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पद्मावती की कहानी सुनाते कुमार विश्वास का VIDEO वायरल, कविता में सुना रहे ‘गोरा बादल’ के शौर्य की गाथा

नई दिल्लीः रणबीर सिंह, दीपिका पादुकोण और शाहिद कपूर के स्टार कास्ट वाली फिल्म पद्मावती पर देश में एक नई बहस छिड़ चुकी है. फिल्म की शूटिंग के दौरान पद्मावती के निर्देशक संजय लीला भंसाली पर राजपूत करणी सेना द्वारा हमला भी किया गया था. करणी सेना का आरोप था कि फिल्म में इतिहास के साथ छेड़छाड़ की जा रही है. फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी के साथ रानी पद्मावती का प्रेम प्रसंग दिखाने की कोशिश सरासर गलत है. इस पूरे विवाद के बाद अब ‘आप’ नेता और जाने-माने कवि कुमार विश्वास का एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है. इस वीडियो में कुमार विश्वास ने रानी पद्मिनी पर ‘पद्मिनी गोरा बादल’ कविता सुनाते हुए अपनी बात रखी है. वह कहते हैं, ‘दोहराता हूं सुनो रक्त से लिखी हुई कुर्बानी, जिसके कारण मिट्टी भी चंदन है राजस्थानी.’
कुमार विश्वास इस वीडियो में आगे कहते हैं, रानी पद्मावती पर दो घंटे की फिल्म बनाने से, उस पर कुछ अंश कर देने से या फिर कहानी लिख देने से जो राजस्थान का, राजपूताने का गौरवशाली इतिहास रहा है उसका एक कण भी प्रभावित नहीं हो सकता, बशर्ते हम सही इतिहास पीढ़ियों को बताते रहें. पंडित नरेंद्र मिश्र, मेवाड़ राजवंश के राजकवि भी हैं और हिंदी के महनीय वीर रस के कवि भी हैं, उन्होंने महारानी पद्ममिनी के जौहर आदि पर एक अद्भुत प्रसंग ‘पद्मिनी गोरा बादल’ लिखा है.’ वह प्रसंग हैः
‘दोहराता हूं सुनो रक्त से लिखी हुई कुर्बानी, जिसके कारण मिट्टी भी चंदन है राजस्थानी. रावल रतन सिंह को छल से कैद किया खिलजी ने, कालजयी मित्रों से मिलकर दगा किया खिलजी ने. खिलजी का चित्तौड़ दुर्ग में एक संदेशा आया, जिसको सुनकर शक्त शौर्य पर फिर अंधियारा छाया. दस दिन के भीतर न पद्मिनी का डोला यदि आया, यदि न रूप की रानी को तुमने दिल्ली पहुंचाया, तो फिर राणा रतन सिंह का शीश कटा पाओगे और शाही शर्त न मानी तो फिर पीछे पछताओगे. दारुन संवाद लहर सा दौड़ गया रण भर में, यह बिजली की तरक छितर से फैल गया अम्बर में, महारानी हिल गईं शक्ति का सिंघासन डोला था, था सतीत्व मजबूर जुल्म विजयी स्वर में बोला था. रुष्ट हुए बैठे थे सेनापति गोरा रणधीर, जिनसे रण में भय खाती थी खिलजी की शमशीर.’
‘अन्य अनेकों मेवाड़ी योद्धा रण छोड़ गए थे, रतन सिंह के संध नीद से नाता तोड़ गए थे, पर रानी ने प्रथम वीर गोरा को खोज निकाला. वन-वन भटक रहा था मन में तिरस्कार की ज्वाला. गोरा से पद्मिनी ने खिलजी का पैगाम सुनाया, मगर वीरता का अपमानित ज्वार नहीं मिट पाया. बोला मैं तो बहुत तुच्छ हूं राजनीति क्या जानूं, निर्वासित हूं राज मुकुट की हठ कैसे पहचानूं. बोली पद्मिनी समय नहीं है वीर क्रोध करने का, अगर धरा की आन मिट गई घाव नहीं भरने का. दिल्ली गई पद्मिनी तो पीछे पछताओगे, जीते जी राजपूती कुल को दाग लगा जाओगे. राणा ने जो किया-कहा किया वो माफ करो सेनानी, यह कह कर गोरा के कदमों पर झुकी पद्मिनी रानी. यह क्या करती हो गोरा पीछे हट बोला, और राजपूती गरिमा का फिर धधक उठा था शोला.’
