नई दिल्ली : बादशाहो का लब्बोलुआब आप इस फिल्म के दो डायलॉग्स से बखूबी समझ सकते हैं, पहला संजय मिश्रा इमरान हाशमी से बोलते हैं “अपने को कभी अकेले मत समझना… प्यार में फंसकर बर्बाद होने वाले चू…ए लाखों में हैं” और दूसरा इमरान हाशमी ने ईशा गुप्ता की तरफ देख कर बोला है ‘’देशी ठर्रे में अंग्रेजी व्हिस्की मिला दी, ना चढ़ेगी ना हजम होगी..बस परेशान करेगी”.
यानी फिल्म की कहानी इश्क में बेवकूफ बने किरदारों के इर्दगिर्द घूमती है और हिस्ट्री में फिक्शन का तड़का ठीक वैसे ही है, जैसे देशी ठर्रे में व्हिस्की, हिस्ट्री जानने वालों को हजम नहीं होगी. लेकिन एक्शन थ्रिलर्स को पसंद करने वालों पसंद आएगी, खासकर फिल्म के ऐसे वन लाइनर.
फिल्म की कहानी जयपुर की महारानी गायत्री देवी के उस खजाने के बारे में है, जिसको जब्त करने के लिए इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने आर्मी भेज दी थी और गायत्री देवी को पांच महीने के लिए तिहाड़ में बंद कर दिया था.
कई विदेशी अखबारों ने लिखा था कि करोड़ों डॉलर का खजाना बरामद हुआ है, यहां तक कि पाकिस्तान के पीएम भुट्टो ने भी इंदिरा को खत लिखकर उस खजाने का हिस्सा मांग लिया था. लेकिन इंदिरा गांधी ने तीन महीने की कवायद के बाद भुट्टो को लैटर लिखा कि ऐसा कुछ भी बरामद नहीं हुआ.
सरकार ने कभी इस बरामदगी के बारे में कोई सूचना नहीं दी और गायत्री देवी ने तो बाद में कहा जो मिला था, उसे हम पहले ही अपने कागजों में दिखा चुके थे, सो सरकार कुछ नहीं ले पाई.
फिल्म की कहानी में गायत्री देवी के किरदार में है गीतांजलि (इलियाना) और इंदिरा की जगह इसमें संजय गांधी को दिखाया गया है संजीव (प्रियांशु चटर्जी) के नाम से. भवानी सिंह (अजय देवगन) महारानी के विश्वासपात्र और सिक्योरिटी अफसर के रोल में है, जो उससे प्यार भी करता है.
संजीव एक पार्टी में गीतांजलि से बदतमीजी करता है, विरोध करने पर वो गीतांजलि को बर्बाद करने की कसम खा लेता है. इमरजेंसी लगते ही वो गीताजंलि के महल में सेना भेजकर खजाने पर कब्जा कर लेता है, गीताजंलि को जेल भेज दिया जाता है, लेकिन संजीव खजाना सरकार को देने के बजाय अपने पास रखना चाहता है.
उसका विश्वासपात्र आर्मी अफसर उस सोने को लाने की जिम्मेदारी सोंपता है जूनियर आर्मी अफसर सहर सिंह (विद्युत जामवाल) को. इधर गीतांजलि भवानी को उस सोने को बचाने की जिम्मेदारी देती है, जो मदद लेता है अपने दोस्त डलिया (इमरान हाशमी) और ताला तोड़ने मे एक्सपर्ट टिकला (संजय मिश्रा), साथ में है गीताजंलि की दोस्त संजना (ईशा गुप्ता). फिर शुरु होता है सोने का एक फुल सिकयोरिटी वाले ट्रक में सफर, उसकी लूट और रोमांचक फाइट सींस. थोड़ा सा सस्पेंस जिसका खुलासा बाद में होता है.
हिस्ट्री के नजरिए से बात करें तो संजय गांधी पर एक महीने के अंदर ये दूसरी मूवी है, मधुर की फिल्म इंदु सरकार में तो संजय तो नसबंदी और गरीबों की बस्तियां हटाने का दोषी ठहराया था, बादशाहों में दिखाया गया है कि कैसे वो एक महारानी से फिजिकल बदतमीजी करता है और फिर उसे बर्बाद करने की कसम खाता है.
