नई दिल्ली। मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में बीते कुछ दिनों से तूफ़ान आया हुआ है। हाल ही में हेमा कमिटी की रिपोर्ट आई है, जिसके बाद से साउथ के बड़े-बड़े नेता-अभिनेता तक इसमें फंसते हुए नजर आ रहे। कई बड़े नाम निशाने पर हैं। इसे साउथ का मीटू-2.0 कहा जा रहा है। सब कुछ शुरू हुआ फरवरी 2017 से जब मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की एक हीरोइन को चलती कार में सेक्शुअली हैरेस किया गया। इसके बाद आवाजें उठने लगी और सरकार ने हेमा कमेटी का गठन किया। रिपोर्ट में आई खबर दिल दहला देने वाली है। मलयालम सिनेमा में 17 तरीके से हेरोइनों का शोषण किया जाता है। उनसे डायरेक्ट सेक्स की डिमांड की जाती है। संबंध नहीं बनाने देने पर काम नहीं दिया जाता।
सेक्शुअल हैरेसमेंट के खिलाफ बोलने पर महिलाओं को बैन कर दिया जाता है। इंडस्ट्री में फिर उन्हें काम नहीं मिलता। इंडस्ट्री के कई बड़े नाम भी इसमें होते हैं। डायरेक्टर, प्रोड्यूसर से लेकर प्रोडक्शन कंट्रोलर तक महिलाओं का शोषण करते हैं। यदि कोई महिला काम के लिए जाती हैं तो उसे सेक्शुअल फेवर के बारे में पहले ही बता दिया जाता है। उन्हें एडजस्टमेंट और कॉम्प्रोमाइज करने के लिए कहा जाता है।
मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के मेल आर्टिस्ट्स ये मानते हैं कि अगर महिलाएं फिल्मों में इंटिमेट सींस दे रही हैं तो वो ऑफ सेट भी आसानी से ऐसा कर लेंगी। इस वजह से इंडस्ट्री में पुरुष महिलाओं खुलकर सेक्स की डिमांड करने लगते हैं। न कहने पर उनके साथ ज्यादती की जाती है। कई महिलाओं ने कमेटी के सामने वीडियो क्लिप्स, ऑडियो क्लिप्स, स्क्रीनशॉट्स और वॉट्सएप मैसेजेस सबूत के तौर पर रखे। महिलाओं का कहना है कि अगर वो काम के सिलसिले में रात में किसी होटल में रूकती हैं तो पुरुष उनका जोर-जोर से दरवाजा खटखटाते हैं। उन्हें टॉयलेट करने देने तक जाने की इजाजत नहीं मिलती। वहां महिलाओं पर काम का इतना प्रेशर डालते हैं कि पीरियड्स के दौरान घंटों तक सैनिटरी पैड्स चेंज नहीं कर पाती।
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