बर्थडे स्पेशल: जानिए किस डायरेक्टर से खौफ खाते थे अमिताभ बच्चन

केबीसी के सैट पर एक बार जय यानी अमिताभ बच्चन ने वीरू यानी धर्मेन्द्र को बुलाया. जब जय के सामने वीरू हॉट सीट पर बैठे तो सवाल पूछने की जिम्मेदारी वीरू ने ले ली, और पहला ही सवाल था, “वो कौन सा डायरेक्टर था जिससे हम दोनों ही कांपते थे..?’’ थोड़ी हिचकिचाहट के बाद अमिताभ बच्चन भी दे ही देते हैं सही जवाब. जवाब था हृषिकेश मुखर्जी. नई पीढ़ी में से बहुतों ने उनका नाम नहीं सुना होगा, लेकिन अमिताभ बच्चन ने एक इंटरव्यू में माना था कि वो उनके गॉडफादर जैसे थे. अपने कैरियर के शुरूआत में अमिताभ और जया दोनों को जितनी मदद हृषिकेश मुखर्जी से मिली, शायद और किसी से नहीं.

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बर्थडे स्पेशल: जानिए किस डायरेक्टर से खौफ खाते थे अमिताभ बच्चन

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  • October 5, 2017 12:38 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
मुंबई: केबीसी के सैट पर एक बार जय यानी अमिताभ बच्चन ने वीरू यानी धर्मेन्द्र को बुलाया. जब जय के सामने वीरू हॉट सीट पर बैठे तो सवाल पूछने की जिम्मेदारी वीरू ने ले ली, और पहला ही सवाल था, “वो कौन सा डायरेक्टर था जिससे हम दोनों ही कांपते थे..?’’ थोड़ी हिचकिचाहट के बाद अमिताभ बच्चन भी दे ही देते हैं सही जवाब. जवाब था हृषिकेश मुखर्जी. नई पीढ़ी में से बहुतों ने उनका नाम नहीं सुना होगा, लेकिन अमिताभ बच्चन ने एक इंटरव्यू में माना था कि वो उनके गॉडफादर जैसे थे. अपने कैरियर के शुरूआत में अमिताभ और जया दोनों को जितनी मदद हृषिकेश मुखर्जी से मिली, शायद और किसी से नहीं.
 
जब अमिताभ और ध्रर्मेन्द्र दोनों उनकी बातें केबीसी के सैट पर कर रहे थे, तो उनकी बातों में ह्रषिकेश मुखर्जी के लिए खौफ कम,  इज्जत ज्यादा झलक रही थी. लेकिन ये तय है कि ह्रषिकेश मुखर्जी सैट पर काफी सख्त रहते थे. उनकी सख्ती के आगे ना धर्मेन्द्र की चलती थी और ना अमिताभ बच्चन की. उनकी सख्त मिजाजी को इस उदाहरण से बेहतर समझ सकते हैं. एक सीन शूट होना था, जो ‘आनंद’ फिल्म का क्लाइमेक्स सीन था. इस सीन में आनंद यानी राजेश खन्ना मर जाते हैं और उसके बाद उसके मित्र भास्कर यानी अमिताभ बच्चन को रिएक्ट करना था. तब अमिताभ बच्चन काफी तैयारी के साथ आए थे, फूट फूट कर रोने के लिए, रोते रोते चिल्लाने के लिए.. वो इस सीन को इतना यादगार बनाने के मूड में थे कि लोग याद करें. वैसे भी फिल्म के लीड हीरो राजेश खन्ना थे और अमिताभ को उसी छोटे रोल में अपनी छाप छोड़नी थी.
 
 
लेकिन ह्रषि दा ने अमिताभ की सारी प्लानिंग पर पानी फेर दिया. उन्होंने बच्चन को ये सब करने से साफ मना कर दिया. वैसे भी वो अपने सीन काफी पहले से अपने एक्टर्स को भी नहीं बताते थे. इस सीन में वो नहीं चाहते थे कि ऑडियंस का फोकस आनंद से हटकर अमिताभ के रोल भास्कर पर हो,  इससे लीड करेक्टर आनंद के कमजोर हो जाने का डर था. उन्होंने अमिताभ से कहा- तुम्हें रोना नहीं हैं बल्कि आनंद पर गुस्सा होना है, कि वो इतनी जल्दी इस दुनियां से क्यों चला गया तुमको अकेला छोड़कर. तब मन मारकर बच्चन को वही करना पड़ा, जो मुखर्जी ने बताया.  इस तरह फिल्म का फोकस भले ही आनंद पर ही रहा.. लेकिन बाबू मोशाय अमिताभ बच्चन भी छा ही गए. उनको रोल कहीं से भी कमजोर नहीं लगा.
 
ऐसा नहीं था कि खाली अमिताभ ही मुखर्जी की सख्ती का शिकार होते थे. धर्मेन्द्र को भी हृषिकेश मुखर्जी का गुस्सा झेलना पड़ा था और धर्मेन्द्र की आवाज नहीं निकलती थी ह्रषि दा के आगे. चुपके चुपके फिल्म में अमिताभ के साथ धर्मेन्द्र भी थे. धर्मेन्द्र ही लीड रोल में थे. फिल्म के क्लाइमेक्स सीन की शूटिंग थी, और उसके लिए सैट पर जब असरानी सूट पहनकर पहुंचे और धर्मेन्द्र ड्राइवर की ड्रेस में तो दोनों को ही नहीं पता था कि उन्हें क्या करना है और ना ये पता था कि सीन क्या है. धर्मेन्द्र ने असरानी से पूछा, ये सब क्या चल रहा है, तुझे सूट कैसे मिला और मुझे ड्राइवर की ड्रेस, ये ह्रषिकेश मुखर्जी सूट तो अपने बाप को भी नहीं देगा.
 
