नई दिल्ली: आमतौर पर ऐसा हीरोइंस के साथ होता आया है, जब वो कामयाब हो जाती हैं या उन्हें बड़े हीरोज के साथ कम फिल्में मिलती हैं तो वो छोटे बजट की वूमेन ओरियंटेड और हीरो-लेस फिल्में साइन कर लेती हैं. प्रियंका ने मेरीकॉम और जय गंगाजल साइन की, रानी ने नो वन किल्ड जैसिका, अय्या और मरदानी साइन की और विद्या बालान के साथ साथ कंगना तो ऐसी फिल्मों के लिए बड़ी मूवीज ही छोड़ देती हैं.
हालिया कई मूवीज ऐसी ही आई हैं जैसे रंगून, फिल्लौरी, शबाना, बेगम जान और अब सोनाक्षी सिन्हा की नूर. अगर कायदे से बनाई जाएं तो फिल्लौरी और शबाना, काफी हद तक बेगम जान की तरह मुनाफे में रहती हैं, लेकिन अगर लाइन से भटकी तो हाल रंगून की तरह हो सकता है, नूर के साथ इस मामले में सब्र की बात केवल इतनी है कि रंगून की तरह इसका बजट ज्यादा नहीं है.
सबसे पहले कहानी की बात, नूर कहानी है मुंबई की एक जर्नलिस्ट नूर (सोनाक्षी सिन्हा) की, जो ना जिंदगी से खुश है, ना लवलाइफ से और ना जॉब से. एक एजेंसी के लिए काम करने वाली नूर को उसका बॉस सीरियस स्टोरीज नहीं करने देता और स्टार्स के इंटरव्यू जैसी स्टोरीज वो मन से नहीं करती, नतीजन उसे नौकरी छोड़नी पड़ती है.
दरियादिल बॉस उसे फिर से नौकरी पर रखता है, इस बार उसे सीरियस लेकिन एक डॉक्टर की प्रमोशनल (पेड लगने वाली) स्टोरी करने देता है, लेकिन नूर के हाथ लग जाती है उसी डॉक्टर के किडनी चुराने वाले गैंग की स्टोरी. उसका बॉस स्टोरी पर कोई फैसला नहीं लेता और नूर की वो स्टोरी उसका एक फ्रीलांसर जर्नलिस्ट अपने नाम से बेच देता है. नूर की मेड के विक्टिम भाई को डॉक्टर ठिकाने लगा दिया जाता है और डॉक्टर बच जाता है. उससे पहले ही नूर अपने बचपन के दोस्त के साथ लंदन चली जाती है, जहां उसे इस मौत की खबर मिलती है, तो उसे अपनी जिम्मेदारियों का अहसास होता है और वो वापस आकर अपने मिशन पर जुटती है, ड़ॉक्टर को सजा दिलाती है.
असल में कहानी में ही झोल है, कई कहानियों का कॉकटेल है ये मूवी. आपको लगेगा कि आप पेज3 मूवी की कोंकणा सेन को देख रहे हैं, जो सैक्स रैकेट का भांडाफोड़ करती है. फिर जब वो लंदन से आती है, तो आपको लगेगा कि आप बजरंगी भाईजान देख रहे हैं, चांद नवाब की तरह नूर भी यूट्यूब और सोशल मीडिया पर अपना कैम्पेन चलाती है. यहां तक उसकी मेड मालती भी फेसबुक पर है.
चूंकि मीडिया की कहानी है, तो जाहिर है कुछ लॉजिक खटकते हैं. मसलन उसका बॉस इतना कन्फ्यूज्ड क्यों है, ना तो उसे करप्ट ही दिखाया और ना ही उसे बड़ी खबर पर एक्शन लेते दिखाया. नूर खुद को धोखा देने वाले जर्नलिस्ट को सबक क्यों नहीं सिखाती? नूर का मीडिया में एक भी दोस्त क्यों नहीं है, सारी प्रॉब्लम्स के लिए उसकी डीजे दोस्त और लंदन से रेस्तरां मालिक दोस्त हरी सीन में आ जाता है. जबकि यही प्रॉब्लम मीडिया वाले अपने मीडिया के दोस्तों से पहले डिसकस करते हैं. बीच मूवी में नूर का लंदन जाना, तमाम सींस केवल नूर की पर्सनेलिटी को स्टेबलिश करने में खर्च करना भी जमता नहीं.
क्योंकि मूवी में एक्शन, सिनेमेटोग्राफी, एक्शन, सस्पेंस, क्लाइमेक्स या कोई एक्सपेरीमेंट तो था नहीं, हां कुछ डायलॉग्स जरूर मूड बनाए रखते हैं, ऐसे में एक स्टोरी थी जो मूवी को आगे ले जाती, लेकिन वो कॉकटेल निकली. मूवी में हीरो के नाम पर कन्नल गिल और पूरब कोहली थे, जिनके करेक्टर रोल्स थे. अनुषा डांडेकर की बहन शिबानी एक ठीक से रोल में हैं, नूर की दोस्त बनी हैं. हालांकि मूवी नूर पाकिस्तान में बेस्ड एक मूवी ‘कराची यू आर किलिंग मी’ जो पाक नोवलिस्ट की कहानी है, पर बनी है.
ऐसे में मूवी को कॉपी करने में नूर भटक गई है, जब आप किडनी कांड का भांडाफोड़ कर रहे थे, तो मुंबई यू आर किलिंग मी, जैसे डॉक्यूमेंट्री कैम्पेन का कोई मतलब नहीं था. इससे मूवी फोकस होने के बजाय और भटकती है. फिल्म का चालीस फीसदी हिस्सा नूर को बार में या डेटिंग करते दिखाया जाता है और मुश्किल से एक मिनट उसके इतने बडे कैम्पेन को दिया जाता है, जो मैं भी अन्ना की तरह, #IAmNoor की तरह वाइरल होता है, ये भी लॉजिक से परे है. किसी जर्नलिस्ट को ये भी लॉजिक नहीं जमेगा कि किसी के भी घर का दरवाजा खटखटाओ और पूछो कि क्या आपकी किडनी चोरी हुई है? या आप इस डॉक्टर को पहचानते हैं?
मूवी में तो नूर आखिर में भटकना छोड़कर मनपसंद जॉब और एक स्यूटेबल बॉय पा लेती है, लेकिन आप अगर एंटरटेनमेंट की तलाश में इस वीकेंड पर मूवी जाने की सोच रहे हों तो नूर जहां लगी है, वहां ना भटकें, अगल हफ्ते बाहुबली-2 आने तक सब्र करें. हां… सोनाक्षी फैन हैं तो ये मूवी आपके लिए है, मूवी में whatsapp मैसेज स्क्रीन पर दिखाने का तरीका भी आपको पसंद आएगा. वैसे फिल्म को डायरेक्ट सन्हिल सिप्पी ने किया है, जो रमेश सिप्पी के भतीजे हैं, इससे पहले भी एक मूवी स्निप 17 साल पहले डायरेक्टर की थी, जो नोटिस में नही आई