नई दिल्ली: के. आसिफ का सपना था मुगल ए आजम, 15 साल लग गए इस सपने को पूरा करने में. कई बार स्टार कास्ट बदली गई तो फिल्म का नाम भी. तमाम गाने और सींस में बदलाव किया गया, वो ऐसी यादगार फिल्म बनाना चाहते थे, जिसकी वजह से लोग उन्हें हमेशा याद करें. लेकिन उनकी सबसे बड़ी मुश्किल थी ‘प्यार किया कोई चोरी नहीं की’ गीत को फिल्माना. इस लेख के साथ जो फोटो है, दरअसल वो इसी मुश्किल की कहानी कहता है.
दरअसल ये बात बहुत कम लोगों को पता है कि के आसिफ ने अपनी ब्लॉक बस्टर फिल्म मुगल ए आजम का पहला नाम अनारकली रखा था और नूतन को उस रोल के लिए साइन किय़ा था. इटावा में पले बढ़े के आसिफ ने अपनी पहली फिल्म फूल डायरेक्टर की थी 1945 में, जिसमें उन्होंने पृथ्वीराज कपूर, दुर्गा खोटे और सुरैया को लिया था.
फिल्म सुपरहिट रही लेकिन उसी दौरान उन्होंने मुगल ए आजम का सपना देखा. आधार बनाया गया सैयद इम्तियाज अली ताज के उपन्यास अनारकली को और नूतन के साथ हीरो चुने गए थे चंद्रमोहन. सोहराब मोदी की फिल्म पुकार में उन्हें जहांगीर के रोल के लिए जाना जाता है. दस रील शूट भी हो गईं, लेकिन चंद्रमोहन की अचानक मौत ने आसिफ का खासा नुकसान कर दिया. वो सारे सीन फिर से शूट करने पड़े थे.
इधर नूतन दिलीप कुमार के साथ काम करना चाहती थीं, इसलिए दिलीप को इसमें साइन कर लिया गया. फिर अचानक से कुछ ऐसा हुआ कि नूतन ने अनारकली का रोल करने से मना कर दिया. इसकी वजह बस तीन लोगों को पता थी, एक दिलीप कुमार, दूसरे के आसिफ और तीसरी खुद नूतन. लेकिन किसी ने इस राज का कभी खुलासा नहीं किया. के आसिफ ने नूतन के इनकार के बाद ना सिर्फ मधुबाला को साइन कर लिया बल्कि फिल्म का नाम अनारकली से बदल कर मुगल ए आजम कर दिया.
उसके बाद नूतन और दिलीप कुमार को साथ काम करने के लिए सालों इंतजार करना पड़ा और दोनों की जोड़ी फिर सुभाष घई की फिल्म कर्मा में ही एक साथ नजर आई. इधर के आसिफ ने नूतन को ध्यान में रखकर फिल्म के 6 गाने भी लिखवा लिए थे.
के आसिफ इस फिल्म को लगता है फुरसत से बनाना चाहते थे, तभी लीड स्टार कास्ट के बदल जाने के बावजूद वो फिल्म से हटे नहीं, कुल बीस गाने उन्होंने फिल्म के लिए लिखवाए और रिकॉर्ड करवाए, जिसमें से दस तो कहां गए किसी को पता नहीं चला. क्योंकि मुगल ए आजम के बाद के आसिफ कोई फिल्म ही नहीं बना पाए. वो करते भी क्या उनका हीरो ही मर जाता था, मुगल ए आजम के चंद्रमोहन शूटिंग के दौरान ही मर गए तो गुरुदत्त की मौत 1964 में लव एंड गॉड की शूटिंग के दौरान हो गई.
फिर उन्होंने गुरुदत्त की जगह संजीव कुमार को साइन कर लिया, लैला मजनूं की कहानी पर बनने वाली इस फिल्म में निम्मी लैला के रोल में थीं. लेकिन इस बार 1971 में के आसिफ की मौत हो गई औऱ उनकी मौत के 23 साल बाद उनकी बीवी ने 1986 में इस फिल्म को अधूरी ही रिलीज किया था.
