Categories: मनोरंजन

राष्ट्रीय पुरस्कार लौटने वाले फिल्मकारों का PM मोदी के नाम पत्र

नई दिल्ली. दिबाकर बनर्जी के नेतृत्व में 10 फिल्मकारों के अपने राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाने की घटना ने साहित्यकारों की शुरू की हुई इस मुहिम को नई ताकत दी है. फिल्म इंडस्ट्री के ही लोग जैसे कि अनुपम खेर ने इसकी आलोचना की है. यहां वह पत्र मौजूद है जो इन फिल्मकारों ने अपनी पुरस्कार वापसी के साथ राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा है.
माननीय
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जी
हम आपको यह पत्र गहरी हताशा में लिख रहे हैं. इस पत्र पर दस्तखत करने वाले कई लोगों ने मुश्किल से एक महीने पहले एफटीआईआई के छात्रों की मांगों के समर्थन में आपको एक पत्र लिखा था. हमने आपसे दखल देने की गुहार लगाई थी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि एफटीआईआई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में प्रतिबद्धता रखने वाला शिक्षा का एक उत्कृष्ट संस्थान बना रहे.
छात्रों की हड़ताल का यह चौथा महीना है. मुद्दा अभी-भी अनसुलझा है और संस्थान के भविष्य को लेकर हमारी आशंकाएं लगातार बढ़ी ही हैं. हमने छात्रों को लोकतांत्रिक तरीके और पूरी गरिमा के साथ प्रदर्शन करते हुए देखा है. हमने मीडिया में इन छात्रों की विश्वसनीयता पर हद दर्जे की बेशर्मी के साथ हमला होते हुए देखा है. यह काम ठीक उन लोगों – निदेशक और रजिस्ट्रार – ने किया जो कैंपस में छात्रों के अभिभावक होते हैं. कहने के लिए मंत्रालय ने इन छात्रों से चार महीने में पांच बार बातचीत की लेकिन उसने ऐसी कोई कोशिश नहीं की जिससे संस्थान में महत्वपूर्ण पदों पर उन लोगों की नियुक्ति की पारदर्शी प्रक्रिया बनाई जा सके जो संस्थान को एक दृष्टि देते हैं. मंत्रालय ने उस प्रक्रिया को पलटने में असमर्थता दिखा दी जिसकी वजह से हड़ताल शुरू हुई. हम इसे छात्रों के प्रतिरोध की स्पष्ट अनदेखी की तरह देखते हैं.
अब यह बेहद जरूरी हो गया है कि हम छात्रों के विरोध पर सरकार के कान बंद करने को एक संदर्भ में देखें. सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने उसके तहत आने वाले संस्थानों में संकीर्ण दृष्टि वाले लोगों को नियुक्त किया है. एफटीआईआई, चिल्ड्रन्स फिल्म सोसायटी और सीबीएफसी इसके उदाहरण हैं और इन नियुक्तियों पर फिल्म जगत से जुड़े लोगों ने आपत्ति जताई थी.
इस बीच हताशा की हालत में हम तर्कवादियों और लेखकों जैसे डॉ नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पनसारे और एमएम कलबुर्गी की हत्या के भी साक्षी रहे हैं. हिंसा की ये घटनाएं साफतौर पर यकायक नहीं हुईं. लोगों की मान्यताओं और विचारों के कारण उनकी हत्याएं की जा रही हैं. साथ में ऐसा भी लग रहा है कि इन घटनाओं के पीछे की बड़ी तस्वीर उजागर करने और उन कट्टरपंथियों संगठनों पर, जो विरोधी विचार रखने वालों को बर्बर हिंसा के जरिए अपने रास्ते से हटाने में यकीन करते हैं, कार्रवाई करने की कोई कोशिश नहीं हो रही है. इन संगठनों की कोई आधिकारिक निंदा नहीं हुई और हम इस चुप्पी पर सवाल उठाते हैं.
राष्ट्रीय राजधानी के एक छोर पर बसे गांव में मोहम्मद अखलाक की पीट-पीटकर हत्या किए जाने की घटना ने सहिष्णुता की उस भावना पर से हमारा विश्वास हिला दिया है जो हमारे मजबूत लोकतंत्र की मूल भावना है. जो भीड़ इस गरीब मुसलमान व्यक्ति के दरवाजे पर खड़ी थी उसे इस बात का भरोसा था कि गुस्से की अभिव्यक्ति का यह एक स्वीकार्य तरीका है. आज के माहौल ने इस भावना को वैधता दे दी है. शासक वर्ग ने एक दायरा बना दिया है जिसके बाहर खड़े होने वाले लोगों की जिंदगी खतरनाकरूप से जोखिमभरी हो गई है.
अब यह साफ हो चुका है कि जिस पार्टी की केंद्र में सरकार है उसके लोगों ने भीड़ का नेतृत्व किया था. यह बेहद जरूरी है कि हम इस बात पर ध्यान दें कि कैसे भीड़ को उकसाते हुए भरोसा दिलाया गया कि उनके ऊपर कोई कार्रवाई नहीं होगी. इस हमले की इबारत लिखने वाले राजनैतिक रसूखदारों के नाम लिए बिना इस घटना की कोई भी निंदा पूरी नहीं कही जा सकती.
हम फिल्में बनाने वाले लोग हैं जिन्हें आपके माननीय कार्यालय द्वारा पुरस्कृत किया गया है. हम इसे पूरा सम्मान देते हैं. हमारा सिनेमा अभिव्यक्ति की सुंदरता और राजनैतिक विचारों में भारी विविधता का प्रतिनिधित्व करता है. यह हमारे लिए बड़े गर्व का विषय था कि भारत सरकार ने इस विविधता को सम्मान दिया है. लेकिन यदि हम अब खड़े नहीं होते हैं और विरोध दर्ज नहीं कराते हैं तो हमारे उसी प्रक्रिया का हिस्सा बन जाने का खतरा है जो विविधता के एक सुंदर दृश्य को सपाट बनाती जा रही है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे लिए सिर्फ शब्द नहीं हैं, यह हमारी जीवनशैली है जो बहुत महत्वपूर्ण है. मुख्यधारा से अलग जाने वाली हरेक जिंदगी कीमती है और हमें अपनी मर्जी के हिसाब से पूजा करने, खाने, प्यार करने और काम करने के अधिकार के लिए लड़ना चाहिए.
सरकार ने हमें जो सम्मान दिया था, हम वह लौटाने के लिए मजबूर हैं. यह आपके कार्यालय की गरिमा को गिराने की कोशिश नहीं है बल्कि एक दिल से निकला निवेदन है. जिन ताकतों ने हत्या की इबारत लिखी उन पर सवाल उठाए बिना मौतों का शोक मनाना हमारे देश को विकृत कर रही ताकतों को स्वीकार करने जैसा है. भारत सरकार को तुरंत ही हर एक नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति, अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करनी चाहिए.
इस पत्र पर नीचे दस्तखत करने वाले हम लोग उन लेखकों के साथ खड़े हैं जिन्होंने साहित्य का सर्वोच्च सम्मान लौटा दिया और हम भी अपने राष्ट्रीय पुरस्कार वापस कर रहे हैं. फिल्मकार होने के नाते हम पूरी मजबूती के साथ एफटीआईआई के छात्रों के साथ खड़े हैं और हमने तय किया है कि इस विरोध प्रदर्शन का पूरा भार अकेले उनके कंधो पर नहीं आने दिया जाएगा. उन्होंने एक ऐतिहासिक संघर्ष छेड़ा है और हम अपने साथियों (फिल्म जगत के) से अनुरोध करते हैं कि वे आगे आएं और इस विरोध को आगे ले जाएं.
हस्ताक्षरकर्ता – दिबाकर बनर्जी,  आनंद पटवर्धन, परेश कामदार, निष्ठा जैन, कीर्ति नखवा, हर्षवर्धन कुलकर्णी, हरी नायर, राकेश शर्मा, इंद्रनील लाहिड़ी, लिपिका सिंह दराई
(साभार:सत्याग्रह.कॉम)
admin

