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MOM Movie Review: मातृ और मॉम शब्दों जितना ही फर्क है दोनों फिल्मों में

नई दिल्ली: रवीना टंडन की मातृ और श्रीदेवी की मॉम में आपको इतना ही फर्क लगेगा, जितना कि शब्दों में आपको लगता है. बहुत मामूली से बदलावों के साथ इतने कम अंतराल यानी तीन महीनों में एक से प्लॉट पर बनी दो फिल्में देखना ऑडियंस के लिए खासा मुश्किल है.
एक स्कूल टीचर की बेटी का रेप और कोर्ट से सजा ना मिलने पर मां का अपने हाथों से उसको सजा देना. दोनों ही केस स्कूल से जुड़े थे, दोनों ही फिल्मों में बाप से ज्यादा मां को गुस्सा आता है, दोनों ही फिल्मों में बिना बाप के पता चले केवल मां इंतकाम लेती है, दोनों ही फिल्मों में मां पर कानून और सीनियर्स के हाथों मजबूर पुलिस इंस्पेक्टर शक करता है और मदद भी. हालांकि मातृ में रवीना और बेटी दोनों का रेप होता है और बेटी मर जाती है.
हालांकि जब आप हॉल से निकलेंगे दो डायलॉग नहीं भूल पाएंगे और ये दोनों डायलॉग नवाजुद्दीन सिद्दीकी के किरदार ने बोले, भगवान हर जगह नहीं होता है, इसलिए तो उसने मां बनाई है और दूसरा था- मर्द कभी रेप नहीं करते. अरसे पहले कभी अमिताभ बच्चन की फिल्म का डायलॉग था, मर्द को दर्द नहीं होता, और आज श्रीदेवी की फिल्म ने ये डायलॉग दिया है, मर्द कभी रेप नहीं करते. हो सकता है कल को कोई इसे कैम्पेन में इस्तेमाल करे.
रवीना की फिल्म से जो फर्क था एक तो ये कि श्रीदेवी सौतेली मां के रोल में हैं, ऐसे में श्रीदेवी के किरदार में और दम आ जाता है. दूसरे उनकी मदद के लिए एक प्राइवेट डिटेक्टिव नवाजुद्दीन को जोड़ दिया गया है, वो भी अनोखे गैटअप के साथ. तो फिल्म काफी हद तक ऑडियंस को बांधे रखती है. पहले रेपिस्ट को हिजड़ा बनाने का तरीका इंसाफ के तराजू से लिया गया है, यहां तक फिल्म स्पीड से चलती है. एआर रहमान का बैक ग्राउंड म्यूजिक भी ऑडियंस को बांधे ऱखने में कारगर है.
लेकिन पूरी फिल्म देखने के बाद आपको लगता है कि श्रीदेवी की बेहतरीन एक्टिंग के बावजूद ये फिल्म श्रीदेवी की 300वीं फिल्म होने लायक शायद नहीं है. श्रीदेवी का बेस्ट सीन था, जब वो हॉस्पिटल में एक रेपिस्ट के पास बैठकर उससे कहती है, कहता था ना जा अब मां को बुला तो आ गई मां. फिल्म में कुछ सीन वाकई में बेहतरीन फिल्माए गए, दूसरा सीन था फिल्म के एंड में आकर श्रीदेवी की बेटी का उनको मॉम बोलना, जिसमें काफी इमोशन था.
एक्टिंग के लिहाज से देखा जाए तो नवाजुद्दीन को भी पूरा मौका नहीं मिला और ना श्रीदेवी को, अक्षय खन्ना इतने दिन बाद आए लेकिन रोल में ही दम नहीं था. हालांकि फिल्म में श्रीदेवी के पति और सौतेली बेटी के रोल के लिए अदनान सिद्दीकी और सैजल अली दो पाकिस्तानी एक्टर्स लिए गए हैं. अदनान रजत कपूर जैसे लगते हैं, उनके लिए करने को कुछ था भी नहीं, करीना कपूर जैसा लुक देने वाली सजल अली के खाते में जरूर कुछ अच्छे सींस आए हैं. हालांकि कभी-कभी आपको श्रीदेवी की आवाज हेमा मालिनी जैसी लगेगी, शायद बॉटोक्स का असर हो.
फिल्म को डायरेक्टर ने सस्पेंस थ्रिलर भी ढंग से बनाने की कोशिश की है, हालांकि लॉजिक पर इमोशन भारी पड़ा है. चूंकि प्लॉट पर ढंग से काम नहीं किया गया, सो फिल्म में की गई सारी मेहनत ओवरऑल उसे कमजोर होने से बचा नहीं पाती. ऐसे में श्रीदेवी के फैन्स के लिए ये फिल्म जरूरी भले ही हो, लेकिन आप इसे छोड़ने का चांस ले सकते हैं. वैसे चांस कुछ लोग सेब के बीज के जरिए मर्डर के आइडिया से भी ले सकते हैं.
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