नई दिल्ली: Gulzar Birthday Special: बोल देना छैनू आया था….. शत्रुघ्न सिन्हा का ये डायलॉग सबको याद होगा, ये डायलॉग इस मायने में भी खास था कि इसी डायलॉग ने शत्रुघ्न सिन्हा की किस्मत बदल दी. नहीं तो आप उन्हें प्राण, अजीत और प्रेम चोपड़ा की कैटगरी में याद करते बच्चन, धर्मेन्द्र और विनोद खन्ना की में नहीं.
शत्रुघ्न सिन्हा को अपनी इस फिल्म ‘मेरे अपने’ के जरिए विलेन से हीरो बनाने वाले थे गुलजार, लेकिन गुलजार की एक बात से शत्रुघ्न सिन्हा इतने नाराज हो गए थे कि इस फिल्म का प्रीमियर भी अटैंड नहीं किया था.
आखिर इसकी वजह क्या थी, गुलजार ने तो शायद कहीं इस बात पर अपनी सफाई नहीं दी. लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा ने गुलजार से अपनी नाराजगी की वजह अपनी बायोग्राफी में बयां कर दी थी. लेकिन पहले आपको ये जानना जरूरी है कि ये फिल्म मेरे अपने केवल शत्रुघ्न सिन्हा के कैरियर के लिए ही नहीं विनोद खन्ना, मीना कुमारी और खुद गुलजार के कैरियर के लिए भी काफी अहम थी.
गुलजार इसी फिल्म के जरिए पहली बार डायरेक्टर बने थे और इस फिल्म के जरिए उन्होंने पहली बार उन दो चेहरों पर दाव लगाया था, जो इससे पहले विलेन के रोल्स में आ रहे थे यानी विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा.
जबकि मीना कुमारी इस फिल्म में हीरोइन की बजाय हीरो की मुंहबोली मां के रोल में थीं. यही वो फिल्म थी, जिसने शत्रु और विनोद को स्टार बना दिया और दोनों की झोली में पहले की तरह विलेन के नहीं बल्कि हीरो वाली फिल्मों के ऑफर मिलने लगे. डैनी, असरानी और पेंटल के कैरियर में भी इस फिल्म से बड़ा फायदा मिला था.
आखिर शत्रु क्यों नाराज थे? क्यों नहीं किया उन्होंने इस फिल्म का प्रीमियर अटैंड जबकि वो इस फिल्म के जरिए हीरो बनने जा रहे थे? दरअसल शत्रु को लगता था कि गुलजार ने उन्हें दूसरे हीरो का रोल तो दिया है लेकिन गुलजार विनोद खन्ना से ज्यादा प्रभावित हैं, उसकी वजह ये थी कि विनोद की फिजिकल पर्सनेलिटी शत्रु के मुकाबले बेहतर थी. वो लगातार इस बात को सैट पर महसूस करते थे.
वैसे भी विनोद खन्ना इस फिल्म में कॉलेज में पढ़ते स्मार्ट लड़के के तौर पर हैं तो शत्रु को गली के गुंडे जैसा रोल दिया गया था. दोनों में पूरी फिल्म के दौरान एक दूसरे से तनातनी चलती रहती है और फिर वो मीना कुमारी की मौत के साथ ही खत्म होती है.
शत्रु को शूटिंग के दौरान ही ये लगातार महसूस होने लगा था कि गुलजार की नजर में फिल्म के हीरो विनोद खन्ना ही हैं. आनंद, बंदिनी, श्रीमान सत्यवादी, सीमा और संघर्ष जैसी फिल्मों में गीत, डायलॉग, स्क्रीनप्ले लिखने के बाद गुलजार बमुश्किल डायरेक्टर बने थे और वो फिल्म को पिटते देखना नहीं चाहते थे. लेकिन शत्रु को लगातार लग रहा था कि फिल्म में उनको कम तबज्जो दी जा रही है.
इसी गुस्से में शत्रु ‘मेरे अपने’ के प्रीमियर में गए ही नहीं. शत्रु की बायोग्राफी में उनके हवाले से लिखा है कि ‘’ऐसा नहीं है कि ये कोई मिसप्लेस्ड फीलिंग थी, गुलजार ने फिल्म की कीमत पर ये सब किया”. शत्रु को कोई हीरोइन भी नहीं मिली थी फिल्म में.
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मेरे अपने से शत्रु को कोई उम्मीद नहीं रह गई थी, तो उन्होंने फिल्म भी नहीं देखी. ऐसे में फिल्म देखने के बाद जब लोगों ने उन्हें तारीफ के फोन करने शुरू किए तो वो चौंके. लोग उनका वो डायलॉग दोहराने लगे—बोल देना छैनूं आया था.
हालांकि फिर भी शत्रुघ्न सिन्हा ने इन सबके पीछे अपने एटीट्यूड और डायलॉग डिलीवरी को ही जिम्मेदार बताया, जिसके चलते वो बतौर हीरो बॉलीवुड में स्टेबलिश हो पाए. शत्रु ने अपनी बायोग्राफी एनीथिंग बट खामोश में लिखा है कि, ‘’ये तो मेरी अपनी पर्सनेलिटी और डायलॉग डिलीवरी थी कि मुझे लोगों ने पसंद किया और इस फिल्म से मैं स्टार बन गया”. हालांकि अपने ‘खामोश’ डायलॉग के लिए मशहूर शत्रु ने तो इस मुद्दे पर बोला और खुलकर लिखा भी लेकिन शायर मिजाज गुलजार खामोश ही रहे.