नई दिल्ली: गैंग्स ऑफ वाशेपुर अगर आपने देखी तो बिलकुल वैसा ही बैकग्राउंड इसमें आप पाएंगे, वही बेलौस गालियां, बेखौफ गोलियां, और नेताओं की मक्कारियां. गुरू चेला सुपारी किलर्स की शर्तबाजी के चलते इंटरवल तक फिल्म बांधे भी रखती है.
लेकिन इंटरवल से पहले के आखिरी सीन में जो सस्पेंस डायरेक्टर ने बनाया था, वो उपदेशात्मक क्लाइमेक्स के चलते ढह गया. उसके वाबजूद इस फिल्म को एकदम से खारिज नहीं किया जा सकता. वो भी तब जब आपके पास कोई और बड़ी फिल्म देखने के लिए बॉक्स ऑफिस पर ना हो.
कहानी एक देसी सुपारी किलर की बाबू बिहारी (नवाजुद्दीन) की है, जो एक महिला नेता (दिव्या) के लिए काम करता है, उससे अनबन होने पर वो एक दूसरे नेता से सुपारी लेता है दिव्या के ही करीबी लोगों की. दूसरा नेता दुबे उस पर भरोसा ना करके एक दूसरे सुपारी किलर बांके बिहारी (जतिन गोस्वामी) को कांट्रेक्ट दे देता है, जो बचपन से बाबू का ही फैन था. जाहिर है दोनों टकराते हैं, शर्त लगाते हैंस गेम होता है कौन करेगा मर्डर, एक दूसरे की जान भी बचाते हैं.
अपने रेपिस्ट की हत्या करने पर बाबू के साथ रहने वाली फुलवा (बिदिता) को घर समेत जलवा देती है नेता दिव्या और बांके बाबू को गोली मार देता है, कोमा से आठ साल बाद वापस लौटकर आया बाबू बदला लेता है. इसमें फुलवा की मौत और बाबू की सुपारी पर सस्पेंस आखिर तक ऑडियंस को बांधे रखता है.
फिल्म का सबसे कमजोर पार्ट है, क्लाइमेक्स. इंटरवल तक शानदार तरीके से हॉट सींस, मस्त गानों, वन लाइनर गाली वाले डायलॉग्स और सस्पेंस के साथ फिल्म के पेस को बरकरार रखने वाले डायरेक्टर कुषान नंदी जो प्रीतिश नंदी के बेटे हैं, इंटरवल के बाद मानो कन्फ्यूज हो गए. इंटरवल के आखिरी सीन में जो बाबू को गोली मारकर जो बांके एकदम डॉन लगता है, उसको अंडरवीयर में ही गलियों में भगा दिया डायरेक्टर ने. जिसने गोली मारकर आठ साल कोमा में भेजा, उसको माफ करना और ये भी ना पूछना कि किसने सुपारी दी, ये अखरता है.
मर्डर पर बस आठ हजार रुपया पाने वाला टेलीस्कोप गन कैसे अफोर्ड कर सकता है. दो बड़े नेताओं ने कैसे हाथ मिला लिया और सबसे बड़ा झोल क्लाइमेक्स में है. उपदेशात्मक करने के चक्कर में अच्छी खासी फिल्म का एंड खराब कर दिया डायरेक्टर ने. हालांकि ट्रेन में टिकट मांगने का सीन, पुलिस इंस्पेक्टर की प्रेग्नेंट बीबी औऱ आठ-नौ बच्चों का सीन और कुछ किरदार काफी दिलचस्प हैं.
सबसे बड़ी बात है कि क्लाइमेक्स से पहले फिल्म आपको पसंद आएगी, हां बच्चों के साथ जाने वाली फिल्म नहीं है. दूसरे इस फिल्म के जरिए आपको दो या तीन नए चेहरे मिलेंगे, जिनका रोल आपको पसंद आएगा. फुलवा के रोल में बिदिता और बांके के रोल में जतिन गोस्वामी. बांके की गर्लफ्रेंड का रोल करने वाली यास्मीन (श्रद्धा) घुंघटा गाने से चर्चा में हैं. फिल्म में दो या तीन गाने लोगों की जुबान पर हैं घुंघटा, बर्फानी और सैंया चश्मा लगाइले.
फिल्म के टाइटल बाबू के साथ मोशाय का कोई बंगाली कनेक्शन नहीं है, फिल्म की कहानी यूपी पर बेस्ड है और यूपी में ही शूट हुई है. फिल्म देखने जाएं तो फट गई, पिछवाड़ा जैसी तमाम गालियां और बिना इमोशन के गोलियां झेलने के लिए तैयार रहें, हां हॉट सींस को इस कैटगरी में ना लें. फिल्म के डायलॉग्स और किरदारों की एक्टिंग के लिए तीन स्टार और स्क्रिप्ट के लिए दो स्टार.