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बादशाह अकबर के वो दो काम, एक से जीता हिंदुओं का दिल तो दूसरे से पहुंचाई ठेस

नई दिल्लीः तमाम विदेशी आक्रांताओं ने भारत में शासन किया, जिनमें से एक अकबर ही था, जिसे महान की उपाधि मिली. उससे पहले इंडो यूनानी शासक कनिष्क का नाम ऐसे शासकों में लिया जाता है, जिसके खिलाफ इतिहास में ज्यादा बुरा नहीं मिलता. 15 अक्टूबर, 2042 को अकबर को पैदा हुए पूरे 500 साल हो जाएंगे यानी आज से ठीक पच्चीस साल बाद. तब फिर अकबर पर बहस होगी कि वो जितना महान, सेकुलर और न्यायप्रिय बताया जाता रहा है, उतना था भी कि नहीं? हिंदुओं के लिए क्या वो वाकई में उतना अच्छा था कि उसको महान बोलने में किसी हिंदू को परेशानी ना हो. वो भी तब जबकि महाराणा प्रताप जैसे महानायक से उसका 36 का आंकड़ा था? ये बहस चलती रहेगी, लेकिन इस लेख में हमने अकबर को वो दो काम लिए हैं, जिसमें से एक को हिंदुओं को दिल जीतने का सबसे बड़ा प्रयास माना गया और दूसरे से हिंदुओं के दिलों पर ऐसा घाव हुआ कि आज भी हिंदू उसे भूले नहीं हैं.
यूं अकबर ने हिंदुओं से संबंध सुधारने के लिए ऐसे कई किए जैसे तीर्थयात्रा कर हटाना, जजिया हटाना, दीवाली-होली मनाने की इजाजत देना और खुद भी उसमें भाग लेना, हिंदू राजाओं से रिश्ते बनाना, उन्हें बड़े पदों पर शामिल करना, खास दिन पर खास जानवर का मांस प्रतिवंधित करना आदि. इन कामों को अकबर के विरोधी कई तर्कों से खारिज भी करते रहे हैं, क्योंकि ये कहकर कि अपने देश में त्योहार मनाने की इजाजत मिलना बख्शीश जैसा था. हिंदू राजाओं ने रिश्ते मजबूरी में बनाए, देश को बारीकी से समझने के लिए हिंदुओं को पद देना मजबूरी थी क्योंकि हिंदुओं को हिंदुओं की कमजोरियां पता थीं, और इससे हिंदू बंटता भी था. रिश्तों को अहमियत तब मिलती जब वो दूसरों की बेटियों से शादी करके घर लाता था तो उनका धर्म परिवर्तन करता था. फिर अपनी बेटी मेहरुन्निसा के शादी करने वाले तानसेन को मुस्लिम क्यों बनाया, बेटी भी तो हिंदू बन सकती थी। रानी दुर्गावती की आत्महत्या और दिल्ली के हिंदू शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य का पिता की धर्म परिवर्तन ना करने के चलते निर्मम हत्या जैसे कई मसले वो अकबर को हिंदू विरोधी साबित करने के लिए उठाते हैं. जिसमें सबसे बड़ा है चित्तौड़ किले में बड़ा नरसंहार.
लेकिन एक ऐसा दिल जीतने का काम अकबर ने किया था, जिसने ज्यादातर हिंदुओं का दिल जीत लिया था. उस काम पर उसके विरोधी भी सवाल नहीं उठाते. माना जा रहा है कि ये काम टोडरमल की सलाह पर हुआ होगा, टोडरमल जहां अकबर के राजस्व का काम तो देखते ही थे, सिक्के बनाने वाली टकसालों पर भी उनका नियंत्रण होता था. दरअसल अकबर ने एक बार ऐसा सिक्का अपने यहां बनवाया जिस पर राम और सीता की तस्वीरें बनी हुई थीं. ये सिक्का मूल रूप से चांदी का बना हुआ था, लेकिन एक सोने के सिक्के पर भी राम सिया की ये आकृति बाद में मिली, जिस पर देवनागरी में राम सिया लिखा भी हुआ था, दोनों की आकृतियों के साथ. हालांकि इससे पहले मोहम्मद गौरी ने अपने छोटे से शासन काल में देवी लक्ष्मी का सिक्का भी जारी किया था, उनकी आकृति के साथ. लेकिन ये भी कहा गया कि वो शायद चौहान या तोमर राजाओं के अधबने पुराने सिक्के मिले थे, इसलिए जारी कर दिए गए. लेकिन वाकई में वो पहला विदेशी जिसने भारत पर शासन किया था, और हिंदुओं के रंग में रंगा वो था कनिष्क. उसने शिव, कृष्ण और भगवान बुद्ध की आकृतियों के कई सिक्के जारी किए थे.
