मुंबई: अक्षय कुमार की नई फिल्म “सम्राट पृथ्वीराज” को लेकर फैंस और सिनेमा पसंद करने वालों के बीच काफी बज बना हुआ था. लेकिन इस मूवी की रिलीज के साथ ही इसे देखने वालों का जोश ठंडा होता नजर आ रहा है. रिपोर्ट्स की मानें तो अक्षय कुमार की सम्राट पृथ्वीराज को लेकर कई उम्मीदें […]
मुंबई: अक्षय कुमार की नई फिल्म “सम्राट पृथ्वीराज” को लेकर फैंस और सिनेमा पसंद करने वालों के बीच काफी बज बना हुआ था. लेकिन इस मूवी की रिलीज के साथ ही इसे देखने वालों का जोश ठंडा होता नजर आ रहा है. रिपोर्ट्स की मानें तो अक्षय कुमार की सम्राट पृथ्वीराज को लेकर कई उम्मीदें लगाई जा रही थीं. लेकिन इस फिल्म को देखने वाले इसे उतनी भी कमाल की नहीं बता रहे है, जितना ट्विटर पर यूजर्स का रिएक्शन देखने को मिल रहा है. हालांकि, इस फिल्म की तारीफों के बीच कई ऐसे रिव्यू हैं, जिनमें फिल्म को एकदम ढीला और बेअसर बताया गया हैं. तो चलिए उन 5 बातों को जानते है, जो अक्षय कुमार की Samrat Prithviraj को बनाती हैं ‘फीका’ ?
सम्राट पृथ्वीराज के ट्रेलर के बाद फिल्म देखकर पता चल रहा है कि फिल्म के अंदर कुछ इतना भी खास नहीं है, जिसे देखने के बाद बोला जा सके कि इसने पृथ्वीराज के साथ न्याय किया है. पृथ्वीराज चौहान भारत के सबसे महान सम्राट में से एक रहे थे. वह एक राजा के साथ-साथ एक योद्धा भी थे. माना जा रहा है कि इस किरदार को निभाने के लिए भी एक दमदार एक्टर की जरूरत थी, जो कि अक्षय कुमार नहीं हैं.अक्षय कुमार ने सम्राट पृथ्वीराज में लीड रोल निभाया है. अपने इस किरदार के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की है लेकिन फिर भी वह वैसी छाप नहीं छोड़ पाए. इसी वजह से अक्षय फीके पड़ते हुए नजर आ रहे हैं.
ऐसा माना जाता है एक फिल्म अपने किरदारों से बनती हैं. ऐसे में किरदारों का गहरा और अच्छा होना जरूरी है. फिल्म सम्राट पृथ्वीराज को देखकर लगता है कि इसे बेहद जल्दबाजी में बनाया गया है. फिल्म में मानुषी अपने किरदार की जिम्मेदारी को पूरी तरह नहीं संभाल पाई. उनकी और अक्षय कुमार की दिक्कत ये है कि दर्शक उनके किरदारों के साथ कनेक्ट नहीं कर पाते. कई सीन्स में मानुषी ब्लैंक दिखाई देती हैं.
संजय दत्त के भी किरदार की बात की जाए तो वह पूरे समय फिल्म में गुस्सा करते और चिल्लाते हुए ही नजर आए हैं.तो फिल्म के विलेन मोहम्मद गोरी के रोल में मानव विज हैं. सम्राट पृथ्वीराज में उनके काम में उतना दम नहीं है. मानव की परफॉरमेंस का देखने वाले पर उतना असर नहीं होता.
फिल्म का म्यूजिक का आपके ऊपर उसका भी कोई असर नहीं होता. थिएटर से बाहर आने के बाद आपको फिल्म के गाने याद भी नहीं रहते हैं. सम्राट पृथ्वीराज का म्यूजिक एकदम बेअसर है. फिल्म के डायलॉग की भी बात करें तो वो भी काफी घिसे पिटे से हैं. बहुत-सी बार एक ही बात को रिपीट किया जा रहा है.
डायरेक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने इस फिल्म के अंदर काफी चीजों को एक साथ दिखाने की कोशिश की है. इसमें फेमिनिज्म, वॉर, दुश्मनी के अलावा भी बहुत कुछ घुसाने की कोशिश की गई है. 2 घंटे 25 मिनट की इस फिल्म में किसी भी किरदार से आप इमोशनली कनेक्ट नहीं कर पाएंगे. क्योंकि आपको इतना समय ही नहीं मिलता. फिल्म के आखिर तक आते-आते आपके मन में यही ख्याल आता है कि ये जल्दी खत्म हो और हमें घर जाने को मिले.