नई दिल्ली: अमिताभ बच्चन राजीव गांधी के दोस्त थे, उनके आग्रह पर वो राजनीति में भी गए, इलाहाबाद से चुनाव लड़े और जीते भी. लेकिन चुनाव लड़ने से पहले ही बच्चन की गांधी परिवार से करीबी किसी से छिपी नहीं थी. ऐसे में जब इमरजेंसी लगी और इस दौरान कई फिल्मों, फिल्मी दुनियां के कई लोगों और फिल्मी मैगजींस पर जो बैन लगा, उसका खामियाजा भुगता अमिताभ बच्चन ने. जी हां, गांधी परिवार से नजदीकी बच्चन को उस दौर में भारी पड़ गई. जब फिल्मी मैगजींस पर भी सेंसर लागू कर दिया गया तो उन्होंने गुस्सा उतारा अमिताभ बच्चन पर और लगा दिया उनपर एकतरफा अघोषित बैन, इससे बिग बी भी बिफर गए और तब ये दोतरफा बैन करीब 13 साल तक चला.
दरअसल इमरजेंसी के बाद फिल्मी मैगजींस पर भी सेंसरशिप लागू कर दी गई थी. उस वक्त फिल्मों की खबर जानने के लिए ना तो अखबारों के फिल्मी सप्लीमेंट होते थे, ना एंटरटेनमेंट चैनल्स और ना सोशल मीडिया. ऐसे में फिल्मी न्यूज के लिए फिल्मी मैगजींस ही अकेला साधन थीं. एडीटर्स को लगा कि बच्चन गांधी के इतने करीबी हैं, ये उनकी सलाह पर ही हुआ होगा. जब इंदिरा गांधी 1977 में चुनाव हार गईं तो स्टार डस्ट, सिने ब्लिट्स, स्टार एंड स्टाइल जैसी मैगजीन के सम्पादकों ने एक मीटिंग की और अमिताभ बच्चन को बैन कर दिया और उनके फोटोज, खबरें छापना बंद कर दिया. इंदिरा की सरकार गिरने के बाद अब उनको सरकार का भी कोई डर नहीं था.
कुछ दिनों तक तो अमिताभ को खबर ही नहीं लगी. बाद में जब अमिताभ को इस अनऑफीशियल बैन के बारे में पता चला तो गुस्से में अमिताभ ने भी उन्हें बैन कर दिया और ऐसी सभी मैगजींस को इंटरव्यू देना और फोटोशूट करना बंद कर दिया. हालांकि फौरी तौर पर अमिताभ पर बैन की वजह दूसरी ही थी. भावना सोमैया अपनी किताब अमिताभ बच्चन: द लीजेंड में इसकी असल वजह बताती हैं, “दरअसल दिलीप कुमार ने एक मैगजीन का शो बायकॉट किया था और बच्चन भी उनके साथ हो लिए. जब मैगजीन को पता चला कि ये दोनों इस बायकॉट के पीछे हैं, तो दोनों को बैन कर दिया”. इस वजह से बच्चन को बैन करने का मामला बाद में इमरजेंसी से जुड़ गया.
ये मैगजीन थी स्टार डस्ट. दरसल मामला ये था कि मशहूर फिल्म मैगजीन स्टार डस्ट उन दिनों अपनी चटखारेदार खबरों को लेकर चर्चा में रहती थी, स्टार उसमें छपना भी चाहते थे और उसकी पर्सनल जिंदगी के खुलासों से भी परेशान थे. लेकिन ना टीवी ना सोशल मीडिया और ना अखबारों के डेली एंटरटेनमेंट सप्लीमेंट्स, तो प्रमोशंस के लिए सहारा इन्हीं मैगजींस का था.
वैसे भी देश भर में ही नहीं फिल्मी दुनियां के बड़े बड़े चेहरे इन मैगजींस के जरिए फिल्मी सितारों की खबरों के बारे में जान पाते थे. जब स्टार डस्ट ने आर्मी वाइफ्स की मदद के लिए एक चैरिटी शो किया तो दिलीप कुमार को लगा यलो जर्नलिज्म करने वाली मैगजीन के शो का बायकॉट होना चाहिए, सो दिलीप कुमार ने अपने घर पर स्टार्स की मीटिंग बुलाई, जिसमें बच्चन को भी सायरा ने फोन कर के घर बुलाया. जब स्टार डस्ट के मालिक को इस बात की खबर लगी तो उन्होंने बच्चन का एक इंटरव्यू नेगेटिव टोन के साथ छाप दिया, जिसको बच्चन ने भरपूर रुकवाने की कोशिश की.