जबकि असल में ये लड़ाई इंदिरा और गायत्री देवी की ज्यादा थी, लंदन मे पली बढ़ीं गायत्री देवी काफी खूबसूरत थीं और कांग्रेस में शामिल होने के बजाय सी राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी से लड़कर बार बार कांग्रेस को हराती रहीं, इससे इंदिरा को चिढ़ स्वभाविक थी. इतना ही नहीं 1962 में तो गायत्री देवी को 2,46,515 वोट्स में से 1,92,909 वोट्स मिले और उनका नाम इस जीत के लिए गिनीज बुक में शामिल किया गया. तो संजय को वूमेनाइजर दिखाना वाकई में रिस्क है.
इतना ही नहीं गायत्री देवी के सौतेले बेटे का नाम भवानी सिंह था, जिनकी मौत 2011 में ही हुई है. उनको भी कुछ समय के लिए तिहाड़ जेल में गायत्री देवी के साथ बंद किया गया था, माउंटबेटन के कहने पर उन्हें छोड़ा गया. फिल्म में रानी के प्रेमी कम सिक्योरिटी ऑफिसर के रोल मे अजय देवगन का नाम भी भवानी सिंह रखा गया, क्या मिलन लूथरिया को इसके बारे में पता नहीं था या वो गायत्री देवी का अपेयर उनको सौतेले बेटे से दिखाने का रिस्क ले रहे थे. अगर चूक है तो काफी बड़ी है.
हालांकि फिल्म में भी गायत्री देवी को रंगीन तबियत का ही दिखाया गया है, हालांकि मॉर्डन वो थीं, घुडसवारी औप कारों का उनका शौक था, भारत में पहली मर्सिडीज बेंज महारानी गायत्री देवी ने ही मंगवाई थी.
एक्टिंग सभी की उसी तरह की है जिसके लिए वो जाने जाते हैं, लेकिन एक्टिंग से ज्यादा आपको तमाम डायलॉग्स ज्यादा पसंद आएंगे. अजय देवगन का डायलॉग- ‘’जिंदगी चार दिन की है और आज चौथा दिन है, यही सोचकर ही इतने साल निकल गए’’ या‘’आपके सोने का कैरेट म्हारे करेक्टर को खराब नहीं कर सकता’’.
इमरान और संजय मिश्रा के खाते में भी कई फनलाइनर डायलॉग्स आए हैं, ‘समय सभी की लेता है, समय समय पर लेता है और सही समय पर सही तरह से लेता है’’ और संजय मिश्रा का एक ही डायलॉग सब पर भारी है– अपने को कभी अकेले मत समझना… प्यार में फंसकर बर्बाद होने वाले चूतिए लाखों में हैं”. इसी तरह इलियाना के हिस्से में भी एक मारक डायलॉग है—‘’;चार इंच ऊपर या नीचे कहीं भी चला दी ना तो तुम्हारे घराने में भी कोई मर्द नहीं बचेगा’’.
म्यूजिक के नाम पर रश्क ए कमर और सनी लियोन पर फिल्माया गया पिया मोरे है, जो शायद तेजी से भागती थ्रिलर में तड़के के लिए काफी था. शरद केलकर को भी बाहुबली की आवाज के बाद बॉलीवुड में ये दूसरा रोल मिला, छोटा था, लेकिन अच्छा था.
इलियाना लीड रोल में है, शायद साड़ी पहने महारानी के इस रोल में और कोई बड़ी एक्ट्रेस जमती भी नहीं और रुस्तम जैसा ही किरदार है लेकिन ईशा के लिए ये रोल फिलर जैसा ही था. मिलन लूथरिया वंश अपॉन के ए टाइम के चाल साल बाद ये फिल्म लेकर तो आए लेकिन खजाने की चोरी के मामले में ये सबसे आसान प्लॉट था… जब ऑडियंस को लगेगा ही नहीं कि ये मुश्किल काम है तो हीरो के काम की तारीफ कैसे करेगी.
यही फिल्म का वीक प्वॉइंट है. गांव वालों का का गायत्री के साथ बर्ताब और फिर भवानी का उनको सोना बांट देना, भी जमा नहीं. हालांकि फिल्म के वन लाइनर्स औऱ एक्शन फिल्म को जोडे रहा है, एक बार देखने के लिए बुरी मूवी नहीं… हालांकि काफी बेहतर हो सकती थी. सबसे बड़ी बात अजय, इमरान, विद्युत और ईशा सभी को एक सुपरहिट की काफी जरूरत है.