नई दिल्ली: अगर एक लाइन में कहा जाए तो ‘पोस्टर ब्वॉज’ बॉक्स ऑफ़िस पर टॉयलेट एक प्रेम कथा जैसा खेल भी कर सकती है. उसी तरह के एक सोशल इश्यू को उसी तरह के फनी प्लॉट के जरिए इस मूवी को बनाया गया है, बिलकुल वैसे ही गांव के बैकग्राउंड में बनाया गया है. फिल्म एक बार को सेलेब्स स्टार्स की कमी से फ़िल्म कम चले लेकिन बतौर डायरेक्टर श्रेयस तलपडे ने ज़रूर अपनी पहली फ़िल्म से ही खुद को साबित कर दिया है.
फ़िल्म तीन साल पहले आई एक मराठी फ़िल्म का रीमेक है, फ़िल्म की कहानी उन तीन युवाओं के बारे में है जिनके फोटो एक सरकारी स्कीम के ब्रांड एम्बेसडर के तौर पर पोस्टर्स में छप जाते हैं. चूकि वो हेल्थ मिनिस्ट्री का पुरुष नसबंदी का कैम्पेन था, सो पूरा गांव तो उनकी मर्दानगी पर सवाल उठाता ही है, उनके घरवाले भी परेशान हो जाते हैं.
इस वजह से रिटायर्ड फ़ौजी सनी देयोल की बहन का रिश्ता टूट जाता है, रिकवरी एजेंट श्रेयस को लड़की का बाप लौटा देता है और स्कूल टीचर बॉबी देयोल की बीवी मायके चली जाती है. तब उनकी जंग शुरू होती है सिस्टम के खिलाफ, लेकिन गलती मानने के बजाय अधिकारी ये साबित करने की कोशिश करते हैं कि इनकी नसबंदी हुई थी, मामला कोर्ट पहुंचता है, मीडिया में आता है, वो कपड़े उतारकर धरने पर बैठ जाते हैं.
इस फिल्म की सबसे ख़ास बात है कि पूरे मुद्दे को बड़े ही फ़नी तरीके से फ़िल्माया गया है, सीन दर सीन इतना कसा हुआ है कि इसके लिए राइटर और डायरेक्टर दोंनों की दाद देनी पड़ेगी.
फिल्म में एक दो ही सीन हैं जहां आप बोर होंगे, चुटीले डायलॉग्स फ़िल्म की जान हैं. कॉमेडी मूवी है, सो बनावटी भी कई जगह लग सकती है. सबसे ख़ास बात यह है फ़िल्म की शुरुआत और एंडिंग काफी शानदार है. अली अबराम के मस्त आइटम सॉन्ग से फिल्म शुरू होती है और क्लाइमेक्स भी ज़बरन खींचा हुआ नहीं लगता.
चूंकि फनी फिल्म है और सनी-बॉबी की उम्र भी हो गई है, इसलिए थोड़े अलग तो दिखेंगे ही. बॉबी ओवर एक्टिंग करते लग सकते हैं, लेकिन रिस्क भी लिया, श्रेयस सदाबहार मूड में हैं.
सिनेमेटोग्राफ़ी , बेहतरीन शूटिंग लोकेशंस, एक्शन या गानों की बहुत ज़रूरत नहीं थी फ़िल्म में फिर भी सब्जेक्ट, हीरो के नाम, प्रोमोज़ और जोनर पता होने के वाबजूद आप अगर पोस्टर बॉयज़ की टिकट ख़रीदते हैं तो आप निराश नहीं होंगे, सनी देयोल के फैंस के लिए तो ये मस्ट वॉच है. छोटे शहरों में पसंद आने की उम्मीद है .