15 फरवरी की तारीख अमिताभ बच्चन और उनके फैंस के लिए बेहद खास दिन है, आज ही के दिन अमिताभ बच्चन अपने फिल्मी करियर की शुरूआत की थी. 15 फरवरी को अमिताभ बच्चन ने मुंबई आकर अपनी पहली फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ साइन की थी. आज इस वाकए को 49 साल हो गए. आज का दिन बिग बी का फिल्मी दुनियां में गोल्डन जुबली ईयर. ये फिल्म गोवा के मुक्ति ऑपरेशन की कहानी पर बनी थी. अमिताभ ने आज फिर अपनी यादें ताजा करते हुए एक ट्वीट किया. ट्वीट में लिखा है ‘’ 49 years ago I came to the city of dreams and signed my first film .. "Saat Hindustani' on Feb 15, 1969
मुंबई. 15 फरवरी की तारीख अमिताभ बच्चन और उनके चाहने वालों के लिए बेहद खास है, आज ही के दिन अमिताभ बच्चन ने मुंबई आकर साइन की थी अपनी पहली फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’. आज इस वाकए को 49 साल हो गए और यूं आज से ही शुरू हो गया है बिग बी का फिल्मी दुनियां में गोल्डन जुबली ईयर. ये फिल्म गोवा के मुक्ति ऑपरेशन की कहानी पर बनी थी. 18 और 19 दिसम्बर 1962 को इंडियन मिलिट्री ने ‘ऑपरेशन विजय चलाया’ और गोवा से पुर्तगालियों के शासन को खत्म कर दिया. 1947 को देश के आजाद होने के वाबजूद पुर्तगालियों ने गोवा को नहीं छोड़ा था. पूरे चौदह साल लग गए, गोवा मुक्ति संग्राम और डिप्लोमेटिक बातचीत फेल होने के बाद, भारतीय सेना ने इसे अंजाम दिया. लेकिन गोवा मुक्ति संग्राम से बॉलीवुड के महानायक की जो यादें जुड़ी हैं, वो सबसे अनोखी है. अमिताभ बच्चन की पहली मूवी ‘सात हिंदुस्तानी’ इसी गोवा मुक्ति संग्राम के इर्दगिर्द बुनी गई थी.
अमिताभ बच्चन जब कोलकाता में अपनी नौकरी छोड़कर 1969 में मुंबई आ गए तो अपना पोर्टफोलियो लेकर भटकने लगे. उस वक्त ख्वाजा अहमद अब्बास एक मूवी बना रहे थे ‘सात हिंदुस्तानी’, गोवा मुक्ति संग्राम के आठ साल बाद वो उसके बैकड्रॉप में एक मूवी बनाना चाहते थे. जिसके लिए उन्होंने अपनी कास्टिंग पूरी भी कर ली थी कि अचानक टीनू आनंद ने कहा वो अपना रोल नहीं कर पाएंगे. उसकी वजह भी थी, वो सत्यजीत रे के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर डायरेक्शन की बारीकियां सीखना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने अब्बास साहब की मूवी में काम करने से मना कर दिया. इस मूवी में टीनू की एक दोस्त मॉडल नीना सिंह अकेली फीमेल लीड थीं, नीना और टीनू ने उस रोल के लिए अमिताभ बच्चन का फोटो अब्बास साहब को दिखाया. 15 फरवरी 1969 को अमिताभ बच्चन का उस रोल के लिए ऑडीशन लिया गया और उनको उस मूवी में एक रोल मिल गया.
हालांकि बाद में जब अब्बास साहब को ये पता चला कि अमिताभ बच्चन हरिवंश राय बच्चन के बेटे हैं तो उन्हें हैरत हुई थी. उधर नीना भी दिल्ली से वापस नहीं लौटी तो उनकी जगह शहनाज को साइन कर लिया गया. इस मूवी में जो जिस बैकग्राउंड या धर्म का था, उसे उसके जस्ट अपोजिट रोल दिया गया था. डायरेक्टर अब्बास ये दिखाना चाहते थे कि कैसे अलग अलग प्रांतों और अलग अलग धर्मों के लोगों ने गोवा मुक्ति संग्राम में हिस्सा लिया था. अमिताभ बच्चन एक हिंदू कवि के बेटे थे तो उनको एक मुस्लिम कवि का रोल दिया गया, और मूवी में वो बिहारी बने थे. बच्चन के करेक्टर का नाम अनवर अली था, जो कॉमेडियन महमूद के उस भाई का असली नाम था, जो बच्चन का दोस्त भी था और उस मूवी में काम भी कर रहा था.
इसी तरह मूवी में बंगाली उत्पल दत्त को पंजाबी जोगेन्द्र का रोल दिया था. मलयालम एक्टर मधु को एक बंगाली का रोल दिया गया. मुस्लिम एक्टर इरशाद को महाराष्ट्रियन हिंदू, जलाला आगा को साउथ इंडियन हिंदू और अनवर अली को यूपी के कट्टर हिंदू रामभगत शर्मा का रोल दिया गया. जबकि मुस्लिम एक्ट्रेस शहनाज को एक क्रिश्चियन लेडी मारिया का रोल दिया गया.
कहानी शुरू होती है मारिया की बीमारी से, जो गोवा में रहती है. मारिया की किसी सीरियस बीमारी के चलते गोवा के हॉस्पिटल में सर्जरी होनी है और जिसमें उसकी जान तक जा सकती है. तब मारिया कहती है कि भारत के अलग अलग कोनों में रह रहे उसके 6 दोस्त नहीं आ जाते, वो सर्जरी नहीं करवाएगी. तब उसके वो 6 दोस्त उससे मिलने गोवा आते हैं. तब तक सब अलग अलग जिंदगियों में रम चुके होते हैं। सभी मिलते हैं तो कहानी फ्लैशबैक में जाती है कि कैसे देश के लिए उन्होंने जाति, धर्म और अपनी प्रांतीय पहचान को दरकिनार करके गोवा के मुक्ति संग्राम में हिस्सा लिया था. पूरी कहानी इसी तरह गोवा मुक्ति संग्राम के जरिए देश को एकता के बंधन में बांधने का काम करती है.
27 मार्च 1970 को इस फिल्म का प्रीमियर दिल्ली के शीला सिनेमा में रखा गया. अमिताभ बच्चन और ख्वाजा अहमद अब्बास उसके लिए दिल्ली आए थे. उसके कई महीने बाद वो फिल्म मुंबई में रिलीज की गई. हालांकि फिल्म की रिलीज से पहले अब्बास साहब ने एक स्पेशल स्क्रीनिंग मीना कुमारी के लिए भी रखी. जिसमें मीना कुमारी ने अमिताभ के काम की उनसे तारीफ भी की, बच्चन ने अपने ब्लॉग में मीना कुमारी के साथ की वो तस्वीर और घटना शेयर भी की थी. इस मूवी में अमिताभ बच्चन का रोल लड़ाई झगड़े से बचकर भागने वाले लड़के का था, जो बाद में बड़ी मुश्किलों से मुक्ति संग्राम के लिए तैयार होता है.
अमिताभ बच्चन को इस मूवी में काम करने के लिए बस पांच हजार रुपए मिले थे और टीनू आनंद ने उसके लिए अब्बास साहब से बात की थी. ये तय हुआ था कि मूवी को बनने में चाहे एक साल लगे या पांच साल लगें, अमिताभ को कुल सेलरी या मेहनताना पांच हजार रुपए ही मिलना था. खास बात थी कि सारी यूनिट या स्टार कास्ट सभी थर्ड क्लास में ही सफर करते थे, यहां तक कि सभी आउटडोर शूटिंग्स के दौरान अपने बिस्तर भी साथ ले जाते थे और एक बड़े हॉल में एक साथ ही सोते थे. उस दौरान बच्चन अपने पिता की कविताएं सबको सुनाते थे. अमिताभ बच्चन को इस मूवी के लिए पहली ही फिल्म में ‘बेस्ट न्यूकमर’ का नेशनल फिल्म अवॉर्ड मिला था. जबकि कैफी आजमी को बेस्ट लिरिक्स के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला तो मूवी को राष्ट्रीय एकता के लिए नरगिस दत्त राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था.
बच्चन ने आज फिर अपनी यादें ताजा करते हुए एक ट्वीट कर दिया है, ट्वीट में लिखा है ‘’ 49 years ago I came to the city of dreams and signed my first film .. “Saat Hindustani’ on Feb 15, 1969 ..’’ अब गेंद बच्चन के चाहने वालों और फिल्मी दुनियां के पाले में हैं कि वो भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के इस सबसे बड़े चेहरे और आम आदमी के महानायक का गोल्डन जुबली ईयर कितने जोशो खरोश से मनाते हैं.
Thank you Tinnu .. #TinnuAnand .. and err .. that was not shock when you offered the role to me .. it was a expression of surprised joy .. my first film !! https://t.co/wGTuokl5R6
— Amitabh Bachchan (@SrBachchan) February 15, 2018
T 2615 – 49 years ago I came to the city of dreams and signed my first film .. "Saat Hindustani' on Feb 15, 1969 .. pic.twitter.com/lNABGJIIXQ
— Amitabh Bachchan (@SrBachchan) February 14, 2018
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