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अमिताभ और जया की फिल्मों के ये दिलचस्प राज पढ़कर आप भी हो जाएंगे हैरान

मुंबई: अमिताभ बच्चन और जया बच्चन की एक ही फिल्म से पहली शुरुआत थी फिल्म गुड्डी के साथ. 1971 में रिलीज हुई ये फिल्म जिसमें पहली बार जया बच्चन का एक फुल लेंथ रोल था और वो इसमें फिल्म स्टार धर्मेन्द्र की दीवानी थीं, चूंकि धर्मेन्द्र इसमें खुद का ही रोल कर रहे थे तो फिल्मी दुनियां के सीन भी दिखाए जाने थे.
तो उसमें कई एक्टर्स गेस्ट रोल में थे, जिनमें राजेश खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, विश्वजीत, दिलीप कुमार, अशोक कुमार, माला सिन्हा, नवीन निश्चल आदि के साथ साथ अमिताभ बच्चन ने भी एक छोटा सी गेस्ट एपीयरेंस दी थी. जया की अगली फिल्म में भी अमिताभ बच्चन ने गेस्ट एपीयरेंस दी, ये फिल्म थी अपना घर. इस फिल्म में जया के हीरो थे वरुण धवन के ताऊ और डेविड धवन के बड़े भाई अनिल धवन, बासु चटर्जी की ये फिल्म 1972 में रिलीज हुई थी.
इसी साल अमिताभ जया की तीसरी फिल्म में नजर आए, वो थी हृषिकेश मुखर्जी की ही बावर्ची, जिसमें राजेश खन्ना जया भादुड़ी के साथ लीड रोल में थे. अमिताभ बच्चन का यूं तो कोई रोल नहीं था, लेकिन इस फिल्म में अमिताभ बच्चन सूत्रधार थे, यानी फिल्म में अमिताभ बच्चन की आवाज गूंजती रहती है. भुवनसोम बतौर सूत्रधार अमिताभ की दमदार आवाज का दूसरी बार किसी फिल्म में इस्तेमाल किया गया था. आनंद के बाद राजेश खन्ना और अमिताभ दोनों की ये दूसरी फिल्म थी.
इस तरह से अमिताभ और जया की लीड जोड़ी बनने से पहले वो तीन फिल्मों में साथ साथ काम कर चुके थे. 1972 में ही उनकी पहली फिल्म जो बतौर जोड़ी साथ आई वो थी बंशी बिरजू, डायरेक्टर प्रकाश वर्मा की इस फिल्म में जया बंशी बनी थीं और बच्चन बिरजू. आपको बंटी और बबली की याद आ गई होगी. इस फिल्म में अमिताभ के दोस्त और महमूद के भाई अनवर अली ने भी काम किया था, फिल्म से दोनों को ही कोई खास फायदा नहीं हुआ.
अमिताभ की तब तक आनंद, रेशमा और शेरा, बॉम्बे टू गोवा जैसी फिल्में आ चुकी थीं तो जया की गुड्डी, जवानी दीवानी, परिचय और बावर्ची जैसी फिल्में आ चुकी थीं. पहली बार जया ने थोडा अलग किस्म का किरदार किया था, वो एक प्रॉस्टीट्यूट के रोल में थी.
1972 में ही अमिताभ और जया की जोड़ी वाली दूसरी फिल्म रिलीज हुई, फिल्म का नाम था एक नजर. जिसके डायरेक्टर थे बीआर इशारा. अमिताभ एक मशहूर वकील के कवि हृदय बेटे के रोल में थे. अमिताभ को जया पसंद आ जाती हैं.
इस फिल्म में भी जया जिस्म के धंधे वाले लोगों से जुडी थीं. वो सड़क के संजय दत्त की तरह जया को गंदगी से निकालने की कोशिश करते हैं, इसी दौरान किसी का खून होता है और इलजाम जया के सर आता है और अमिताभ के पब्लिक प्रॉसीक्यूटर बाप को मौका मिलता है जया पर अपनी गुस्सा निकालने का. इसी फिल्म से पहली बार रजा मुराद ने बॉलीवुड में डेब्यू किया था. वो रोल भी उन्हें तब मिला जब शत्रुघ्न सिन्हा ने रोल छोड़ दिया था. इसी फिल्म में पहली और आखिरी बार अमिताभ बच्चन के लिए महेन्द्र कपूर ने अपनी आवाज दी थी.
सबसे दिलचस्प बात थी कि इसी फिल्म के सैट से पहली बार अमिताभ और जया के अफेयर की खबरे उड़ी, जो नादिरा के हवाले से थीं. हालांकि दोनों की जोड़ी परदे पर कोई कमाल नहीं दिखा पा रही थी. इन दोनों के बाद अमिताभ की रास्ते का पत्थर भी कोई खास नहीं चली. अमिताभ और जया दोनों को ही एक सुपरहिट की दरकार थी, जिसका मौका मिला उन्हें जंजीर से, देवआनंद के लिए लिखी गई जंजीर को कई हीरोज ने किसी ना किसी वजह से मना किया, लेकिन इसी फिल्म के जरिए प्रकाश मेहरा और सलीम जावेद की जोड़ी ने अमिताभ को बॉलीवुड के एंग्री यंग मैन के रूप में स्थापित कर दिया.