‘महारानी हो तुम सिसोदिया कुल की जगदम्बा हो, प्राण प्रतिष्ठा एक लिंग की ज्योति अग्निगंधा हो. जब तक गोरा के कंधे पर दुर्जय शीश रहेगा, महाकाल से भी राणा का मस्तक नहीं कटेगा. तुम निश्चिंत रहों महलों में देखो समर भवानी, और खिलजी देखेगा केसरिया तलवारों का पानी. राणा के सकुशल आने तक गोरा नहीं मरेगा, एक पहर तक सर काटने पर धड़ युद्ध करेगा. एक लिंग की शपथ महाराणा वापस आएंगे, महाप्रलय के घोर प्रबंजन भी न रोक पाएंगे. शब्द-शब्द मेवाड़ी सेनापति का था तूफानी, शंकर के डमरू में जैसे जागी वीर भवानी. जिसके कारण मिट्टी भी चंदन है राजस्थानी, दोहराता हूं सुनो रक्त से लिखी हुई कुर्बानी.’
खिलजी मचला था पानी में आग लगा देने को, पर पानी प्यास बैठा था ज्वाला पी लेने को. गोरा का आदेश हुआ सज गए सात सौ डोले, और बांकुरे बदल से गोरा सेनापति बोले, खबर भेज दो खिलजी पर पद्मिनी स्वयं आती हैं, अन्य सात सौ सखियां भी वो साथ लिए आती हैं. स्वयं पद्मिनी ने बादल का कुमकुम तिलक किया था, दिल पर पत्थर रखकर भीगी आंखों से विदा किया था. और सात सौ सैनिक जो यम से भी भिड़ सकते थे, हर सैनिक सेनापति था लाखों से लड़ सकते थे. एक-एक कर बैठ गए सज गई डोलियां पल में, मर मिटने की होड़ लग गई थी मेवाड़ी दल में. हर डोली में एक वीर था चार उठाने वाले, पांचों ही शंकर के गण की तरह समर मतवाले. बज कूच शंख सैनिकों ने जयकार लगाई, हर हर महादेव की ध्वनि से दसों दिशा लहराई. गोरा बादल के अंतस में जगी जोत की रेखा, मातृ भूमि चित्तौड़ दुर्ग को फिर जी भरकर देखा. कर अंतिम प्रणाम चढ़े घोड़ों पर सुभग अभिमानी, देशभक्ति की निकल पड़े लिखने वो अमर कहानी. जिसके कारण मिट्टी भी चंदन है राजस्थानी, दोहराता हूं सुनो रक्त से लिखी हुई कुर्बानी.’
‘जा पहुंचे डोलियां एक दिन खिलजी की सरहद में, उधर दूत भी जा पहुंचा खिलजी के रंग महल में. बोला शहंशाह पद्मिनी मल्लिका बनने आई है, रानी अपने साथ हुस्न की कलियां भी लाईं हैं. एक मगर फ़रियाद उसकी फकत पूरी करवा दो, राणा रतन सिंह से एक बार मिलवा दो. खिलजी उछल पड़ा कह फौरन यह हुक्म दिया था, बड़े शौक से मिलने का शाही फरमान दिया था. वह शाही फरमान दूत ने गोरा तक पहुंचाया. गोरा झूम उठे छन बादल को पास बुलाया, बोले बेटा वक़्त आ गया अब काट मरने का. मातृ भूमि मेवाड़ धरा का दूध सफल करने का, यह लोहार पद्मिनी भेष में बंदी गृह जाएगा. केवल दस डोलियां लिए गोरा पीछे ढायेगा, यह बंधन काटेगा हम राणा को मुक्त करेंगे. घुड़सवार उधर आगे की खी तैयार रहेंगे. जैसे ही राणा आएं वो सब आंधी बन जाएं और उन्हें चित्तौड़ दुर्ग पर वो सकुशल पहुंचाएं.’
