पुण्यतिथि विशेष: उस दिन बिना हनुमान चालीसा पढ़े शम्मी कपूर घर से निकले और कभी वापस नहीं लौटे

रोमांस में सीरियस या देवदास हो जाने के दौर में अगर मस्ती से भरपूर रोमांस करना अगर किसी ने सिखाया तो वो थे शम्मी कपूर. बॉलीवुड को पहला बिंदास हीरो शम्मी कपूर के रूप में ही मिला था.

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पुण्यतिथि विशेष: उस दिन बिना हनुमान चालीसा पढ़े शम्मी कपूर घर से निकले और कभी वापस नहीं लौटे

Admin

  • August 14, 2017 8:38 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली:  रोमांस में सीरियस या देवदास हो जाने के दौर में अगर मस्ती से भरपूर रोमांस करना अगर किसी ने सिखाया तो वो थे शम्मी कपूर. बॉलीवुड को पहला बिंदास हीरो शम्मी कपूर के रूप में ही मिला था. उनके बाद कई हीरोज ने उन्हें कॉपी करने की कोशिश की, कुछ कामयाब भी हुए. लेकिन यही याहू हीरो बाद में इतना ज्यादा धार्मिक हो गया था कि घर से बाहर कभी हनुमान चालीसा पढ़े बिना कदम बाहर नहीं निकालता था. एक दिन ऐसा भी आया जब उन्होंने हनुमान चालीसा नहीं पढ़ा और फिर वो बिंदास हीरो कभी घर वापस नहीं लौटा, लौटी भी तो उसकी लाश.
 
पहले आपके लिए ये जानना जरूरी होगा कि शम्मी कपूर के जीवन में ये बड़ा बदलाव आया कैसे कि जो हीरो कभी एक वक्त में जितना मस्त परदे पर होता था, उतना ही रोमांटिक निजी जीवन में भी था, वो इतना धार्मिक हो गया. उस दौर में उनका नाम कई ल़डकियों के साथ जोड़ा गया, लेकिन गीता बाली ने उनकी जिंदगी बदल दी. इतनी कम उम्र में चेचक से गीता के गुजरने के बाद से ही शम्मी में बदलाव आना शुरू हो गया था. फिर पिता और राजकपूर की मौत से भी उनपर असर पड़ा. ये बदलाव दो तरह का था, एक ही दिन में सौ सौ सिगरेट फूंकने लगे थे शम्मी. दूसरी तरफ उनका धार्मिक झुकाव भी बढ़ता गया. उत्तराखंड में उनके एक युवा हैदाखान वाले बाबाजी गुरु बन गए थे, आखिरी वक्त तक वो उनके पास जाते रहे. 
 
 
बच्चों के चलते उन्हें दूसरी शादी भी करनी पड़ी. नीला देवी ने अपना कोई बच्चा भी पैदा नहीं किया, गीता के बच्चों की ही वो मां बन गई. लेकिन शम्मी के सिगरेट को शौक ने उनके फेंफडों को जला दिया. एक वक्त में शम्मी कपूर की इमेज ऐसे मस्त डांसिंग स्टार की बन गई थी कि उनके लिए अगर भजन भी लिखा जाता था तो भी उसमें डांस और मस्ती की गुंजाइश रखी जाती थी जैसे फिल्म ब्लफ मास्टर का गोविंदा आला रे…. लेकिन वक्त के साथ बदल गए शम्मी कपूर, दाढ़ी बढ़ा ली, अक्सर अपने गुरू से मिलने अक्सर हिमालय चले जाते. उनको इंटरनेट का भी शौक लग गया था, उन्होंने इंटरनेट क्लब बना डाले, जब कोई नहीं जानता था, तब उन्होंने वेबसाइट बना डाली. 1995 में उन्होंने इंटरनेट यूजर्स क्लब ऑफ इंडिया बना डाला, सालों तक वो उसके प्रेसीडेंट रहे. ऐसी कई संस्थाओं से वो जुड़े रहे और लोगों की इंटरनेट से जुड़ी समस्याएं सुलझाते रहे. रोज 10 से 12 घंटे कम्यूटर पर काम करने लगे. लेकिन उनकी तबियत बिगड़ती चली गई.
 