जया का भी बड़ा दमदार रोल था. हालांकि अमिताभ और प्राण ने भी पहली बार साथ काम किया था, और दोनों की ट्यूनिंग लोग आज भी नहीं भूलते. जंजीर की सफलता के बाद उसी साल रिलीज हुई अभिमान को लोग आमतौर पर उनकी निजी जिंदगी से जुड़ी फिल्म मानते हैं, लेकिन कहा जाता है कि इस फिल्म का आइडिया किशोर कुमार और उनकी पत्नी रूमा घोष की जिंदगी की कहानी से लिया गया था. हालांकि कुछ लोग रवी शंकर और अन्नपूर्णा देवी की कहानी से जोड़ते हैं.
कहा जाता है कि अमिताभ और जया ने हृषिकेश मुर्खजी की इस फिल्म में अपना खुद का पैसा भी लगाया था. इस फिल्म का नाम पहले राग रागिनी थी, बाद में अभिमान कर दिया गया था. फिल्म भारत से ज्यादा श्रीलंका में पसंद की गई और कोलम्बो के एम्पायर सिनेमा में पूरे 590 दिन तक चलती रही थी म्यूजिक पर बेस्ड इस फिल्म में एसडी वर्मन और मजरूह सुल्तानपुरी ने गानों में अपनी जान लगा दी थी. जहां अमिताभ को जंजीर से पहली बार फिल्म फेयर नॉमिनेशन मिला, वहीं जया को पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड अभिमान के लिए मिला. इसी साल यानी 1973 में दोनों ने शादी कर ली.
1975 में दोनों की एक साथ तीन फिल्में आईं, चुपके चुपके, मिली और शोले. तीनों की शूटिंग के दौरान जया बच्चन प्रेग्नेंट थीं, इसलिए ऐसे रोल्स किए जिसमें भाग दौड़ ज्यादा ना हो. ऐसे सीन अगर थे भी तो या तो बहुत पहले फिल्मा लिए गए थे या फिर डिलीवरी के बाद में. चुपके चुपके में छोटा रोल था, मिली में वो गंभीर बीमारी से पीड़ित एक युवती के रोल में थीं तो शोले में एक विधवा के रोल में थीं.
हृषिकेश मुखर्जी एक बार फिर दोनों को चुपके चुपके में लेकर आए, जो बंगाली कॉमेडी फिल्म छदम्बेशी पर आधारित थी. चूंकि धर्मेन्द्र का लीड रोल था, इसलिए इस जोड़े के लिए वो नये चेहरे लेना चाहते थे. लेकिन अमिताभ और जया की दोनों की उनसे ट्यूनिंग अच्छी थी, सो उन्हें ले लिया. मिली भी हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म थी, इसमें गंभीर बीमारी से पीड़ित लड़की से अमिताभ को प्यार हो जाता है.
ये सचिन देव वर्मन की आखिरी फिल्म थी, उनका आखिरी गाना बड़ी सूनी सूनी हैं.. को उनके बेटे आरडी वर्मन ने किशोर की आवाज में रिकॉर्ड करवाया था। फिल्म का बाद में तेलुगू रीमेक भी बनाया गया था. उसके बाद आई शोले, हेमा के साथ धर्मेन्द्र और जया के साथ अमिताभ वाली फिल्म और गब्बर सिंह. दमदार डायलॉग और शानदार डायरेक्शन, इतने सारे पहलू एक साथ थे कि फिल्म पीढ़ियों के लिए यादगार बन गई.
फिल्म की शूटिंग के दौरान जया पहली बार प्रेग्नेंट थी तो रिलीज के वक्त वो दूसरी बार प्रेग्नेंट थी. दो बच्चों की जिम्मेदारी सर पर आते ही जया ने फिल्मों से किनारा कर लिया, हालांकि बीच बीच में तीन फिल्में अभी तो जी लें, नौकर और एक बाप छह बेटे ये तीन फिल्में कीं. लेकिन जिस फिल्म के बाद जया ने पूरे 18 साल तक कोई फिल्म साइन नहीं की वो अभी तक काफी चर्चित मानी जाती है. माना जाता है कि वो अमिताभ की निजी जिंदगी से जुड़ी हुई थी, यानी एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर. ये फिल्म थी सिलसिला, जिसके लिए यश चोपड़ा ने अमिताभ के साथ परवीन बॉबी और स्मिता पाटिल के बारे में सोचा था.
लेकिन बाद में बच्चन से बातचीत हुई तो रेखा और जया को फायनल कर दिया गया. सिलसिला के बाद जया सीधे हजार चौरासी की मां में नजर आईं. सिलसिला के बाद जया और रेखा ने कभी साथ काम नहीं किया और अमिताभ के साथ भी जया पूरे बीस साल बाद नजर आईं, करन जौहर की कभी खुशी कभी गम में. जबकि रेखा और अमिताभ ने तो इसके बाद कोई फिल्म ही साथ नहीं की.
हालांकि बहुत कम लोगों को पता होगा कि जया ने कभी खुशी कभी गम से पहले भी अमिताभ की एक फिल्म में काम किया था. लेकिन एक एक्ट्रेस के तौर पर नहीं. 1981 में सिलसिला की रिलीज के ठीक सात साल बाद 1988 में रिलीज हुई शहंशाह में, शहंशाह की स्टोरी जया बच्चन की थी और इंदर राज आनंद ने इसका स्क्रीन प्ले लिखा था, लेकिन फिल्म की रिलीज से पहले ही इंदर की डैथ हो गई थी.
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