मुंबई: पेशावर अब पाकिस्तान में 14 दिसंबर 1924 को जन्मे राजकपूर ने जब मैट्रिक की परीक्षा में एक विषय में फेल हो गये तब अपने पिता पृथ्वीराज कपूर से उन्होंने कहा, मैं पढना नहीं चाहता.. मैं फिल्मों में काम करना चाहता हूं. मैं एक्टर बनना चाहता हूं. फिल्मे बनाना चाहता हूं.
राजकपूर ने अपने सिने कैरियर की शुरूआत बतौर बाल कलाकार वर्ष 1935 में आई फिल्म ‘इंकलाब’ से की. आइए आज आपको बताते हैं राजकपूर से जुड़ी कुछ खास बातें..
राज कपूर उन दिनों 22 साल के थे और पृथ्वीराज कपूर के बेटे के तौर पर ही जाने जाते थे. एक दिन अपने पिता के मामा के लड़कों प्रेम नाथ और राजेन्द्र नाथ के घर पहुंचे. जहां सफेद साड़ी में उन्होंने उनकी बहन कृष्णा को पहली बार देखा. 16 साल की कृष्णा राज को भा गईं.
साल 1946 के मई महीने में उनकी शादी एमपी के रीवा में हुई और 1947 में उनकी पहली फिल्म आई नीलकमल, अगले साल उन्होंने खुद बनाई आग और 1949 वो अंदाज के सैट पर पहली बार मिले नरगिस से. ये दोस्ती इतनी बढ़ी कि कृष्णा राज ने बायोग्राफी में लिखा है कि वो शराब पीकर आते थे और बाथटब में पड़े रोते रहते थे.
हालांकि नरगिस से कृष्णा इसलिए भी बहुत दुखी नहीं हुई क्योंकि नरगिस का आरके बैनर को बनाने में बड़ा योगदान था और उन्हें राज की गलती ज्यादा लगती थी. गुस्सा तब आया था उन्हें जब बैजयंती माला से राज का नाम जुड़ा, वो अपने बच्चों के साथ घर छोड़ गईं और नटराज होटल में रहने लगीं. फिर जब पदमिनी के साथ भी नाम जुड़ा, तब भी कृष्णा राज कपूर की आदतों से खून का घूंट पीकर रह गईं. लेकिन वो राज का साथ हमेशा निभाती रहीं, उनके बच्चों को संभालती रहीं. कृष्णा की बहन उमा ने भी प्रेम चोपड़ा से शादी की थी.
एक बार नरगिस ने बड़े ही नाजुक समय पर राज कपूर की मदद की थी, ये बात कम ही लोगों को पता है. राजकपूर की बीवी इस बात को जानती थीं. दरअसल आवारा की शूटिंग के वक्त राज कपूर ने एक गाना ‘घर आया मेरा परदेसी’ को बड़े ही भव्य सैट पर फिल्माने का मूड बनाया. जितना बजट उन्होंने सोचा था, वो उससे कई गुना ज्यादा चला गया, उस वक्त किसी गाने पर आठ लाख रुपए खर्च करना बड़ी बात थी. आप इस गाने को देखकर ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसा ड्रीम सैट रहा होगा उस वक्त के लोगों के लिए.
राज कपूर एकदम खाली हो गए, उनकी परेशानी देखकर नरगिस ने उन दिनों अपनी ज्वैलरी बेच दी और पैसा राज कपूर को दे दिया. इससे राज कपूर बाकी की शूटिंग पूरी कर पाए. फिल्म हिट होते ही राज कपूर ने नरगिस का पैसा वापस तो कर दिया, लेकिन वो इस मदद को भूले नहीं.
राजकपूर को अपने सिने करियर में मानसम्मान खूब मिला. साल 1971 में राजकपूर ‘पदमभूषण पुरस्कार’ और साल 1987 में हिंदी फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के’ पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये. बतौर अभिनेता उन्हें दो बार जबकि बतौर निर्देशक उन्हें चार बार ‘फिल्म फेयर पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया.
साल 1985 में राजकपूर निर्देशित अंतिम फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ रिलीज हुई. इसके बाद राजकपूर अपने महात्वाकांक्षी फिल्म ‘हिना’ के बनाने में व्यस्त हो गए, लेकिन उनका सपना साकार नहीं हुआ और 2 जून 1988 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया.