Akshay Kumar Rajnikant 2.0 To Oscar: सुपरस्टार रजनीकांत और अक्षय कुमार स्टारर फिल्म 2.0 रिलीज हो गई. फिल्म की ग्रांड ऑपनिंग हुई. पूरे भारत में फैंस रोबोट के बाद शंकर की इस साई फाई फिल्म को पसंद कर रहे हैं. फिल्म में नई कहानी दिखाई गई है और ऐसे में कहा जा रहा है कि यह फिल्म ऑस्कर के लिए फिल्म चुने जाने का जो क्राइटेरिया है, उस पर 2.0 खरी उतरती है.
बॉलीवुड डेस्क, मुंबई. आमतौर पर भारत से जितनी भी मूवी ऑस्कर के लिए गई हैं, वो ऑफबीट टाइप की होती हैं। आमिर खान ने भी कई बार कोशिश कीं कि उनकी फिल्में ऑस्कर के लिए जाएं, अर्थ के बाद उनकी मूवी लगान, रंग दे बसंती और पीपली लाइव भी ऑस्कर्स में फॉरेन फिल्म कैटगरी के तहत भारत की ऑफीशियल एंट्री के तौर पर भेजी गई थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। ऐसे में कोई आपसे अगर ये कहे कि 2.0 भी ऑस्कर के लिए जा सकती है तो आपको मजाक लगेगा लेकिन ऑस्कर के लिए मूवी चुने जाने का जो क्राइटेरिया है, उस पर 2.0 वाकई में खरी उतरती है।
पहले जानिए कि ऑस्कर के लिए कौन कौन सी अहम फिल्में अब तक भारत की ऑफीशियल एंट्री के तौर पर गई हैं- 2018 में गई विलेज रॉक स्टार, 2017 में गई न्यूटन, 2016 में गई इंटेरोगेशन और 2015 में गई कोर्ट. उससे पहले लायर्स डाइस और उससे पहले द गुड रोड। उससे पहले रणवीर कपूर-प्रियंका चोपड़ा की बर्फी गई थी। इनमें सो कौन सी फिल्म आप लोगों ने देखी होगी। एक दौर था जब हिंदी की कुछ चर्चित फिल्में भी जा चुकी हैं, जैसे– मदर इंडिया, साहिब बीवी और गुलाम, बैंडिट क्वीन, हे राम, मधुमती। लेकिन पिछले कुछ समय से कॉमर्शियल या बड़े बजट की एंटरटेनिंग फिल्मों को भेजना बंद सा ही कर दिया गया है, ऐसे में 2.0 के लिए कहां जगह बनती है। यहां तक पिछले बार बाहुबली का इतना शोर मचा फिर भी भारत की तरफ से उसे नहीं भेजा गया।
दरअसल ऑस्कर के लिए फिल्म चुनने का सबसे बड़ा क्राइटेरिया है फिल्म के सब्जेक्ट का अनोखा और एकदम ओरिजनल होना। किसी फिल्म से, किताब से या कहीं से भी मूल आइंडिया कॉपी ना किया गया हो, हालांकि पिछले साल गई न्यूटन पर कॉपी का आरोप लगा था, फिर भी वो भेजी गई। ऐसे में 2.0 बड़े बजट की कॉमर्शियल मूवी होने के बावजूद इसकी ऑस्कर में अगर दावेदारी बनती है, तो उसकी बड़ी वजह इस मूवी का स्टोरी आइडिया है।
2.0 की कहानी है कि कैसे मोबाइल टॉवर्स से होने वाले रेडिएयशन के चलते पक्षियों का तादाद लगातार कम हो रही है, एक बंदा इसके खिलाफ आवाज उठाता है, मोबाइल कंपनियां जिस तरह गैरकानूनी रुप से अवैध रूप से फ्रीक्वेंसी घटा बढ़ा रही है, टॉवर्स लगाने में गड़बड़ियां कर रही हैं, उसके खिलाफ वो मंत्री से भी मिलता है, कोर्ट भी जाता है लेकिन कहीं भी कोई भी उसकी नहीं सुनता। तब वो ऐसी तरकीब इस्तेमाल करता है, जिससे उस शहर से हर मोबाइल फोन गायब हो जाता है।
यानी साफ है कि ये आइडिया अभी तक किसी हॉलीवुड, बॉलीवुड या किसी भी भाषा की मूवी में इस्तेमाल नहीं किया गया होगा। एक तरफ तो आइडिया नया है, दूसरे मूवी सेलफोन के खतरों के प्रति आगाह करती है, पक्षियों की घटती तादाद और उनकी सोसायटी में जरुरतों के प्रति भी जागरूकता बढ़ाती है। यानी आइडिया और मैसेज दोनों दे रही है ये मूवी, तो कल को भारत की तरफ से ये मूवी ऑस्कर भेज दी जाए, तो चौंकिएगा नहीं।