 
फिर शम्मी कपूर की जिंदगी में आया खतरनाक मोड़, वो मौत के मुंह में जाते जाते बचे. किडनी फेल हो गई और खांसी से खून आने लगा. दो महीने तक बाद हॉस्पिटल से आने के बाद उनके घर में ही एक वैल इक्विप्ड हॉस्पिटल रूम बना दिया गया, चौबीस घंटे नर्स और फिजियोथेरेपिस्ट के साथ. दो महीने ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में गुजारने के बाद बदल गई जिंदगी शम्मी कपूर की, हफ्ते में तीन दिन डायलेसिस के लिए जाना और चार दिन दोस्तों बच्चों के साथ बिताना. जब भी बाहर निकलना, पहले हनुमान चालीसा का पाठ करना. हालांकि डायलेसिस के दौरान तीन चार घंटे भी वो एक हाथ से अपने आई पैड पर बिजी रहते थे, कुछ नहीं तो यूट्यूब पर अपने पुराने गाने देखते थे. 
 
डॉक्टर बाकी मरीजों को उन्हें दिखाते थे और कहते थे आठ साल हो गए उन्हें आते आते, देखो कितनी खुशी से आते हैं. 6 अगस्त 2011 को उनकी बेटी कंचन की बर्थडे पार्टी थी, लोकेशन थी ब्लू सी बेनक्वेट, वरली. यूं तो बर्थडे 8 को था, लेकिन उसने वीकेंड की वजह से 6 को ही रख ली. उनकी पत्नी नीला देवी ने शम्मी कपूर की बायोग्राफी लिखने वाले रऊफ अहमद को बताया, “ वो कुछ देर वैन्यू पर रुके, सबसे मिले, कंचन के साथ केक काटा और घर चले आए. जब वो सुबह सोकर उठे, काफी परेशान थे, उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. मैंने फौरन डॉक्टर को कॉल करके ब्रींच कैंडी ले जाने के लिए अरेंजमेंट किया. वो पांज बजे नहाए और 6.30 बजे हम हॉस्पिटल जाने को तैयार थे. तब मैंने उनसे कहा पीछे मुडकर देखिए, हमारे यहां इसे अच्छा माना जाता है। लेकिन वो नहीं मुड़े, कहा—आई एम नॉट कमिंग बैक”.
 
 
शम्मी कपूर की कार तब तक इस घर से बाहर नहीं निकलती थी, जब तक कि वो हनुमान चालीसा का पाठ नहीं कर लेते थे. लेकिन उस दिन वो कम्फर्टेबल नहीं फील कर रहे थे, तो उनकी तरफ से  उनकी पत्नी नीला देवी ने हनुमान चालीसा पढ़ा, ये पहली बार था कि शम्मी ने खुद हनुमान चालीसा नहीं पढ़ा था. शायद उनको आभास हो गया था कि अब उन्हें वापस आना ही नहीं है. शम्मी कपूर पूरे सात दिन ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल के आईसीयू में एडमिट थे. ये पहली बार था कि 8 साल तक डायलेसिस पर रहकर भी मुस्कराते रहने वाले, कभी करोडों दिलों को केवल याहू के जरिए एक अनोखी सी ऊर्जा में सराबोर कर देने वाले इस अलमस्त हीरो के अंदरूनी ऊर्जा ही मानो गायब हो गई थीं.
 
जब राजकपूर की पत्नी और उनकी भाभी कृष्णा कपूर ने कहा, आपसे पहले मेरा नंबर है तो शम्मी का जवाब था- “नहीं भाभीजी.. मुझे जाने दीजिए… पापाजी की बहुत याद आ रही है” , गीता के गुजरने के बाद शम्मी के साथ चालीस साल गुजारने वाली पत्नी नीला से उन्होंने 13 अगस्त को कहा— “नीला प्लीज मुझे इस बार मत रोको, मैं तो बहुत पहले ही जाना चाहता था, लेकिन तुम मुझे रोक लेती थीं…मैं जाना चाहता हूं”.
 
14 अगस्त 2011, रविवार का दिन, वक्त था सुबह के सवा पांच बचे, शम्मी कपूर ने आखिरी सांस ली. कपूर परिवार ही नहीं पूरा बॉलीवुड और देश की तमाम बड़ी हस्तियां उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुईं. उनका अंतिम संस्कार भी मालाबार हिल के उसी वाणगंगा  मंदिरों के क्रीमेशन ग्राउंड में किया गया, जहां उनकी पहली पत्नी गीता बाली का हुआ था. मरने के बाद फिर से मिल गए होंगे शायद दोनों, करीब के बाणगंगा मंदिर में ही दोनों की शादी हुई थी.

 

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