नई दिल्ली: नोवेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला युसुफ़ज़ई की बॉयोपिक जल्द ही रिलीज होने वाली है. इस बॉयोपिक में जो मलाला का किरदान निभाएंगी वह भारतीय एक्ट्रेस रिम समीर है.
एक्ट्रेस ने इस फिल्म का पोस्टर अपने इंस्टाग्राम पर शेयर करते हुए लिखा कि ‘मेरी फिल्म का पहला पोस्टर-‘मलाला युसुफजई बॉयोपिक-गुल मकई’. बता दें कि रिम को इस फिल्म में सही उच्चारण और व्यवहार के लिए स्पेशल ट्रेनिंग दी जा रही है.
रिम पहले भी टीवी सिरियल और अमिताभ बच्चन-फरहान अख्तर स्टारर फिल्म ‘वज़िर’ में एक छोटा सा रोल कर चुकी हैं.
बता दें कि इस फिल्म को आनंद कुमार प्रोड्यूस करेंगे और सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें स्वर्गीय ओम पूरी भी नजर आएंगे. इस फिल्म में मलाला की मां का किरदार दिव्या दत्ता निभाएंगी.
प्रोड्यूसर आनंद कुमार के मुताबिक इस फिल्म के कई भूज और मुंबई में 2016 में ही शूट किये जा चुके हैं और बचा हुआ सीन इस महीने शूट किया जाएगा. साथ ही कुमार ने बताया कि इस बॉयोपिक का 50 प्रतिशत सीन शूट किया जा चुका है.
कुमार ने बताया कि लड़ाई और कुछ खास सीन पहले ही शूट किये जा चुके हैं. अब हमें बस अपनी मलाला के साथ कश्मीर में शूट करना है. प्रोड्यूसर के मुताबिक यह फिल्म पूरी तरह से मलाला के संघर्ष के ऊपर बनाई गई है. बता दें कि 12 जुलाई” को पुरे विश्व में ‘मलाला युसुफ़ज़ई दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.
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बता दें कि स्वात घाटी के केंद्र मिंगोरा में हालात ऐसे हो गए थे कि लोग जब सुबह उठते तो उन्हें शहर के चौराहों पर लटकी हुई लाशें मिलती थीं. कई लोगों को इस वजह से मार दिया गया क्योंकि उन पर तालिबान का विरोध करने का आरोप भर लगा था.
ऐसे मुश्किल में मलाला ने ब्लॉग और मीडिया में तालिबान की ज्यादतियों के बारे में जब से लिखना शुरू किया तब से उसे कई बार मौत की धमकियां मिलीं. मलाला उन पीड़ित लड़कियों में से है जो तालिबान के फरमान के कारण लंबे समय तक स्कूल जाने से वंचित रहीं.
स्वात घाटी में तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी थी. लड़कियों को टीवी कार्यक्रम देखने की भी मनाही थी. स्वात घाटी में तालिबानियों का कब्जा था और स्कूल से लेकर कई चीजों पर पाबंदी थी. मलाला भी इसकी शिकार हुई.
संघर्ष के दौरान ही मलाला ने अपनी एक डायरी लिखनी लिखनी शुरू कर दी थी. जिसमें उसने स्वात घाटी में तालिबान की दरिंदगी का वर्णन करने के साथ-साथ अपने दर्द को भी बयां किया था.अपनी इस डायरी के माध्यम से मलाला ने क्षेत्र के लोगों को न सिर्फ जागरुक किया बल्कि तालिबान के खिलाफ खड़ा भी किया.
2009 में ही सेना की कार्रवाई के दौरान मलाला को अपना घर छोड़ कर शांगला जाना पड़ा. 2010 में स्वात में सरकार का नियंत्रण हो गया और मीडिया ने वहां जाकर स्टोरी करनी शुरू कीं. मीडिया ने मलाला के बारे में भी स्टोरी कीं. इसके बाद 13 साल की मलाला को पूरे पाकिस्तान भर में जाना पहचाना जाने लगा और उसे बहादुरी के लिए अवार्ड से नवाजा गया.