नई दिल्ली. 13 अक्टूबर का दिन एक परिवार के लिए गम का भी दिन होता है खुशी का भी. क्योंकि इस दिन की वजह से बॉलीवुड को एक मंझा हुआ कलाकार मिला, तो इसी दिन ने बॉलीवुड से एक हरफनमौला गायक को छीन लिया. दरअसल, 13 अक्टूबर जहां दिग्गज अभिनेता अशोक कुमार का जन्मदिन है तो वहीं, ये दिन उनके छोटे भाई किशोर कुमार के लिए पुण्यतिथि है. जादुई आवाज के मालिक किशोर दा इसी दिन दुनिया को छोड़ कर चले गये थे. इनकी आवाज को फिल्मों के बड़े-बड़े स्टार अपने नाम करना चाहते थे. तो चलिये आज उनकी पुण्य तिथि पर जानते हैं उनसे जुड़े कुछ रोचक किस्सें.
किशोर कैसे खुला परिवार के लिए बॉलीवुड का रास्ता
किशोर कुमार का असली नामआभास कुमार गांगुली था. मौत के आभास के बारे में जब उनके बेटे अमित ने मीडिया को बताया तो सबको उनके असली नाम की बात याद आ गई. तीनों गांगुली भाइयों ने अपना नाम बदलकर ही बॉलीवुड में काम किया था. सरनेम गांगुली भी हटा दिया था. कुमद लाल गांगुली अशोक कुमार बन गए और कल्याण गांगुली अनूप कुमार. बॉलीवुड के बारे में तो इन तीनों ही भाइयों ने सोचा तक नहीं था. उनकी किस्मत खुली एक शादी के बाद. किशोर और अनूप से बड़ी और अशोक से छोटी उनकी बहन सती देवी की शादी हुई एक ऐसे शख्स से जो फिल्मी दुनियां में काम करता था. नाम था शशाधर मुखर्जी. उस दौर में जब हिमांशु राय ने देविका रानी के साथ मिलकर बॉम्बे टॉकीज शुरु किया तो वो उनसे जुड़ गए. बाद में उनके बेटे बॉलीवुड के बडे हीरो बने जॉय मुखर्जी, देव मुखर्जी और काजोल के पापा शोमू मुखर्जी. इस तरह ये तीनों हीरो अशोक कुमार और उनके भाइयों के भांजे थे. गांगुली परिवार बिहार के भागलपुर से ताल्लुक रखता है. उन दिनों वो बंगाल प्रेसीडेंसी में आता था.
किशोर के पैर की चोट ने खोल दिया गला
अशोक कुमार और किशोर कुमार में 19 साल का फर्क था. सो वो किशोर को काफी प्यार करते थे और किशोर उनके साथ हमेशा शरारत के मूड में थे. किशोर की शरारतों के बारे में एक इंटरव्यू में अशोक कुमार ने बताया था कि जब वो छोटे थे, तो पिताजी कंधे पर बैठाकर उन्हें घुमाने ले जाते थे, तो किशोर पूरे वक्त पिताजी के सर पर तबला बजाते हुए चलते थे. जब किशोर छोटे थे तो उनका गला बहुत खराब रहता था, हर वक्त खांसते रहते थे, एक पूरा वाक्य बोलने में वो कई बार खांसते थे, या गला साफ करते थे. लेकिन पैर की एक चोट ने उनका गला एकदम से ठीक कर दिया.
दरअसल, हुआ यूं कि किशोर के पैर की एक उंगली कट गई. डॉक्टर ने घाव पर मरहम लगाया और दर्द के लिए पीने की दवाई दी, लेकिन किशोर थे कि रोए जा रहे थे. कुल 22 घंटे रोए थे किशोर, बीच में दवाई पिलाई जाती थी, तो थोड़ी देर शांत हो जाते, फिर रोने लग जाते. अशोक कुमार ने एक इंटरव्यू में ये वाकया बताते हुए कहा कि इतना रोने से एक फायदा तो हुआ, किशोर की गले की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो गई, रोते रोते इतना रियाज हो गया कि गला पूरी तरह से खुल गया.
लॉस दिखाने के लिए बनाई थी किशोर ने ‘चलती का नाम गाड़ी’
तीनों भाइयों ने एक साथ मिलकर एक फिल्म भी बनाई चलती का नाम गाड़ी. इस फिल्म को बनाने की भी बड़ी दिलचस्प कहानी है. किशोर कुमार फाइनेंशियली बड़े परेशान रहते थे. उनके मरने तक उन पर इनकम टैक्स के केसेज खत्म नहीं हुए. इन्हीं इनकम टैक्स के केसेट से बचने के लिए उन्होंने दो फिल्में प्रोडयूस करने का ऐलान कर दिया. एक बंगाली थी और दूसरी हिंदी की चलती का नाम गाड़ी. घर के लोगों को पैसा कम देते और बाद में फिल्मों में ज्यादा लॉस दिखा देते. ऐसा उनका आइडिया था, लेकिन मामला उलट गया. ये फिल्म सुपरहिट हो गई. हालांकि बाद में किशोर भाइयों को लेकर एक और फिल्म लेकर आए, बढ़ती का नाम दाढ़ी, उसके प्रमोशन के लिए पूरी यूनिट प्रीमियर पर बढ़ी हुई दाढ़ियों के गेटअप में भी आई थी.
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