October 10, 2017 8:00 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: सदी के महानायक कहने जाने वाले अमिताभ बच्चन कल यानी 11 अक्टूबर को अपने जीवन के 75 वर्ष पूरे कर लेंगे. शहंशाह, महायनाक, बिग बी जैसे कई उपनाम आज अमिताभ के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. अमिताभ बच्चन के जन्मदिन के उपलक्ष में आज हम आपको उनके जीवन से जुड़ी 75 अनसुनी कहानियां बताएंगे. इस कड़ी की तीसरी किश्त में पढ़िए अमिताभ की पांच अनसुनी कहानियां. इस किश्त में हम आपको टीनू आनंद से अमिताभ की दोस्ती के किस्सों के अलावा ये भी बताएंगे की अमिताभ से पहले उनकी आवाज लोगों तक पहुंची थी.
यही नहीं देवआनंद और राजकुमार की छोड़ी हुई फिल्म अमिताभ के लिए वरदान कैसे साबित हुई ये भी आपको इस सीरीज में पता चलेगा. साथ हम आपको ये भी बताएंगे कि कैसे आज अरबों रूपये के मालिक अमिताभ ने कितने रूपये में शुरू की थी अपने करियर की शुरूआत. तो लीजिए पेश है 75 के महानायक की तीसरी किश्त…
बच्चन का लम्बे दांतों वाला जिगरी यार
अमिताभ बच्चन जब कोलकाता की शिपिंग कंपनी से नौकरी छोड़कर मुंबई में रोल पाने के लिए एड़ियां रगड़ रहे थे, तब कई लोग उन्हें अपना नाम बदलने का सुझाव दे रहे थे. बचपन में अमिताभ का नाम इंकलाब रखा गया था, सुमित्रा नंदन पंत ने उसे अमिताभ कर दिया था, इसलिए अमिताभ अब बदलने को राजी नहीं थे. इसी दौरान ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म में से टीनू आनंद ने अपना रोल छोड़ दिया. टीनू को डायरेक्शन में जाना था और सत्यजीत रे के साथ काम करने का मौका मिल रहा था.
टीनू की गर्लफ्रेंड ने उन्हें अपनी जगह अमिताभ की सिफारिश करने को बोला, टीनू ने अमिताभ का फोटो अब्बास साहब को दिया. कहते हैं नरगिस भी पहले अमिताभ के लिए अब्बास को बोल चुकी थीं. अब्बास ने अमिताभ को बुलाया, जहां अमिताभ ने कहा कि ज्यादा लम्बाई की वजह से रोल नहीं मिलते. तब अब्बास साहब को पता चला कि ये तो मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन के साहबजादे हैं तो शर्त रख दी कि अगर हरिवंश जी की इजाजत होगी तभी मैं फिल्म में लूंगा. इस तरह अमिताभ को मिली सात हिंदुस्तानी, जो गोवा के मुक्ति संग्राम पर बनी, इसी के साथ अमिताभ और टीनू आनंद की दोस्ती गहरी होती चली गई. उसके बाद कई मौकों पर अमिताभ ने भी टीनू की मदद की.
कितनी बार हुए रिजेक्ट हुए अमिताभ बच्चन
अमिताभ के कैरियर से आप अंदाज लगा सकते हैं कि एक बड़े आदमी का बेटा होने के बावजूद उनकी जिंदगी में कितना स्ट्रगल थाॉ. पहले वो इंजीनियर बनना चाहते थे फिर एयरफोर्स उनकी पहली पसंद बन गई. उनकी जो जॉब कोलकाता में लगी, उसमें सेलरी थी पांच सौ रुपए, जिसमें से कटके करीब 460 रुपए मिलते थे. कंपनी का नाम था ‘Bird & Co Limited’, जो एक शिपिंग और फ्रेट ब्रोकर कंपनी थी. अमिताभ कोलकाता में जॉब की तलाश में 1962 में आए थे और करीब सात-आठ साल यहां रुके.
उनको पहली फिल्म सात हिंदुस्तानी टीनू आनंद के रोल छोड़ने की वजह से मिली, तो एक रेशमा और शेरा के बारे में कहा जाता है कि उसमें एक गूंगे का रोल सुनील दत्त ने उन्हें इसलिए दे दिया क्योंकि नरगिस को इंदिरा गांधी ने बच्चन के लिए एक सिफारिशी लैटर लिखा था. बच्चन को एक बार ऑल इंडिया रेडियो ने भी रिजेक्ट कर दिया था, उन्हें वो आवाज पसंद नहीं आई, जिसका बाद में देश दीवाना हो गया. उनकी फिल्म जंजीर सुपरहिट होने से पहले वो करीब 12 फ्लॉप फिल्में दे चुके थे. ऐसे में बच्चन के जीवन से सीखा जा सकता है कि रिजेक्शन का असर अपने काम या प्रयासों पर ना पड़ने दें.
