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फिल्म रिव्यू: अकेली ‘हसीना’ के कंधे पर पूरी फिल्म, डगर इतनी आसां नहीं

नई दिल्ली: जिस तरह से ‘भूमि’ संजय दत्त के फैन के लिए है, उसी तरह से श्रद्धा कपूर के फैन्स के लिए ‘हसीना पारकर’ बनी है, रिस्क था और ये फिल्म भले ही इतना ना चले लेकिन श्रद्धा ने किरदार में घुसने की ईमानदार कोशिश जरूर की है.
समझ आपको ये नहीं आएगा कि इस महीने दो फिल्मों में दाऊद का किरदार था, और दोनों में उसका नाम लेने से बचते रहे डायरेक्टर. डैडी में उसका नाम सारे ओरिजनल करेक्टर्स के सही नाम होने के वाबजूद मकसूद रखा गया तो हसीना में उसे बस भाई बोलते रहे. चलते चलते परदे पर जरूर फोटो के साथ बताया गया कि सिद्धांत कपूर दाऊद के रोल में था, वो भी तक जब आधी ऑडियंस उठ चुकी थी.
फिल्म को ऐसे प्रजेंट किया गया है, जैसे किसी न्यूज चैनल में दो एंकर गैस्ट्स के साथ स्टूडियोज में लाइव बैठते हैं और बीच-बीच में बहस करते रहते हैं और उन्हें रोककर स्टोरी पैकेज भी बीच में चला देते हैं, फिर आपस में बात करते हैं, फिर दूसरी स्टोरी पैकेज चला देते हैं.
इसी तरह हसीना में भी कोर्ट से शुरू हुई फिल्म कोर्ट पर ही खत्म हो जाती है और बहस के दौरान ही किश्तों में फ्लैशबैक चलता है. जहां डैडी में हर किरदार अपनी अपनी स्टोरी के जरिए फिल्म की कहानी को आगे बढ़ा रहा था, हसीना में ये जिम्मेदारी दो महिलाओं के सर पर है. हसीना पारकर यानी श्रद्धा कपूर और विपक्षी वकील के रोल में प्रियंका सेठिया.
कहानी हसीना पारकर के नजरिए से दिखाई गई है कि कैसे दाऊद ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में स्मगलिंग के फील्ड में उतरता है, लेकिन पुलिसवालों के चलते गैंगवार में फंस जाता है और फिर दुबई भाग जाता है, वहीं से गैंग ऑपरेट करता है. लेकिन कैसे डोंगरी की औरतें बाबरी मस्जिद गिराने के बाद हुए दंगों के दौरान उसे चूड़िंया भेजती हैं और तब दाऊद मुंबई ब्लास्ट को अंजाम देता है. इसमें दाऊद के बिगड़ने, भाई बहन के प्यार, भाई साबिर का मर्डर, अरुण गवली गैंग से झगड़े में उसके पति का मर्डर, बेटे की एक्सीडेंट में मौत आदि दिखाया जाता है और आखिर में दिखाया जाता है कि कैसे हसीना ने दाऊद के नाम पर प्रॉपर्टी पर कब्जा, बिल्डरों को धमकाना, बडे बड़े लोगों को झगड़े सुलझाना शुरू कर दिया था.
अपूर्व लखिया तमाम फिल्में अंडरर्ल्ड पर बना चुके हैं, ऐसे में फिल्म को शुरू कैसे करना है और क्लाइमेक्स कैसे देना है उनको बेहतर पता है. डैडी में यही काम अर्जुन रामपाल के डायरेक्टर नहीं कर पाए. ओपनिंग स्मार्ट तरीके से की गई है, कोर्ट में हसीना की एंट्री का सीन दिलचस्प है और कोर्ट से बाहर निकलने के बाद कार में बैठकर फोन उठाकर बोलना वाला दो शब्द का एक डायलॉग भी. इसमें अपूर्व पास हुए. अपूर्व इस बात मे भी पास हुए कि जब दाऊद के बारे में सबको सब कुछ पता है तो नया कैसे सामने आए.
हसीना को फिल्म का सेंटर बनाने से उस कहानी में आपको नयापन लगेगा. किरदार चुनने के मामले में जरूर अपूर्व से चूक हुई है. आपको बस श्रद्धा और वकील के रोल में प्रियंका का किरदार ही अच्छा लगेगा. यूं शक्ति कपूर के बेटे को भी दाऊद के रोल में लांच किया, पहली फिल्म के तौर पर भले ही वो पास हों, लेकिन वो अपनी तरफ से उस रोल में कुछ एड नहीं कर पाए, जिससे उनका रोल याद रहे. प्रियंका सेतिया ने जरूर वकील के रोल में काफी दिलचस्प तरीके से अपने काम को अंजाम दिया.
फिल्म का ट्रीटमेंट किश्तों में फ्लैकबैक के जरिए अपूर्व ने अलग रखने की कोशिश की है, लेकिन अकेले श्रद्धा के कंधों पर आप पूरी फिल्म का बोझ डालकर 100 करोड़ कमाने की उम्मीद नहीं कर सकते. पचास तक भी पहुंचे तो बड़ी बात होगी. सैट, बैकग्राउंड और जरुरत के मुताबिक गैंगवार सींस ठीक ठाक हैं, अपूर्व को उनका तजुर्बा है.
अपूर्व ने बाकी किरदारों को चुनने में कोई खास मेहनत नहीं की, सिवाय हसीना के पति इस्माइल के रोल में अंकुर भाटिया के, जबकि अंडरवर्ल्ड की फिल्म में अलग अलग कई दमदार किरदारों की जरूरत होती है. म्यूजिक औसत है. कुछ एक डायलॉग्स को छोड़ दिया जाए तो ज्यादा कुछ खास नहीं, जो ऐसी फिल्मों की जरूरत होती है, फिर भी श्रद्धा के फैंस के लिए ये फिल्म मस्ट है, और शायद अपनी लागत निकाल कर कुछ मुनाफा भी बना ले.
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