‘अगर भेद खुल गया वीर तो पल की देर न करना और शाही सेना पहुंचे तो बढ़ कर रण करना. राणा जाएं जिधर शत्रु को उधर न बढ़ने देना और एक यवन को भी उस पथ पांव ना धरने देना. मेरे लाल लाडले बादल आन न जाने पाए, तिल-तिल कट मरना मेवाड़ी मान न जाने पाए. ऐसा ही होगा काका राजपूती अमर रहेगी, बादल की मिट्टी में भी गौरव की गंध रहेगी. तो फिर आ बेटा बादल सीने से तुझे लगा लूं, हो ना सके शायद अब मिलन अंतिम लाड़ लड़ा लूं. यह कह बांहों में भरकर बादल को गले लगाया, धरती कांप गई अम्बर का अंतस मन भर आया. सावधान कह पुनः पथ पर बढ़े गोरा सेनानी, पोंछ लिया झट से बढ़कर के बूढी आंखों का पानी. जिसके कारण मिट्टी भी चंदन है राजस्थानी, दोहराता हूं सुनो रक्त से लिखी हुई कुर्बानी.’
‘गोरा की चातुरी चली राणा के बंधन काटे, छांट-छांट कर शाही पहरेदारों के सर काटे. लिपट गए गोरा से राणा गलती पर पछताए, सेनापति की नमक हलाली देख नयन भर आए. पर खिलजी का सेनापति पहले से ही शंकित था, वह मेवाड़ी चट्टानी वीरों से आतंकित था. जब यह मिलन लखा समझ पद्मिनी नहीं आई हैं, मेवाड़ी सेना खिलजी की मौत साथ लाई है. पहले से तैयार सैन्य दल को उसने ललकारा, निकल पड़ा तिधि दल का बजने लगा नगाड़ा. दृष्टि फिरि गोरा की राणा को समझाया, रण मतवाले को रोका जबरन चित्तौड़ पठाया. राणा चले तभी शाही सेना लहरा कर आई, खिलजी की लाखों नंगी तलवारें पड़ी दिखाई. खिलजी ललकारा दुश्मन को भाग न जाने देना, रतन सिंह का शीश काट कर ही वीरों दम लेना. टूट पड़ों मेवाड़ी शेरों बादल सिंह ललकारा, हर हर महादेव का गरजा नभ भेदी जयकारा.’
‘निकल डोलियों से मेवाड़ी बिजली लगी चमकने, काली का खप्पर भरने तलवारें लगी खटकने. राणा के पथ पर शाही सेना तनिक बढ़ा था, पर उस पर तो गोरा हिमगिरि सा अड़ा खड़ा  था. कहा जफर से एक कदम भी आगे बढ़ न सकोगे. यदि आदेश न माना तो कुत्ते की मौत मरोगे. रतन सिंह तो दूर ना उनकी छाया तुम्हें मिलेगी, दिल्ली की भीषण सेना की होली  अभी जलेगी. यह कह के महाकाल बन गोरा रण में हुंकारा, लगा काटने शीश बही समर में रक्त की धारा. खिलजी की असंख्य सेना से गोरा घिरे हुए थे, लेकिन मानो वे रण में मृत्युंजय बने हुए थे. पुण्य प्रकाशित होता है जैसे अग्रित पापों से, फूल खिला रहता असंख्य कांटों के संतापों से. वो मेवाड़ी शेर अकेला लाखों से लड़ता था, बढ़ा जिस तरफ वीर उधर ही विजय मंत्र बढ़ता था. इस भीषण रण से दहली थी दिल्ली की दीवारें, गोरा से टकराकर टूटी खिलजी की तलवारें.’