अभी अमिताभ की ये तनातनी स्टार डस्ट के साथ ही थी, लेकिन जैसे ही इमरजेंसी का ऐलान हुआ, कई फिल्मी मैगजींस और अखबारों पर भी सेंसरशिप लागू हो गई तो फिल्मी मैगजींस को लगा कि ये सब राजीव गांधी के करीबी दोस्त अमिताभ की कारगुजारी है. तब सबने एक साथ लगा दिया बच्चन की खबरों पर बैन. आलम ये था कि अगर किसी फोटो में बच्चन भी होते थे, तो उसे या तो छापा नहीं जाता था या फिर बच्चन को साइड से काट दिया जाता था, तो ग्रुप फोटो शूट या फिल्मी ईवेंट के दौरान बच्चन खुद ही साइड में या थोड़े दूर खड़े होने लगे, ताकि उनका फोटो छपने से पहले क्रॉप किया जा सके. ऐसे तो ये बैन 12-13 साल चला लेकिन इसमें एक इमोशनल टर्न सात साल बाद आया यानी 1982 में.
अमिताभ को चोट लगी तो पूरा देश उनके लिए मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों में दुआ मांगने लगा, फिल्मी मैगजींस के मालिक भी फैंस का अमिताभ के लिए ये भावनाओं का ये ज्वार देखकर झुक गए. खुद स्टारडस्ट के मालिक नारी हीरा ने अमिताभ की तबियत का हाल जाना. स्टार डस्ट ने भी बैन तोड़कर एक स्पेशल एडीशन अमिताभ के लिए निकाला. जब वो ठीक हुए तो नारी हीरा से मिलने जा पहुंचे. अमिताभ ने नारी हीरा से पूछा कि आपने ये लेख क्यों लिखा, आप तो नाराज थे मुझसे? तो नारी हीरा के जवाब ने अमिताभ को लाजवाब कर दिया, वो जवाब था- “हम ये तो चाहते थे कि आप फेल हो जाएं, लेकिन ये बिलकुल नहीं कि आप मर जाएं.“ हालांकि उस मीटिंग में गिले शिकवे दूर हो गए, लेकिन बच्चन और मीडिया का ये अलगाव चलता रहा.
अमिताभ के काम पर वापस आने के बाद फिर से वही प्रेक्टिस शुरू हो गई. ना बच्चन किसी को इंटरव्यू देते थे और ना कोई उनके बारे में कुछ छापता था. ये वो दौर था, जब जिसमें अमिताभ स्टार से सुपरस्टार बन गए, दीवार, कुली, खून पसीना, परवरिश, त्रिशूल, डॉन, मुकद्दर का सिकंदर, द ग्रेट गैम्बलर, मिस्टर नटवरलाल, सुहाग, काला पत्थर, दोस्ताना, लावारिस, नसीब, सिलसिला, कुली, शक्ति, मर्द, गिरफ्तार और शहंशाह जैसी सुपरहिट फिल्में रिलीज हुईं, सुपरहिट भी हुई और वो भी बिना मीडिया की मदद के.
इधर शहंशाह के बाद से अमिताभ की पहली पारी का डाउन टाइम शुरू हुआ, उधर स्टार डस्ट के पब्लिशर नारी हीरा की नाराजगी भी दूर हो गई थी. इधर अमिताभ का नाम बोफोर्स स्कैम की वजह से भी नेगेटिव खबरों में था. 1989 में वीपी सिंह की सरकार बन गई और बोफोर्स स्कैम में बच्चन का नाम आने से वो परेशान थे. तब उन्होंने अजूबा के सैट पर अपने पीआर टीम के गोपाल पांडेय के जरिए कई पत्रकारों को मिलने बुलाया. सबसे बातचीत की, इसी बातचीत में उन्होंने अपनी सफाई तो दी ही, ये भी कहा कि मुझे जेल हो सकती है. सालों बाद बच्चन का इंटरव्यू छपा तो काफी चर्चा में रहा, हर कोई बोफोर्स मुद्दे पर उनकी बात सुनना चाहता था. वैसे भी अब वो राजनीति छोड़ चुके थे, उन्होंने ये गलतफहमी भी दूर की कि इमरजेंसी में सेंसरशिप में उनका कोई हाथ था. तब जाकर ये दोतरफा बैन ऑफीशियली खत्म हो पाया.