ऐसे में अकबर ने जब राम सिया का सिक्का जारी किया होगा तो उस वक्त हिंदू जनमानस पर इसका काफी प्रभाव पड़ा होगा. आज की पीढ़ी में से ज्यादातर को इस सिक्के के बारे में पता भी नहीं होगा. इसी तरह अकबर का एक ऐसा काम जिसे उसके कट्टर से कट्टर समर्थक भी नहीं बचा पाते, वो था चित्तौड़ आक्रमण. अकबर ने चार महीनों तक चित्तौड़ का घेरा डाले रखा था. चित्तौड़ के सारे निवासी किले के अंदर ही रहते थे. वो समर्पण को राजी नहीं थे. जैसे जैसे समय बढ़ता गया, अकबर की सेना के लिए रसद की समस्या होती गई और उससे अकबर की खीज बढ़ती चली गई. उसने एक सुरंग बनवाने की कोशिश भी की तो उसमें विस्फोट होने से उसके कई करीबी मर गए. ऐसे में एक बार गलती से अकबर की गोली से किले का सूबेदार जयमल मारा गया तो अकबर के लिए राह आसान हो गई. लेकिन उसकी खीज तब बढ़ गई जब महिलाओं ने किले के अंदर जौहर कर लिया और राजपूतो ने राजा उदय सिंह को खजाने के साथ पहले ही सुरक्षित निकाल दिया था. अब इतने दिन की जंग और उस पर हाथ भी कुछ नहीं लगा, तो गुस्से में अकबर ने किले के अंदर सभी को मार डालने का आदेश दिया. किसी किताब में यह आंकड़ा तीस हजार तो किसी में चालीस हजार बताया जाता है.
एक विदेशी यात्री ने तो लिखा है कि अकबर ने किले के अंदर के परिंदों को भी मारने का आदेश दिया क्योंकि वो किले की जहरीली हवा में जी रहे थे. आप सोचिए वो खजाना कितना बड़ा था, जो अकबर के हाथ से निकल गया था. उसी खजाने से उदय सिंह ने उदयपुर जैसा खूबसूरत शहर पहाडियों के बीचों बीच बनाया था. इतनी झीलें बनाई थीं कि उसे आज पूरी दुनियां में लेक सिटी के नाम से जाना जाता है, हॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग होती है. अकबर ने हिंदुओं के दिल पर ये घाव तो दिया ही, उसको कुरेद दिया चित्तौड़ विजय का फतहनामा जारी करके. उस फतेहनामा में साफ साफ लिखा कि, ”अल्लाह की खयाति बढ़े इसके लिए हमारे कर्तव्य परायण मुजाहिदीनों ने अपवित्र काफिरों को अपनी बिजली की तरह चमकीली कड़कड़ाती तलवारों द्वारा वध कर दिया. हमने अपना बहुमूल्य समय और अपनी शक्ति घिज़ा (जिहाद) में ही लगा दिया है और अल्लाह के सहयोग से काफिरों के अधीन बस्तियों, किलों, शहरों को विजय कर अपने अधीन कर लिया है. कृपालु अल्लाह उन्हें त्याग दे और उन सभी का विनाश कर दे. हमने पूजा स्थलों उसकी मूर्तियों को और काफिरों के अन्य स्थानों का विध्वंस कर दिया है.”
जाहिर है बाद के दिनों में अकबर के स्वभाव और दिल में भी परिवर्तन आया. सभी धर्मों के पुजारियों, साधुओं, विद्वानों से मुलाकात की और एक नया धर्म दीन-ए-इलाही भी चलाया था. उसको अपनी चित्तौड़ विजय और उसके बाद के नरसंहार पर भी अफसोस हुआ होगा. ये इस बात से भी लगता है कि उसने चित्तौड़ के दोनों वीरों जयमल और फत्ता की मूर्तियां बाद में आगरा के लाल किले में लगवाईं. कोई महान माने ना माने लेकिन इतना तय है कि उसने हिंदुओं के साथ रिश्ते सुधारने और हिंदुस्तान की सरजमीं को अपना बनाने की कोशिश तो की ही थी. लेकिन अगर कोई उसका एकतरफा आंकलन करके उसे एकतरफा महान बनाने की कोशिश करेगा तो उसे विरोध का सामना तो करना ही पड़ेगा.
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