 
दरअसल ह्रषि दा अपने सीन को पहले से रिवील नहीं करते थे, पहले जब असरानी ने उनसे और राही मासूम रजा से सीन के बारे में पूछा तो किसी ने कोई जवाब नहीं दिया, और मिडिल क्लास बेस्ड फिल्में बनाने वाले ह्रषि दा की फिल्मों में सूट देखकर सबका चौंकना लाजिमी था. ह्रषि दा इसके लिए तैयार थे. जब धर्मेन्द्र ने कहा—मुखर्जी सूट तो अपने बाप को भी नहीं देगा तो दूर से उन्होंने धर्मेन्द्र की बात तो शायद नहीं सुनी लेकिन समझ गए कि वो धर्मेन्द्र क्यों परेशान है. असरानी ने पूरे वाकए को बाद में एक इंटरव्यू में बताया था, असरानी के मुताबिक—ह्रषि दा ने दूर से ही चिल्लाकर बोला- ‘’ए धरम.. तुम असरानी से क्या पूछ रहे हो? सीन के बारे में ना? अगर तुम्हारे अंदर स्टोरी का कोई सेंस होता तो तुम हीरो बनते क्या”. धर्मेन्द्र के मुंह से आवाज भी नहीं निकली, मानो सांप सूंघ गया, वो तो ये सोचकर हैरान थे कि क्या ह्रषि दा ने वाकई में उनकी बाप वाली बात भी सुन ली क्या?
 
दिलचस्प बात तो ये हुई कि उसके बाद सैट पर अमिताभ बच्चन भी आए और वो भी असरानी को सूट में देखकर चौंक गए. उनका भी असरानी से वही सवाल था, आते ही उसके सूट और सीन के बारे में पूछा तो ह्रषिकेश मुखर्जी ने फौरन धर्मेन्द्र से कहा, धरम उसे बताओ जो मैंने तुम्हें बोला कि अगर तुम लोगों में स्टोरी का सेंस होता तो हीरो नहीं बनते. चलो गेट टू वर्क. दोनों की बोलती हो गई बंद. और ह्रषि दा की ये सख्ती ही तो थी जो सालों बाद भी दोनों जय वीरू मिले तो भूल नहीं पाए.
 
 
हृषिकेश मुखर्जी ने अमिताभ और जया को कई फिल्मों में मौका दिया. अमिताभ की उनके साथ वाली फिल्में थीं, आनंद, गुड्डी, बावर्ची, अभिमान, नमक हराम, मिली, चुपके चुपके, गोलमाल, जुर्माना और बेमिसाल. इतना ही नहीं मनमोहन देसाई के कहने पर मुखर्जी ने अमिताभ की फिल्म कुली को एडिट भी किया, क्योंकि मुखर्जी मूल रुप से वीडियो एडीटर ही थे, जो बाद में डायरेक्टर बन गए थे. आप फिल्मों के नाम देखकर ही समझ सकते हैं कि किस तरह की मिडिल क्लास सिम्पल फिल्में बनाते थे मुखर्जी. एंग्री यंग मैन अमिताभ को वो बिलकुल ही आम आदमी की भूमिकाओं में कास्ट करते थे.
 
ये मुखर्जी थे जिनको अमिताभ और जया ने अपने अपने मां बाप को बताने के बाद अपनी शादी का फैसला बताया था. उसके बाद मुखर्जी ने दोनों के साथ मिली, अभिमान और चुपके चुपके जैसी फिल्में बनाईं. हृषि दा अमिताभ को ‘महाराज’ के नाम से बुलाते थे. 
 
रामू से पहले मुखर्जी ही वो फिल्मकार थे, जिनके साथ अमिताभ बच्चन ने सबसे ज्यादा फिल्में की थीं, पूरी दस फिल्में और ग्यारहवीं कुली. मुखर्जी के साथ एक बड़ी दिलचस्प बात ये थी कि वो रीटेक लेने में भरोसा नहीं करते थे, लोग उन्हें कंजूस कहते थे. ना ही वो एक्स्ट्रा विजुअल्स शूट करते थे. ऐसा लगता था मानों फिल्म पहले ही उनके दिमाग मे चल रही है. अमिताभ ने एक इंटरव्यू में मुखर्जी के बारे में बताया कि, जब हमें लगता था कि- “एक और टेक होना चाहिए ताकि और बेहतर तरीके से एक्ट कर सकें, तो वो शर्त रख देते थे कि अगर एक और टेक चाहिए तो रील का खर्च तुम लोगों के पैसे से कटेगा.“ हृषि दा के बारे में सबसे दिलचस्प जानकारी शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी बायोग्राफी में दी है, शत्रु के मुताबिक, ‘’मैं कभी किसी भी फिल्म के सैट पर टाइम से नहीं पहुंचता था, लेकिन हृषि दा की फिल्मों की शूटिंग में मैंने कभी लेट होने की हिम्मत नहीं हुई.“

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