‘मगर कयामत देख अंत में छल से काम लिया था, गोरा की जंघा पर अरि ने छिप कर वार किया था. वहीं गिरे वीर वर गोरा जफर सामने आया, शीश उतार दिया धोखा देकर मन में हर्षाया. मगर वाह रे मेवाड़ी गोरा का धड़ भी दौड़ा, किया जफ़र पर वार की जैसे सर पर गिरा हथौड़ा. एक बार में ही शाही सेनापति चीर दिया था. जफर मोहम्मद को केवल धड़ ने निर्जीव किया था, ज्यों ही जफ़र कटा शाही सेना का साहस लरज़ा. काका का धड़ लख बादल सिंह महारुद्र सा गरजा, अरे कायरों नीच बांगड़ों छल में रण करते हो. किस बूते पर जवान मर्द बनने का दम भरते हो, यह कह कर बादल उस छन बिजली बन करके टूटा था. मानो धरती पर अम्बर से अग्नि शिरा छूटा था. ज्वालामुखी फटा हो जैसे दरिया हो तूफानी, सदियों दोहराएंगी बादल की रण रंग कहानी, अरि का भाला लगा पेट में आंतें निकल पड़ी थीं.’
‘जख्मी बादल पर लाखों तलवारें खिंची खड़ी थी, कसकर बांध लिया आंतों को केशरिया पगड़ी से. रण चक डिगा न वो प्रलयंकर सम्मुख मृत्यु खड़ी से, अब बादल तूफ़ान बन गया शक्ति बनी फौलादी. मानो खप्पर लेकर रण में लड़ती हो आजादी, उधर वीरवर गोरा का धड़ अर्दल काट रहा था. और इधर बादल लाशों से भूदल पाट रहा था. आगे-पीछे दाएं-बाएं जमकर लड़ी लड़ाई, उस दिन समर भूमि में लाखों बादल पड़े दिखाई. मगर हुआ परिणाम अंत में वही की जो होना था, उनको तो कण-कण अरियों के सोन तामे धोना था. अपने सीमा में बादल सकुशल पहुंच गए थे. गोरा बादल तिल-तिलकर रण में खेत गए थे. एक-एककर मिटे सभी मेवाड़ी वीर सिपाही, रतन सिंह पर लेकिन रंचक आंच न आने पाई. गोरा बादल के शव पर भारत माता रोई थी, उसने अपनी दो प्यारी ज्वलंत मणियां खोईं थीं. धन्य धरा मेवाड़ धन्य गोरा बादल अभिमानी, जिनके बल से रहा पद्मिनी का सतीत्व अभिमानी. जिसके कारण मिट्टी भी चंदन है राजस्थानी, दोहराता हूं सुनो रक्त से लिखी हुई कुर्बानी.’
वीडियो में गोरा बादल की शौर्य गाथा को उन्होंने स्वाभिमान की लड़ाई बताया. गाथा पूरी होने के बाद कुमार विश्वास कहते हैं, ‘हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को हमारे इतिहास के बारे में बताना होगा. मुझे जब भी वक्त मिलता है तो मैं अपने परिवार को लेकर ऐतिहासिक जगहों के लिए निकल जाता हूं ताकि उन्हें हमारे शानदार इतिहास के बारे में पता चल सके.’ उन्होंने कहा, ‘बैंकाक, हांगकांग, लॉस वेगास घूमने मत जाइए, राजस्थान घूमने जाइए.. एक-एक तीर्थ को प्रणाम करिए. अंडमान जाइए, वो पिस्तौल देखिए जो चंद्रशेखर आजाद ने इस्तेमाल की थी. अपनी पीढ़ियों को सही तीर्थ सिखाइए, देवताओं के बारे में बताइए.’
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