बॉलीवुड डेस्क, मुंबई: कामाख्या नारायण सिंह एक ट्रेवल डॉक्यूमेंट्री मेकर हैं, इस बार वो एक मूवी लेकर आए हैं, जो आपको अपने साथ ट्रेवलिंग पर ले जाती है इसी देश की एक दूसरी दुनियां में। दिल्ली से बहुत ज्यादा दूर नहीं लेकिन आपको ये जगह हैरान करती है और आपको यकीन नहीं होता कि ये लोग आपके ही देश के हैं। बिहार की मुसहर जनजाति को इसलिए जाना जाता है क्योंकि वो मूसे यानी चूहे खाकर गुजारा करती है। ऐसे में उसी जनजाति की एक लड़की जब अपनी जिंदगी के अंधेरों से निकलकर मुख्यधारा में शामिल होना चाहती है तो उसके लिए ये आसान सा काम कितना मुश्किल साबित होता है, यही दिखाया है उन्होंने भोर में। गोवा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टीवल (IFFI) की एक केटगरी में 65 देशों की फिल्मों में 2 हिंदी फिल्में चुनी गईं, जिनमें एक ‘भोर’ भी थी।
कामाख्या नारायण सिंह गोवाहाटी से दिल्ली आए, यहां से पीजी किया और फिर पिछले 10 साल से मुंबई में हैं। अब तक 40 देशों की यात्रा करके कई ट्रेवल डॉक्यूमेंट्री बना चुके हैं। चूंकि मूल रुप से उनका परिवार बिहार से ताल्लुक रखता है, तो पहली मूवी के लिए उन्होंने बिहार ही चुना। इस मुसहर जनजाति के बारे में वो पहले भी सुन चुके थे, सो नालंदा जिले के एक गांव में अपनी यूनिट लेकर पहुंच गए और दो महीने तक वहीं रहकर शूटिंग की। दिल्ली और मुंबई के कलाकार उनके बीच रही रहे।
जब भी किसी कॉस्टयूम की जरुरत होती थी, तो वो उन्हीं मुसहर लोगों से मांग लिया करते थे और बदले में उन्हें नए कपड़े दे दिया करते थे। कई गांव वाले आपको फिल्म में दिखेंगे, यहां तक मूवी का इकलौता गाना भी वहीं रिकॉर्ड किया गया है। ये मूवी कहानी है मुसहर जाति की एक युवती बुधनी की जो अपने जीवन में शिक्षा की भोर लाना चाहती है, पढ़ने के लिए उसे ससुराल वालों से गांव वालों से जंग लड़नी पड़ती है। कैसे प्रशासन की मदद के वावजूग उसके अपने गांव-कबीले के लोग उसे परम्पराएं तोड़ने से रोकते हैं और कैसे वो उनकी जिद पर काबू पाकर अपने सपनों को ना केवल साकार करती है, बल्कि उनको भी महसूस करवाती है कि जिंदगी की असली भोर कैसे होगी।
हाल ही में अंडमान द्वीप के पास एक प्रतिवंधित द्वीप पर एक विदेशी को आदिवासियों ने मार दिया, ऐसे में ये मांग भी उठ रही है कि उनको अपनी ही दुनियां में रहने देकर संरक्षित रखा जाए या फिर मुख्य धारा से जोड़ा जाए। मुसहर जाति तो मुख्य धारा के आसपास ही रहती है, दुनियां भर को ज्ञान देने वाले नालंदा विश्वविद्यालय के करीब रहती है, लेकिन खुद एक कभी ना खत्म ना होने वाले अंधेरे में है, सदियों से। उम्मीद है कि कामाख्या नारायण सिंह की ‘भोर’ लोगों को उनकी जिंदगी में रोशनी लाने के लिए प्रेरित करेगी।
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