Review: कॉमेडी और सस्पेंस के बीच फंस गई बैंक चोर

बैंक चोर फिल्म को देखकर जब बाहर निकलेंगे तो हिसाब लगा रहे होंगे कि फिल्म किसी को देखने के लिए रिकमंड करें कि नहीं

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Review: कॉमेडी और सस्पेंस के बीच फंस गई बैंक चोर

Admin

  • June 16, 2017 1:19 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: डायरेक्टर बम्पी या तो खुद कन्फ्यूज्ड थे, या ऑडियंस को रखना चाहते हैं, ये तो वही जाने लेकिन इतना तय है कि आप फिल्म को देखकर जब बाहर निकलेंगे तो हिसाब लगा रहे होंगे कि फिल्म किसी को देखने के लिए रिकमंड करें कि नहीं. जो भी हो इतना शायद पहले से तय था कि फिल्म सुपर डुपरहिट नहीं होने जा रही है, लेकिन फिल्म का नब्बे फीसदी हिस्सा एक बिल्डिंग में या उसके इर्द गिर्द फिल्मा लिया गया है तो पैसे तो निकाल ही लेगी.
 
कन्फ्यूजन की बात इसलिए लिखी, क्योंकि फिल्म के ट्रेलर इसे कॉमेडी फिल्म बताते हैं. फर्स्ट हाफ तक आपको ऐसा लगता भी है, लेकिन फिर डायरेक्टर जुट जाता है ये साबित करने में कि ये कोई कॉमेडी फिल्म नहीं है बल्कि एक सस्पेंस थ्रिलर है, धूम सीरीज जैसी एक सुपरचोर की कहानी है. चार लाइन में कहानी है एक ऐसे बैंक चोर की जो एक बड़ी साजिश का खुलासा करने के लिए पूरा मजमा एक बैंक में इकट्ठा कर लेता है और उसके लिए तमाम पासे बिछाता है, जिसमें कुछ बेवकूफी की हरकतें भी शामिल हैं और आखिर में वो अपना मिशन कम्पलीट करके डॉन के शाहरुख खान की तरह उड़ जाता है.
 
 
मान भी लिया जाए कि कुछ करेक्टर्स तय करके खुद को बेवकूफ साबित करते हैं, और बैंक में डकैती (पूरी फिल्म में इसे चोरी बोला गया), के वक्त बेवकूफियां करते हैं, लेकिन पुलिस इंस्पेक्टर से लेकर बैंक मैनेजर, सिक्योरिटी के सिपाही और सीबीआई अधिकारी भी बेवकूफों जैसी हरकतें करें तो आपको लगेगा कि ये फन फिल्म है. सबको बेवकूफ दिखाकर अचानक डायरेक्टर उन्हें इंटेलीजेंट साबित करने की कोशिश करे तो कन्फ्यूजन होना स्वभाविक है. 
 
वैसे भी कुछ तर्क हजम नहीं होते, लाइव करती जर्नलिस्ट बैंक चोर की गैंगमेट कैसे हो सकती है, जो सीबीआई ऑफिसर पहली मुलाकात में ही बैंक में घुस जाता है, वो चोर को पीटकर एक घंटे का वक्त देकर. फिर वापस क्यों आता है. ऐसे कई फालतू के सीन हैं, जो डायरेक्टर की इंटेलीजेंसी दिखाने के बजाय बेवकूफी दर्शाते हैं, चूंकि उससे आपके किरदार भी हास्यास्पद लगते हैं. बप्पी लहरी, हिमेश रेशमिया से लेकर अरनब गोस्वामी तक को कॉमेडी में जबरन घसीटा गया है.
 
 
फिल्म में दिल्ली और मुंबई की सालों पुरानी अदावत को कुछ अच्छे डायलॉग्स और कुछ जोक्स के जरिए बखूबी दिखाया गया है, लेकिन ज्यादा कॉमेडी के चक्कर में तमाम बेसिरपैर की कॉमेडी भी ठूंस दी गई है. हालांकि आपको बैंकचोर के जरिए दो नए कलाकारों का काम पसंद आएगा, एक तो साहिल वैद का, बद्री की दुल्हनियां में वरुण के बेवकूफ दोस्त के किरदार को अच्छे से निभाने के बाद साहिल ने एक बैंकचोर, गैंगलीडर का किरदार शानदार तरीके से निभाया है, हालांकि उनकी भी कुछ डायलॉगबाजी तो फालतू ही थी. दूसरा किरदार है रीतेश देशमुख के साथ गेंदा यानी भुवन अरोरा का. उसकी मासूम कॉमेडी देखकर आप मुस्कराए बिना नही रह पाएंगे.
 
फिल्म में बाबा सहगल का बिना मतलब का एक किरदार हैं, जर्नलिस्ट के छोटे से किरदार में रेहा चक्रवर्ती ठीकठाक हैं, साथिया के 12 साल बाद यशराज फिल्म्स लौटे विवेक ओबेरॉय के किरदार अमजद खान के हिस्से में दमदार सींस नहीं थे, बस मीडिया वालों का मजाक उड़ाते दिखते हैं. वैसे उनसे बेहतर साहिल वैद का रोल था.
 
 
रीतेश लीड रोल में थे, उन्होंने अपनी तरफ से बेहतर करने की कोशिश की है. फिल्म में गानों या म्यूजिक का कोई स्पेस नहीं था, फिल्म के गाने देखने के लिए आपको यूट्यूब में जाना होगा. फिल्म के एडीटर ने जरूर कुछ अच्छे आइडिया लगाए हैं. कुल मिलाकर अगर आप इस फिल्म को नहीं भी देखेंगे तो कुछ मिस नहीं करेंगे लेकिन अगर टाइम पास समझकर देखने जाएंगे तो मजा आएगा.

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