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RSS ने सिखाया था बॉलीवुड के टॉप विलेन अमरीश पुरी को अनुशासन

मुंबई: अमरीश पुरी की जयंती पर सोशल मीडिया में उनके आरएसएस से जुड़ाव को लेकर कई पोस्ट आईं, ज्यादातर में चाहे वो आरएसएस समर्थक हों या आरएसएस विरोधी सबने इस बात का जिक्र किया कि अमरीश पुरी संघ से जुड़े हुए थे. एक वक्त में वो संघ को इतना ज्यादा मानते थे कि उनके मरने के बाद भी उनके परिवार ने इंटरव्यू में कहा कि वो कट्टर संघ समर्थक थे. अपनी बायोग्राफी में भी उन्होंने इस बात का जिक्र किया है. ऐसे में संघ से मोहभंग की बात भी कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में आई हैं.
अमरीश पुरी की बायोग्राफी द एक्ट ऑफ लाइफ में उन्होंने अपनी लाइफ के शुरुआती संघर्ष का जिक्र किया है, कि कैसे उनके एक कजिन के एल सहगल जो जानेमाने गायक और अभिनेता थे, की शराब पीने की आदत के चलते उनके पिता फिल्मों में काम करने के सख्त खिलाफ थे.
उनसे पहले उनके दोनों भाई चमन पुरी और मदन पुरी फिल्मों में काम करने लगे थे. मदन पुरी तो जब कोलकाता से अपनी नौकरी छोड़कर मुंबई चले गए तो उनके पिता काफी गुस्सा हुए. कहा भी कि जैसे केएल सहगल 42 साल की उम्र में ही शराब पीने की आदत के चलते मर गए, तुम लोग भी मरोगे. हालांकि सुनी किसी ने नहीं और अमरीश पुरी भी हीरो बनने की ख्वाहिश लेकर मुंबई जा पहुंचे लेकिन हर किसी ने उनको रिजेक्ट कर दिया, ये कहकर कि आपकी शक्ल हीरो जैसी नहीं लगती.
तब अमरीश पुरी दिल्ली में ही रंगमंच से जुड़ गए, बाद में मुंबई पृथ्वी थिएटर से जुड़े, एक इंश्योरेंस कंपनी से जुड़े. फिर एक मराठी फिल्म में अंधे का रोल मिला औक फिर रेश्मा और शेरा के तौर पर पहली बॉलीवुड फिल्म 39 साल की उम्र में मिली और हम पांच में पहली बार विलेन के तौर पर उभर कर सामने आए.
लेकिन दिल्ली में रहने के दौरान जब वो पंद्रह सोलह साल के थे तो वो राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ गए. पांचजन्य से एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया कि ‘’मैं 15-16 वर्ष का था तब संघ शाखा में जाना शुरू किया था. एक घंटे की शाखा के उपरांत स्वयंसेवकों के परिवारों से सम्पर्क… शाखा के कार्य में इतना रम गया था कि मुझे शाखा के मुख्य शिक्षक की जिम्मेदारी दी गई. मैं मानता हूं कि उस समय शाखा में जो संस्कार मुझे मिले उन्होंने मेरे व्यक्तित्व और चरित्र को गढ़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. आज फिल्म उद्योग में मैं हूं, जहां पतन सबसे ज्यादा होता है.
इसके बावजूद मेरा चरित्र विशुद्ध है तो वह संघ संस्कारों के कारण ही. नाटकों से ज्यादा जुड़ गया तो संघ से सम्पर्क कम होता गया मगर संघ संस्कार जीवन से नहीं गए’’. ये इंटरव्यू किशोर मकवाणा ने सिंधु दर्शन 2001 के दौरान लेह में लिया गया था.