मुगल ए आजम में के आसिफ एक गाना रंगीन शूट करना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने खास तौर पर एक शीशमहल का सैट बनवाया था. जिसकी कीमत उन दिनों 13 लाख रुपए आई थी और पूरी फिल्म की कीमत आई थी डेढ़ करोड़, जो उस दौर के लिए खासी ज्यादा थी. यूपी के लोक गीत प्यार किया, क्या चोरी करी है को उन्होंने इस सैट पर फिल्माने के लिए फायनल किया था. नौशाद और शकील बदायूंनी ने मिलकर ये गीत तैयार किया और बदायूंनी चाहकर भी मुखड़े में कोई खास बदलाव नहीं कर पाए.
मोहन स्टूडियो में ये सैट लगाया गया था, 30 फुट ऊंचा, 130 फुट लम्बा और 80 फुट चौड़ा था ये शीशमहल का सैट. करीब दो साल लगे थे इस सैट को तैयार करने में, मुगल ए आजम के प्रोडयूसर शापूरजी पालोनजी ने बेल्जियम से इसके चमकने वाले शीशे और कांच खास तौर पर मंगवाए थे. 13 लाख रुपया इसी सैट पर खर्च हो गया था. जो यूरोपियन फिल्म एक्सपर्ट शापूर जी ने इस फिल्म से जोड़ा था, उसने इस सैट को देखते ही शापूर जी के ऊपर बिजलियां गिरा दीं, कहा कि इतने सारे मिरर हैं, ये तो शूट ही नहीं हो पाएगा, कैमरे के लैंस में रिफ्लैक्ट करेगा. शापूर जी बिफर गए और गुस्से में उस सैट को तोड़ने का ऑर्डर दे दिया, वो पहले ही इस तरह के सैट को बनाने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे.
वो के आसिफ से इतने नाराज हुए कि सीधे सोहराब मोदी के पास जा पहुंचे, जो इससे पहले झांसी की रानी और शीशमहल जैसी ऐतिहासिक बैकग्राउंड की फिल्में बना चुके थे. शापूर जी ने उनसे आग्रह किया कि वो मुगल ए आजम का डायरेक्शन संभाल लें. अगले दिन सोहराब मोदी को साथ लेकर शापूरजी मोहन स्टूडियो पहुंचे, देखा तो सामने इस सैट के तख्त पर इसी अंदाज में के आसिफ बैठे हुए थे.
के आसिफ ने लगभग धमकी देने वाले अंदाज में कहा कि ये मेरा सपना है, कोई हाथ तो लगाए इस सैट को मैं टांगें तोड़ दूंगा उसकी. काफी गहमागहमी के बाद के आसिफ ने शापूरजी से गुजारिश की उन्हें एक आखिरी मौका दिया जाए.
के आसिफ ने रिफ्लैक्टर्स की मदद से वो गाना उसी सैट पर फिल्माया और प्रिंट्स लंदन की लैब में प्रोसेसिंग के लिए भेज दिए, जो नतीजे आए वो उम्मीद से कई गुना बेहतर थे. उन्होंने शापूरजी और सोहराब मोदी से भी अपने बर्ताव के लिए माफी मांग ली. शापूर जी का गुस्सा भी काफूर हो गया. उनके सैट पर लगे पैसों की कीमत वसूल हो गई थी.
इतना ही नहीं फिल्म की रिलीज के बाद भी उस सैट को अगले दो साल तक तोड़ा नहीं गया, मोहन स्टूडियों में उस सैट को देखने टूरिस्टों की लाइन लगी रही. हालांकि के आसिफ का अपने जीवन में ना तो मुगल ए आजम को पूरी रंगीन बनाने का सपना पूरा हो पाया और ना लव एंड गॉड को मुगल ए आजम से भी बेहतर बनाने का सपना.