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Raksha Bandhan Review: ड्रामा, कमेंट्री और भाई-बहन का प्यार, जानिए कैसी है अक्षय की रक्षाबंधन

नई दिल्ली : आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा के साथ आज सिनेमा घरों में अक्षय कुमार की रक्षाबंधन भी रिलीज़ हो चुकी है. फिल्म को लेकर पहले ही अक्षय और उनके फैंस काफी नर्वस थे. फिल्म कैसा कलेक्शन करती है ये तो आने वाला समय ही बताएगा बहरहाल हम फिल्म के रिव्यु आपको जरूर […]

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Raksha Bandhan Review: ड्रामा, कमेंट्री और भाई-बहन का प्यार, जानिए कैसी है अक्षय की रक्षाबंधन
  • August 11, 2022 4:13 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली : आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा के साथ आज सिनेमा घरों में अक्षय कुमार की रक्षाबंधन भी रिलीज़ हो चुकी है. फिल्म को लेकर पहले ही अक्षय और उनके फैंस काफी नर्वस थे. फिल्म कैसा कलेक्शन करती है ये तो आने वाला समय ही बताएगा बहरहाल हम फिल्म के रिव्यु आपको जरूर बताएंगे.

 

दहेज़ प्रथा पर आधारित है फिल्म

दहेज प्रथा सदियों से हमारे समाज का हिस्सा रही है. बेटी की शादी करते वक़्त परिवार को लड़केवालों को दुनियाभर का सामान किसी न किसी रूप में दिया जाता है. भले ही आज के समय में इसे ‘गिफ्ट्स’ का नाम दे दिया गया है, लेकिन है तो वो दहेज ही. इसी कुप्रथा से जुडी है लाला केदारनाथ (अक्षय कुमार) और उनकी चार बहनों की कहानी. फिल्म दिल्ली के चांदनी चौक के एक परिवार को दिखाती है.

जहां अक्षय कुमार फिल्म में लाला केदारनाथ का किरदार निभा रहे हैं. वो चांदनी चौक में चाट की दुकान चलाते हैं जिनकी चाट और गोलगप्पे की कई प्रेग्नेंट औरतें दीवानी हैं. इसकी एक और वजह ये है कि उनका मानना है उनकी दूकान से गोलगप्पे खाने से सबको बेटा ही नसीब होगा. ऐसे में दुकान खुलने से पहले ही कतारें लग जाती हैं. लाला केदारनाथ का कहना है कि सारा खेल ही लड़कों का है, आपको एक चाहिए और मुझे चार! उनके जीवन का एक ही मकसद है कि उनकी चार बहनों गायत्री (सादिया खतीब), दुर्गा (दीपिका खन्ना), लक्ष्मी (स्मृति श्रीकांत) और सरस्वती (सहेजमीन कौर) की शादी करवाना.

दूसरी ओर लाला को उसके बचपन के प्यार सपना (भूमि पेडनेकर) भी भी शादी करनी है जिसे लेकर वह अटका हुआ है. सपना के पिता चाहते हैं की उसकी शादी जल्द से जल्द हो इसलिए वह केदारनाथ के पीछे हैं. लेकिन केदारनाथ ने अपनी मां को वचन दिया है कि जब तक वह अपनी बहनों का घर नहीं बसा देता तब तक वह शादी नहीं करेगा. फिल्म इसी कहानी के इर्द-गिर्द है.

कैसी है फिल्म?

फिल्म का पहला हाफ खूब सारे ड्रामे से भरा हुआ है. लाला केदारनाथ शादी-शादी करता रहता है. शादी उसके लिए जिम्मेदारी के साथ-साथ जूनून बन गई है. इतना बड़ा जूनून कि वह अपनी बहनों को किसी के साथ भी बाँधने के लिए तैयार है. अक्षय का किरदार हमेशा हाय शादी! हाय शादी! चिल्लाते ही दिखाई देगा.

फर्स्ट हाफ में बहनों की मस्ती दिखाई देगी. गायत्री को छोड़कर बाकी सभी जंगली हैं. फिल्म परिवार के प्यार को भी दिखाती हैं. जहां खींचतान भी देखने को मिलेगी. गायत्री यूं तो सीधी सादी है लेकिन जरूरत पड़ने पर वह किसी को भी टेढ़ा जवाब दे सकती है. फिल्म के सेकंड हाफ में कहानी एकदम बदल जाती है जब लाला को दहेज़ की सच्चाई का पता चलता है. उसकी खुद सुर बदल जाते हैं. वह अब दहेज़ के एकदम खिलाफ हो जाता है. उसकी बहनें उसे चांद लगने लगती हैं. वह उन्हें पढ़ाने के लिए तैयार हो जाता है और ऐलान कर देता है कि उनकी बहनें दहेज देती नहीं लेती हैं.

डायरेक्शन

दहेज की कहानी समय से पीछे है. ऐसा प्रतीत होता है कि फिल्म में अक्षय के किरदार के अलावा और किसी किरदार में जान नहीं है. लाला की बहनें खुद से प्यार करती हैं लेकिन फिर भी शादी के नाम पर बकवास सहती हैं. जो उनका भाई कहता है करती हैं, जो करता है अपना लेती हैं उनका कहीं कोई जोर नहीं चलता है. उन्हें ऐसे दिखाया गया है कि वह सिर्फ भाई की इज़्ज़त करने और बियाहे जाने के लिए ही बनी हैं.

फिल्म में अक्षय के किरदार को छोड़ दें तो कोई और किरदार अपनी भूमिका में जंचता नहीं दिखता. फिल्म में भूमि की एक्टिंग भी फीकी है जहां उसकी आँखों में प्यार का नामों निशान तक नहीं हैं. वहीं फिल्म में कई ऐसे पंच लाइन्स भी हैं जिसे सुनकर आपको हंसी से अधिक गुस्सा आएगा. फिल्म का ड्रामा कभी-कभी ओवर भी हो जाता है. बहरहाल अक्षय कुमार की एक्टिंग सब चीज़ों को बैलेंस करती दिखाई देती है.

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