देवआनंद का अनजाने में अहसान
देवआनंद ने अगर एक फिल्म ना रिजेक्ट की होती तो आज अमिताभ बच्चन इतने ब़डे सुपरस्टार नहीं बन पाते. वो फिल्म थी अमिताभ की जिंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग प्वॉइंट जंजीर. दरअसल प्रकाश मेहरा सबसे पहले इस फिल्म का आइडिया लेकर देव साहब के ही पास गए थे. उन्हें ये स्क्रिप्ट काफी पसंद आई थी, लेकिन जब उन्हें पता चला कि फिल्म में ना कोई रोमांटिक गाना है और हीरो के हिस्से में कोई नाच गाना तो उन्हें अजीब लगा.
उन्होंने प्रकाश मेहरा से कहा भी कि यार एक रोमांटिक गाना तो डाल दो. लेकिन मेहरा राजी नहीं हुए तो देव साहब को लगा कि इससे उनकी रोमांटिक हीरो की इमेज खराब होगी, उन्होंने फिल्म करने से मना कर दिया. हालांकि प्रकाश मेहरा ये फिल्म लेकर राजकुमार के पास भी गए, लेकिन राज कुमार ने अजीब सा जवाब देकर उन्हें मना कर दिया, राजकुमार का जवाब था- स्टोरी तो हमें काफी पसंद आई जानी, लेकिन आपकी शक्ल पसंद नहीं आई. ऐसे में फिल्म चली गई अमिताभ बच्चन के खाते में और फिर जो जंजीर ने इतिहास रचा वो शायद देश के बच्चे बच्चे को पता है.
जब अमिताभ बने चपरासी
हमेशा ऐसा नहीं होता कि कोई एक हीरो फिल्म छोड़े और दूसरा हीरो इसे लपके और फिल्म सुपरहिट हो जाए. अमिताभ बच्चन के साथ भी ऐसा ही हुआ, जब जीतेन्द्र की छोड़ी फिल्म हाथ लगने पर भी अमिताभ बच्चन की वो फिल्म बुरी तरह पिट गई. दरअसल जीतेन्द्र ने भी वो फिल्म मजबूरी मे छोड़ी थी. मामला ये था कि उन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में एक रूल बन गया था कि कोई भी हीरो 6 से ज्यादा फिल्मों में एक बार में काम नहीं करेगा. निर्माता डेट्स ना मिलने से परेशान थे और नए हीरोज फिल्में ना मिलने से.
ऐसे में हर किसी ने ना चाहते हुए भी इसे फॉलो करना शुरू कर दिया. चूंकि जितेन्द्र की 6 फिल्में फ्लोर पर थीं तो वो रोल अमिताभ बच्चन के पास चला गया. इस फिल्म का नाम था ‘प्यार की कहानी’ और इसमें उनके साथ थे तनूजा, अनिल धवन और फरीदा जलाल. ये एक तमिल फिल्म का रीमेक थी. अमिताभ का रोल इस फिल्म में एक चपरासी का था, मजबूरी में अमिताभ ने ये फिल्म तो कर ली, लेकिन उनका ये फैसला निराशाजनक साबित हुआ. ये फिल्म एक बड़ी फ्लॉप फिल्म साबित हुई.
बच्चन के चेहरे से पहले किया बच्चन की आवाज ने बड़े पर्दे पर डेब्यू
बच्चन के चेहरे से पहले किया बच्चन की आवाज ने बड़े परदे पर डेब्यू अगर आप इस लिंक को इंटरनेट पर क्लिक करेंगे तो पाएंगे एक बंगाली फिल्म ‘भुवन शोम’ की नंबरिंग, इसी के साथ आपको एक आवाज फिल्म के मुख्य पात्रों उत्पल दत्त, सुहासिनी मुले आदि का परिचय करवाएगी, इलाके का परिचय करवाएगी. ये आवाज थी अमिताभ बच्चन की. बड़े परदे पर पहली बार इसी आवाज के रूप में दस्तक थी कभी बड़े बच्चन ने. भुवनशोम को कभी मृणालसेन ने बनाया था, उत्पल दत्त लीड रोल में थे, सुहासिनी मुले की पहली फिल्म थी और नरेटर यानी सूत्रधार थे अमिताभ बच्चन.
ये उन दिनों की बात है, जब वो कोलकाता में शिपिंग कंपनी में काम कर रहे थे, 300 रुपए में उन्हें इस वॉइस ओवर को करने का मौका मिला. कॉलेज में थिएटर करने के बाद, बच्चन ने चार साल तक कोलकाता की शिपिंग कंपनी में नौकरी की, एक तरह से फिल्मी दुनियां में ये उनकी पहली कमाई थी. ये फिल्म भी 1969 में रिलीज हुई थी. हालांकि अमिताभ बच्चन ने बाद में राजेश खन्ना और जया बच्चन की फिल्म बावर्ची के लिए भी बतौर सूत्रधार अपनी आवाज दी थी. फिल्म के शुरूआत में आप सुन सकते हैं. भुवन शोम पहली फिल्म थी, जिसे नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ने फंड किया थाॉ. बाद में इस फिल्म को नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स में बेस्ट फीचर फिल्म का अवॉर्ड भी मिला, उत्पत्त दत्त को बेस्ट एक्टर का और मृणाल सेन को बेस्ट डायरेक्टर का.