नई दिल्ली. ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’, मुझे लगता है कि फिल्म के इस टाइटल ने ही तय कर दिया होगा कि फिल्म देखने जाना है कि नहीं. लेकिन इतना तय है कि जो लोग इस टाइटल और अनुमानित स्टोरी लाइन के वाबजूद देखने जा रहे हैं वो निराश नहीं होंगे, शायद इतने सीरियस, बोर या ‘रूरल सोशल इश्यू टाइप’ के सब्जेक्ट को भी वो ठहाके लगाकर देखेंगे, जो कि आसान नहीं था.
फिल्म की कहानी वही है, जैसी कि आपने ट्रेलर देखकर सोची होगी, एक यूपी टॉपर (भूमि) एक साइकिल शॉप वाले (अक्षय) के प्रेम में पड़ कर शादी तो कर लेती है, लेकिन जब उसे पता चलता है कि घर में टॉयलेट नहीं है और उसके पंडित ससूर बनने भी नहीं देंगे, वो विद्रोह कर देती है, नौबत तलाक की आ जाती है. खबर मीडिया में जाती है और फिर गांव पीपली लाइव बन जाता है, आगे की कहानी के लिए फिल्म देखें. यानी एक सामान्य सी अखबार की खबर जैसी कहानी है, लेकिन श्री नारायण सिंह ने इतनी सी कहानी को कैसे सीन दर सीन बुनते हुए फिल्म को अंजाम तक पहुंचाया है, वो काबिले तारीफ है.
कहानी का बैकग्राउंड ब्रज में बरसाना के आसपास के दो गांव हैं, जिनमें से एक नंद गांव की तर्ज पर मंद गांव है. इसलिए कोशिश की गई है कि ब्रजभाषा का ही इस्तेमाल किया जाए और लठामार होली भी आपको इसमें दिखेगी. हालांकि, यहां चूक गए श्रीनारायण, पहली बार लठामार होली पर फिल्मी गीता रचने का क्रेडिट तो उनका गया, लेकिन उस गाने में इतनी दमदारी नहीं है कि उसे ब्रज वाले भी होली पर बजाना पसंद करें- गोरी तू लठ मार.
केवल अक्षय के छोटे भाई के रोल में दिखे दिव्येंदु ही ठीक से ब्रज भाषा बोल रहे हैं, जैसे-तो भाभी वापिस ना आंगी, जाने गुब्बारो मेरे माऊं फेंकौ, वाय देख लुंगो. ये सब डायलॉग अक्षय के मुंह से सुनने को मिले ही नहीं. हालांकि, ज्यादातर लोग हिंदी, ब्रज, अवधी, भोजपुरी, ख़ड़ी बोली मिक्स करके बोलते रहे. भूमि जेई और ये ही एक ही लाइन में बोलती दिखीं. दोनों का मतलब एक ही होता है. वैसे भी बुड़बक शब्द यहां इस्तेमाल नहीं होता. हां बीच-बीच में गांवों की बदलती लाइफ व्हाट्सएप्प, ऑनलाइन, सेल्फी, लैपटॉप आदि के जरिए दिखाई गई है.
फिल्म को बोरियत से बचाने के लिए पहले सीन से ही ऐसे डायलॉग रखे गए, जो बोल्ड हों. पहले सीन में शौच को जाती औरतें बात कर रही हैं – मशीन तो इसके घर में चल रही है आजकल, कहां से लाई शिलाजीत. या फिर अनुपम खेर का सनी लियोन के डांस को टीवी में झुककर देखने का सीन. ब्रज क्षेत्र खुली गालियों के लिए मशहूर है, उसका फायदा डायरेक्टर ने लिया है, दूध की दुकान, भाभी, सांडे का तेल, अब तो भैया दंगल करेगो जैसे तमाम द्वीअर्थी या मुंहफट तरीके से बोल्ड डायलॉग इस मूवी को बांधने के लिए डाले गए हैं. कुछ तो भूमि ने भी बोले हैं, जैसे—देखी तो सही, लेकिन किस की देखी ये नहीं पता चला.
इस मूवी से ऋतिक रोशन, कबीर बेदी और शाहरुख खान तीनों पर निशाना भी साधा गया. एक सीन में कबीर बेदी की इस उम्र में चौथी शादी पर कमेंट मारा गया है तो एक लेडी सुजैन के ऋतिक रोशन को तलाक पर कमेंट करती है, तो जहां औरतें लोटा लेकर जाती हैं, वहां शाहरुख खान रोमांस फरमाते आए हैं, फिल्म में इस डायलॉग को भी मौज-मस्ती में डाल दिया गया है.
अगर बीवी पास चाहिए तो घर में संडास चाहिए… य़े डायलॉग और बेहतर हो सकता था. इतना तय था कि अक्षय के अलावा शायद और कोई सोफिस्टीकेटेड हीरो इस रोल को नहीं कर सकता था. आपको अक्षय की उकडूं बैठने की स्टाइल सौदागर के अमिताभ की तरह और लुक पड़ोसन के सुनील दत्त जैसा लगेगा.
अक्षय ऐसी एक्टिंग करते आए हैं, इसमें अलग से उन्होंने कुछ नहीं किया. भूमि में निखार दिखेगा, वो डिम्पल यादव के लुक में दिखेंगी आपको. फिल्म को दिव्येन्दु और सुधीर की एक्टिंग ने बांधे रखा है, आपको पसंद आएगी. अरसे बाद शोभा खोटे नजर आई हैं. अनुपम खेर को छोटे से रोल में बस तड़के के लिए डाला गया है. म्यूजिक पर वाकई काम कायदे से हुआ नहीं, कोई ब्रज का लोकगीत उठाकर एक यादगार गाना दे सकते थे.
फर्स्ट हाफ आपको लम्बा लग सकता है और सेकंड हाफ पीपली लाइव की याद दिलाएगा. हालांकि, डायरेक्टर ने कोशिश की है कि टाइटल के बावजूद जो लोग फिल्म देखने आ गए हैं, वो अंत तक हंसते रहें. मनु स्मृति, गीता, कान्हा के प्रसंग बीच-बीच में दिए गए हैं, शहरी जनता को भले ही पसंद ना आए, लेकिन छोटे इलाकों में लोग इस फिल्म को पसंद करेंगे. खास बात ये है कि मोदी की सरकार में नेशनल अवार्ड जीतने वाले अक्षय कुमार ने इस फिल्म के जरिये नोटबंदी की तारीफ भी की है.