नई दिल्ली: एक होता है डिफरेंट आइडिया लाना और दूसरा डिफरेंट करने की हद कर देना. लाली की शादी में लड्डू दीवाना में ऐसा ही हुआ है. मूवी के प्रोमो से ये फिल्म बड़ी फनी सी दिखती है, प्रोमो में विवान शाह, दर्शन जरीवाला, संजय मिश्रा और सौरभ शुक्ला और उनकी फनी हरकतों, डायलॉग्स को देखकर आपको लगेगा भी कि फनी मूवी है. लेकिन रोमांस, फन और इमोशंस सब कुछ समेटने के चक्कर में मूवी पटरी से फिसल गई है. हालांकि मुकाबले में कोई बड़ी मूवी नहीं है, ऐसे में छोटे बजट की ये मूवी शायद अपने पैसे निकाल ही ले.
कहानी है लड्डू यानी नसीरुद्दीन शाह के बेटे विवान शाह और लाली यानी कमल हासन की बेटी अक्षरा हसन की. लड्डू ऊंची उड़ान भरना चाहता है, शुरू से ही सारे फंडों को इस्तेमाल करने में यकीन रखता है. दिक्कत ये थी कि नेगेटिव शेड वाले हीरो का ये रोल शाहरुख खान जैसों के लिए फिट था, कॉमिक रोल्स के लिए मशहूर विवान शाह के लिए नहीं. अमीर समझकर ही लड्डू लाली को पटाने की कोशिश करता है झूठ बोलकर, बाद में दोनों मिलकर पैसे कमाने की कोशिश करते हैं.
इसी बीच अक्षरा प्रेग्नेंट हो जाती है. लड्डू अबॉर्शन की बात करता है, इससे वो नाराज होकर चली जाती है. लड्डू के माता-पिता फेवर करते हैं, तो लड्डू उनसे भी बदतमीजी करता है. इधर लड्डू की हेराफेरी पकड़कर उसका मालिक रवि किशन धक्के मारकर निकाल देता है. तब लड्डू निकलता है प्रेग्नेंट लाली को वापस मनाने के अभियान पर, जोकि एक रियासत के कुंवर वीर (गुरमीत चौधरी) से होने जा रही होती है.
अब जानिए डायरेक्टर ने कहानी को डिफरेंट बनाने के लिए कितने ऐसे ट्विस्ट डाले, जो आपने किसी मूवी में नहीं देखे होंगे- लड्डू के पापा-मम्मी प्रेग्नेंट लाली को ना केवल अपने घर ले जाते है बल्कि उसकी किसी और से शादी तय कर देते हैं, इधर लाली के पापा लड्डू को अपना बेटा मानकर लड्डू के घर ही लाली का रिश्ता लेकर जाते हैं, सबसे बड़ा अजीब सा एक्सपेरीमेंट ये था (जो भारतीय इतिहास में भी किसी रजवाडे में नहीं हुआ होगा), एक पंडित सलाह देता है कि युवराज को किसी प्रेग्नेंट लड़की से शादी करनी होगी, तभी फलेगी, सोचिए उसे युवराज के अलावा किसी और ने प्रेग्नेंट किया हो.
हीरोइन बताती है कि बॉस उसके कंधे पर और बैक पर बहाने से हाथ लगाता रहता है, तो हीरो उसे कहता है कुछ दिन और झेल लो. एक हीरो अपने बाप के हाथ उठाने पर कहता है कि मेरा भी उठ जाएगा, पूरी मूवी में कोई भी किसी और से 9 महीने की प्रेग्नेंट दुल्हन पर सवाल भी नहीं उठाता.
ये सब उस मूवी में होता है, जिसे फनी मूवी की तरह प्रोमो में पेश किया गया. ऐसे में फनी मूवी के तलबगार बीच मूवी में बोर होने लगते हैं. वैसे भी विवान शाह की कॉमिक इमेज को देखते हुए अभी ना तो लोग गुस्सा होकर चीखते हुए पसंद करेंगे और ना हीरोइन के साथ पेड़ के आगे पीछे गाना गाते. दिक्कत यही है रोमांस, फन और टू मच इमोशंस और एक्सपेरीमेंट्स के चलते अच्छी खासी मूवी पटरी से उतर गई.
विवान को अपनी इमेज से निकलना होगा, अक्षरा खूबसूरत हैं, लेकिन मुस्कराने तक में उन्हें मेहनत करनी पड़ती है. सौरभ शुक्ला, दर्शन जरीवाला और संजय मिश्रा ऐसी भूमिकाएं कई बार कर चुके हैं, इसलिए वो अच्छा ही करते हैं. गुरूमीत को अच्छा मौका मिला और वो जमे भी हैं.
फिल्म को फनी करने पर ही फोकस किया जाता तो ज्यादा बेहतर रहता, दो गाने जो बेहतर बन पड़े हैं, उनको हटाकर कुछ फनी सींस और बढ़ा दिए जाते तो बेहतर होता. बडौदा के गायकवाड़ का महल काफी अच्छे से मूवी में फिल्माया गया है. ऐसे में मूवी बीच में फंस गई है, ना रोमांटिक ही हो पाई और ना ही फनी, ना अवॉर्ड ही जीत पाएगी और ना बॉक्स ऑफिस पर ही कोई धमाल मचा पाएगी. हालांकि माना जाता है कि स्क्रीन प्ले अगर डायरेक्टर ने ही लिखा है, तो परदे पर अच्छे से उतरता है, लेकिन मनीष हरिशंकर वो नहीं कर पाए, पुलिस गिरी के बाद प्रोडयूसर टीपी अग्रवाल की इस मूवी से बड़ी आस थी.