Recent Posts

आईपीएल मॉक ऑक्शन में पंजाब ने लगाया सबसे बड़ा दांव, जानिए कौन सा खिलाड़ी कितने में बिका

आज आईपीएल 25 के लिए चल रहे  मॉक ऑक्शन में पंजाब किंग्स ने सबसे ऊंची…

4 hours ago

शादी में खाने के लिए बारातियों का हो गया झगड़ा, अस्पताल पहुंचे मेहमान

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले से एक ऐसी शादी की घटना सामने आई है, जहां…

4 hours ago

मनोज बाजपेयी ने इस फिल्म किया मुफ़्त में काम, जानें ऐसी क्या मजबूरी

फिल्म निर्माता सुभाष घई हिंदी सिनेमा के सबसे प्रतिभाशाली अभिनेताओं में से एक मनोज बाजपेयी…

4 hours ago

आईपीएल मॉक ऑक्शन में श्रेयश अय्यर पर पैसो की हुई बारिश, KKR ने खेला दांव

अय्यर के शतक जड़ते ही आईपीएल मॉक औक्सन में उनकी किस्मत चमक गई. आईपीएल 2025…

5 hours ago

Gmail Storage Full? जानें कैसे बिना पैसे खर्च किए पाए फ्री स्पेस

जीमेल यूजर्स को Google Photos, Gmail,Google Drive और बाकी सर्विसेस के लिए 15GB का फ्री…

5 hours ago

EVM का खेल है बाबू भैया…एजाज खान को 155 वोट मिले, करारी हार पर दिया रिएक्शन

हाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अभिनेता एजाज खान मुंबई की वर्सोवा सीट से चुनाव लड़ रहे…

5 hours ago