हाल ही में दो हीरो लांच हुए एक अनिल शर्मा का बेटा उत्कर्ष शर्मा और सलमान खान के बहनोई आयुष शर्मा, दोनों ही उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे. लेकिन इस मूवी को देखकर ये कहा जा सकता है कि कम से कम विनोद मेहरा के बेटे रोहन मेहरा इस मामले में ज्यादा कामयाब साबित हो सकते हैं. नए कलाकार के तौर पर इससे बेहतर फिल्म उनके लिए नहीं हो सकती थी, ये अलग बात है कि बाजार फिर भी थ्री ईडियट या दंगल जैसी मूवी नहीं है, लेकिन अलग हटकर देखने वालों को जरुर पसंद आएगी.
बाजार कहानी है एक ऐसे लड़के रिजवान अहमद (रोहन मेहरा) की, जो इलाहाबाद में रहकर शेयर ट्रेडिंग का काम करता है, लेकिन वो उड़ना चाहता है, मुंबई जाकर इस दुनियां का बड़ा नाम बनना चाहता है और दंद फंद कर तेजी से आगे बढ़े बिजनेसमेन शकुन कोठारी (सैफ अली खान) के साथ काम करना चाहता है. उसको ये मौका मिल भी जाता है, एक शेयर ट्रेडिंग कंपनी में थूकी हुई कॉफी को पीकर वो अजीबोगरीब तरीके से नौकरी पाता है और शकुन कोठारी का एक सौदे में ब़ड़ा नुकसान और एक में बड़ा फायदा करता है. जिससे वो खुश होकर पहले उसे अपने 100 करोड़ इनवेस्ट करने को देता है और फिर उसे अपनी कंपनी स्काईकॉम का पार्टनर बना देता है. लेकिन फिर कुछ ऐसा होता है कि रिजवान के पैरों तले जमीन खिसक जाती है.
हालांकि चित्रांगदा सिंह सैफ अली खान की उस पत्नी की भूमिका में है. जिससे सैफ ने केवल हीरों के व्यापारी की बेटी के तौर पर शादी की थी, उसी से वो बिजनेस में एंट्री ले पाया. जबकि राधिका आप्टे शेयर ट्रेडिंग कंपनी की रहस्मयी एम्पलॉयी के रोल में है, जो रिजवान की मदद करती है और एक दिन उसकी महबूबा बन जाती है. देखा जाए तो कहानी इन चारों करेक्टर्स के इर्द गिर्द घूमती है, चारों की ही एक्टिंग अच्छी है. सबकी नजर रोहन मेहरा पर ज्यादा थी, उनकी आवाज दमदार है और पहली फिल्म के देखते हुए, वो वाकई उम्मीदों पर खरे उतरे हैं. सैफ ने पिछली कई फिल्में यूं ही साइन की थीं, ऐसे में एक बार फिर ये मूूवी उन्हें वापस ट्रैक पर ला सकती है.
एक्टिंग से ज्यादा क्रेडिट इस फिल्म में डायरेक्टर गौरव के चावला को जाता है, जो कसी हुई स्क्रिप्ट, चुटीले डायलॉग्स और शेयर बाजार की बोकेबलरी की मशहूर कहानियों को कायदे से एक 2 घंटे 20 मिनट की कहानी में पिरोने में कामयाब रहे. अभी तक कई फिल्मों में सेकंड यूनिट डायरेक्टर और एक टीवी सीरीज पीओडब्ल्यू डायरेक्ट कर चुके गौरव ने कमाल कर दिया है. कुछ गाने भी अच्छे बन पड़े हैं, हालांकि एक दो गाना कम करते तो फिल्म और मजेदार होती.
पहले हाफ में फिल्म थोडा ढीली चलती है, लेकिन सेकंड हाफ में अगर आप पांच सेकंड को भी चूके तो फिल्म समझ से बाहर हो सकती है, वैसे भी इस फिल्म को देखने के लिए थोड़ा बहुत ऩ्यूजी माइंड होना जरूरी है, खासतौर पर शेयर मार्केट की. चूंकि पूरी फिल्म इनसाइडर ट्रेडिंग पर बेस्ड है कि कैसे कुछ ताकतवर और शातिर लोग धंधे में प्रॉफिट के नाम पर कुछ भी करने के तैयार होते हैं, सेबी की आंखो में धूल झोंककर भी. जबकि आम निवेशक लुट जाता है.
मूवी में खास है पॉलटिकल घटनाओं का इस्तेमाल टूजी केस की स्वान टेलीकॉम की तरह की एक कंपनी स्काईकॉम बनाना, ए राजा की तरह पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर स्पेक्ट्रम बांटना और छत्तीसगढ़ के एक बीजेपी नेता के मशहूर डायलॉग – पैसा खुदा नहीं तो खुदा से कम भी नहीं का इस्तेमाल करना. गुजरात से चुपचाप हीरे लेकर जाने वाले आंगड़ियों की स्टोरी आपको न्यूज चैनल में चलती दिखी होंगी, इस मूवी में भी दिखेगी.
ऐसे में मूवी की टिकट में खर्च किए हुए आपके पैसे बेकार नहीं जाएंगे, हालांकि कुछ सींस आपको अखर सकते हैं, आपको लग सकता है कि क्लाइमेक्स ऐसे नहीं ऐसे होना चाहिए था, फिर भी जैसी बकवास फिल्में आजकल बन रही हैं, उनमें ये आपको स्त्री, बधाई हो, अंधाधुन जैसा मजा दो देगी है. ये अलग बात है कि फिल्म में प्रयागराज का नाम इलाहाबाद ही है.
रेटिंग- 3 स्टार
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