मुंबई: अगर आप एंटरटेनमेंट के मकसद से इस फिल्म को देखने का मूड बनाते हैं तो शायद आपको बीच से ही उठना पड़े, इतनी बोर लगती है. दरअसल ये नए दौर में रिश्तों का तानाबाना समझाने वाली एक सेंसेबिल फिल्म है, जिसके लिए शायद बड़े परदे पर लोग पैसे खर्च करना कम ही लोग पसंद करें. हां, यही फिल्म आपको वेबसीरीज या टीवी पर देखने को मिलेगी तो पैसा वसूल लग सकती है. जाहिर है सैफ अली खान को भी पता होगा कि वो एक सौ या दो सौ करोड़ क्लब वाली फिल्म नहीं बल्कि एक डिफरेंट जोनर की फिल्म कर रहे हैं. या हो सकता है सैफ और शैफ के उच्चारण में उनको ऐसा साम्य नजर आया हो कि उनको लगा कि हो इस फिल्म का हीरो और कोई हो ही नहीं सकता. लेकिन सच ये भी है कि सैफ जैसा बड़ा स्टार फिल्म में ना होता तो इतनी भी चर्चा नहीं होती.
कहानी 2014 में हॉलीवुड में आई एक फिल्म शैफ का हिंदी रीमेक है, जिसमें सैफ अली खान ने एक ऐसे मिडिल एज शैफ का रोल किया है, जो अपने खाने बनाने के शौक के चलते कम उम्र में घर से भाग जाता है और एक दिन अमेरिका में बड़ा शैफ बन जाता है. इस सपने को पूरा होने के चलते उसका बीवी से भी तलाक होता है और बेटे को भी भारत में ही छोडना पड़ता है.
लेकिन वो दूरी उसके काम पर असर डालती है और नेचर पर भी, खाना में वो नए एक्सपेंरीमेंट नहीं कर पाता, ग्राहकों पर हाथ उठाता है औऱ इसके चलते नौकरी चली जाती है. ब्रेक लेकर जब वो बेटे से मिलने कोच्चि आता है तो फिर कहानी ऐसे मोड़ लेती है कि वो कुछ दिनों के लिए डबलडेकर बस में रेस्तरां खोल देता है. कहानी में एक औऱ किरदार है उसकी तलाकशुदा वीबी का खास दोस्त मिलिंद सोमन, जो उसकी ये बिजनेस शुरू करने में मदद करता है. बेटे के साथ उसकी नोकझोंक, एक्स वाइफ के दोस्त से जलन, उसको ये लगना कि वो कुछ मिस कर रहा था, ये सब बातें सैफ पर असर डालती हैं और फिल्म एक पॉजीटिव नोट पर खत्म होती है.
आज के दौर में जैसे सपनों के पीछे भागने के चलते रिश्ते बिखर रहे हैं, नए रिश्ते भी फटाफट बन रहे हैं, उस दौर में बच्चो की क्या दिक्कतें हैं या खुद रिश्ते से निकलकर अकेले रहने वालों पर क्या गुजर रही है, उसको लेकर ये फिल्म बनी है. हालांकि पूरी फिल्म जायकेदार खाने और फूड बिजनेस को डिसकस करती रहती है. शायद पहली हिंदी फिल्म होगी जो केरल के किसी शहर में बेस्ड होगी, अमेरिका, दिल्ली और अमृतसर की भी शूटिंग है, सो फिल्म में काफी फीलगुड एलीमेंट हैं. बाप-बेटे के बीच काफी टची-फनी डायलॉग्स हैं, लेकिन फिल्म में पेस नहीं है, गाने बस ठीक ठाक हैं, एक्शन या कॉमेडी भी नहीं है, देखा जाए तो इमोशंस की काफी गुंजाइश हो सकती थी, वो भी नहीं है.
एक्टिंग में सैफ हमेशा की तरह ही लगे है, मलायलम तमिल फिल्मों की एक्ट्रेस पदमप्रिया जानकीरमन मलयाली लडकी की ही भूमिका में हैं, निजी जिंदगी की तरह ही वो फिल्म में भी भरतनाट्यम डांसर हैं. उनकी एक्टिंग सहज है, भले ही दूसरी हिंदी फिल्म है उनकी, 2009 में स्ट्राइकर आई थी, आप उन्हें कम नहीं आंक सकते, खासतौर पर उनकी स्माइल. फिल्म का अहम किरदार है सैफ-पदमप्रिया के बेटे के रोल में स्वर काम्बले, काफी हद तक उसने भी किरदार में उतरने की कोशिश की है.
मिलिंद समय के साथ एक्टिंग में भी मैच्यॉर लगे हैं. हालांकि एयरलिफ्ट जैसी शानदार फिल्म दे चुके डायरेक्टर राजा कृष्ण मेनन निराश करते हैं, फिल्म में पेस की काफी जरूरत थी. तो ये ऐसी फिल्म नहीं कि आप मिस करें, लेकिन अगर आप रिश्तों की ऐसी ही भूलभुलैया से गुजर हों, तो आपको ये फिल्म देखकर ही समझ आएगा— काम से प्यार करो, लेकिन काम के चक्कर में कहीं प्यार ना खो जाए, जो लाइफ को चलाने के लिए ज्यादा जरूरी है.