल्ला’ में पिछले साल ऋषि कपूर ने किया, कि उन्होंने वो अवॉर्ड अपनी फिल्म ‘बॉबी’ के लिए खरीद लिया था. वहीं जया को पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड ‘अभिमान’ के लिए मिला. इसी साल यानी 1973 में दोनों ने शादी कर ली.
1975 में दोनों की एक साथ तीन फिल्में आईं, चुपके चुपके, मिली और शोले. तीनों की शूटिंग के दौरान जया बच्चन प्रेग्नेंट थीं, इसलिए ऐसे रोल्स किए जिसमें भाग दौड़ ज्यादा ना हो. ऐसे सीन अगर थे भी तो या तो बहुत पहले फिल्मा लिए गए थे या फिर डिलीवरी के बाद में. ‘चुपके चुपके’ में छोटा रोल था, ‘मिली’ में वो गंभीर बीमारी से पीड़ित एक युवती के रोल में थीं तो ‘शोले’ में एक विधवा के रोल में थीं. हृषिकेश मुखर्जी एक बार फिर दोनों को चुपके चुपके में लेकर आए, जो बंगाली कॉमेडी फिल्म ‘छदम्बेशी’ पर आधारित थी. चूंकि धर्मेन्द्र का लीड रोल था, इसलिए इस जोड़े के लिए वो नये चेहरे लेना चाहते थे. लेकिन अमिताभ और जया की दोनों की उनसे ट्यूनिंग अच्छी थी, सो उन्हें ले लिया.
‘मिली’ भी हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म थी, इसमें गंभीर बीमारी से पीड़ित लड़की से अमिताभ को प्यार हो जाता है. ये सचिन देव वर्मन की आखिरी फिल्म थी, उनका आखिरी गाना बड़ी सूनी सूनी हैं.. को उनके बेटे आरडी वर्मन ने किशोर की आवाज में रिकॉर्ड करवाया था. फिल्म का बाद में तेलुगू रीमेक भी बनाया गया था. उसके बाद आई शोले, हेमा के साथ धर्मेन्द्र और जया के साथ अमिताभ वाली फिल्म. दमदार डायलॉग और शानदार डायरेक्शन, इतने सारे पहलू एक साथ थे कि फिल्म पीढ़ियों के लिए यादगार बन गई. फिल्म की शूटिंग के दौरान जया पहली बार प्रेग्नेंट थी तो रिलीज के वक्त वो दूसरी बार प्रेग्नेंट थी.
दो बच्चों की जिम्मेदारी सर पर आते ही जया ने फिल्मों से किनारा कर लिया, हालांकि बीच बीच में तीन फिल्में अभी तो जी लें, नौकर और एक बाप छह बेटे ये तीन फिल्में कीं. लेकिन जिस फिल्म के बाद जया ने पूरे 18 साल तक कोई फिल्म साइन नहीं की वो अभी तक काफी चर्चित मानी जाती है. माना जाता है कि वो अमिताभ की निजी जिंदगी से जुड़ी हुई थी, यानी एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर. ये फिल्म थी ‘सिलसिला’, जिसके लिए यश चोपड़ा ने अमिताभ के साथ परवीन बॉबी और स्मिता पाटिल के बारे में सोचा था. लेकिन बाद में बच्चन से बातचीत हुई तो रेखा और जया को फाइनल कर दिया गया. सिलसिला के बाद जया सीधे ‘हजार चौरासी की मां’ में नजर आईं. सिलसिला के बाद जया और रेखा ने कभी साथ काम नहीं किया और अमिताभ के साथ भी जया पूरे बीस साल बाद नजर आईं, करन जौहर की ‘कभी खुशी कभी गम’ में. जबकि रेखा और अमिताभ ने तो इसके बाद कोई फिल्म ही साथ नहीं की.
हालांकि बहुत कम लोगों को पता होगा कि जया ने ‘कभी खुशी कभी गम’ से पहले भी अमिताभ की एक फिल्म में काम किया था. लेकिन एक एक्ट्रेस के तौर पर नहीं. 1981 में ‘सिलसिला’ की रिलीज के ठीक सात साल बाद 1988 में रिलीज हुई ‘शहंशाह’ में, शहंशाह की स्टोरी जया बच्चन की थी और टीनू आनंद के पिता इंदर राज आनंद ने इसका स्क्रीन प्ले लिखा था, लेकिन फिल्म की रिलीज से पहले ही इंदर की डैथ हो गई थी. जया बच्चन के बर्थडे पर अमिताभ-जया की फिल्मों की ये दिलचस्प जानकारियां बहुतों के लिए नई होंगी.
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