मुंबई: बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता संजय मिश्रा का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। फिल्म इंडस्ट्री में सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचने से पहले उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बता दें, 1963 में बिहार के दरभंगा में जन्मे संजय मिश्रा ने अभिनय के प्रति अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला लिया। अभिनय की दुनिया में उनका सफर आसान नहीं था, क्योंकि शुरुआती दौर में उन्हें विज्ञापनों और टेलीविजन में छोटे-मोटे किरदार निभाने पड़े।
संजय मिश्रा ने 1995 में शाहरुख खान के साथ फिल्म ‘ओह डार्लिंग! ये है इंडिया!’ से बड़े पर्दे पर डेब्यू किया। इसके बाद उन्होंने ‘सत्या’ और ‘दिल से’ जैसी फिल्मों में छोटे-छोटे किरदार निभाए, लेकिन इन भूमिकाओं से उन्हें वह पहचान नहीं मिल पाई जिसकी वह उम्मीद कर रहे थे। 1999 में टीवी शो ‘विश्व कप’ में एप्पल सिंह की भूमिका से उन्हें कुछ लोकप्रियता मिली, लेकिन फिर भी वह इंडस्ट्री में अपने लिए एक स्थायी जगह नहीं बना पाए।
संजय मिश्रा की किस्मत तब बदली जब उन्हें हिट सिटकॉम ‘द ऑफिस’ में एक प्रमुख भूमिका मिली। इसके बाद उन्होंने ‘गोलमाल’, ‘बंटी और बबली’ और ‘ऑल द बेस्ट’ जैसी फिल्मों में अपने शानदार अभिनय से बॉलीवुड की कॉमेडी शैली में अपनी खास पहचान बनाई।
हालांकि 2000 के दशक में जब उनका करियर रफ्तार पकड़ रहा था, तब उनके पिता का निधन हो गया। इस व्यक्तिगत त्रासदी ने उन्हें पूरी तरह से तोड़ दिया और उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कहने का फैसला कर लिया। इस दौरान वह ऋषिकेश चले गए और वहां घाट के पास एक छोटे से ढाबे में काम करने लगे। संजय मिश्रा ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि उन्होंने इस दौरान 150 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से बर्तन धोने का काम किया। उनका कहना था कि वह इस सादगी से अपने मन की शांति तलाशने की कोशिश कर रहे थे।
कुछ समय बाद, संजय मिश्रा ने दोबारा फिल्म इंडस्ट्री में लौटने का निर्णय लिया। मुंबई लौटकर उन्होंने अपने करियर की दोबारा शुरुआत की और एक बार फिर अपनी पहचान बनाई। आज वह बॉलीवुड के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं में से एक माने जाते हैं।
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