अमरीश पुरी ने एक के आडवाणी के साथ इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया था, इस कार्यक्रम के पीछे पूरी सोच ही संघ की है. आडवाणी ने बतौर सिंधी होने के, इस कार्य़क्रम में अपनी दिलचस्पी दिखाई. अमरीश पुरी ने इस दौरान अपने संघ से नजदीकियों का राज पत्रकारों से खोला. उन्होंने बताया कि कैसे बतौर मुख्य शिक्षक उनके सर पर शाखा में ट्रेनिंग देने का काम था और इसी अनुशासित जिंदगी ने उनको सैनिक की तरह अनुशासित बना दिया, तभी तो वो कभी किसी सैट पर लेट नहीं होते थे.  आप पांचजन्य की ये 2005 की रिपोर्ट इस लेख में पढ़ सकते हैं– http://panchjanya.com/arch/2005/1/23/File32.htm
उन्होंने अपनी बायोग्राफी द एक्ट ऑफ लाइफ में लिखा भी है, ‘’बहुत ईमानदारी से कहूंगा कि मैं उनकी हिंदुत्व की विचारधारा की ओर आकर्षित हुआ था, जिसके अनुसार हम हिंदू हैं और हमें हिंदुस्तान की विदेशी शक्तियों से रक्षा करनी है. उन्हें निकाल बाहर करना है ताकि हम अपने देश पर शासन कर सकें. लेकिन, इसका धार्मिक कट्टरता से कोई सम्बंध नहीं था, यह मात्र देशभक्ति थी.“ उन्होंने अपनी बायोग्राफी में कहीं भी नहीं लिखा कि उनका संघ से कभी मोहभंग हो गया था, उलटे उन्होंने अपनी अनुशासित जीवन शैली के लिए संघ से जुड़ाव को ही श्रेय दिया है. लेकिन कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में ये दावा किया जा रहा है कि गांधीजी की हत्या के बाद उनका संघ से मोह भेग हो गया था.
जबकि उनकी मौत के एक साल बाद 2006 में द हिंदू अखबार में उनकी बायोग्री के रिव्यू में भी उनके परिवार के हवाले छपा कि वो पक्के संघ समर्थक थे. यानी कि उनकी आस्था डिगी नहीं थी. इन खबर से बातचीत करते हुए राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के दिल्ली प्रदेश मीडिया प्रभारी राजीव तुली कहते हैं, ‘’जब गांधीजी की हत्या हुई तब अमरीश पुरी 15-16 के ही रहे होंगे और उसी साल वो संघ से जुड़े थे, तो इतनी जल्दी तो मुख्य शिक्षक बनने का सवाल नहीं. यानी वो 1948 के बाद भी जुड़े रहे.
दूसरे वो फिल्मों में सक्रिय होने के बाद सार्वजनिक तौर पर कार्यक्रमों में नहीं जाते थे, लेकिन अपने पुराने साथियों से जुड़े रहे, तीसरे अगर संघ से मोह भंग हुआ होता तो ना वो बायोग्राफी में संघ को अनुशासित लाइफ का श्रेय देते और ना उनके परिवार वाले 57 साल बाद उन्हें कट्टर संघी बताते. हमने कभी उनको अपना नहीं बताने का ढिंढोरा नहीं पीटा, लेकिन लोग संघ को बदनाम करने की साजिश में लगे रहते हैं. कम से कम अमरीश पुरी जैसी शख्सियत को तो बख्श दें.“
द हिंदू में अमरीश पुरी की बायोग्राफी का रिव्यू 2006 में छपा था, उसकी कुछ लाइनें पढ़िए, “ Amrish Puri’s family members remember him as a “fitness freak”, a “night bird”, a “staunch RSS supporter” and a “traditional father”. “ इस रिव्यू को आप इस लिंक में पढ़ सकते हैं– http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-features/tp-fridayreview/in-memory-of-a-beloved-villain/article3218572.ece
साफ है 1948 में अमरीश का ये परिवार तो था नहीं और उसके बाद मोह भंग जैसी स्थिति होती तो वो उनके संघ समर्थक होने की बात नहीं करते बल्कि मोहभंग की बात करते. जाहिर है बिना संदर्भ के अमरीश पुरी के मरने के सालों के बाद सोशल मीडिया पर नई तरह की कहानियां शुरू हो गई हैं, जिनके बारे में ना कभी अमरीश ने किसी मंच पर कहा या लिखा और ना उनके परिवार ने.
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