नई दिल्ली: ना का मतलब सिर्फ ना होता है, उसे बोलने वाली आपकी परिचित हो, आपकी गर्लफ्रेंड हो, कोई सैक्स वर्कर हो या फिर आपकी वीबी ही क्यों ना हो. ये ‘पिंक’ मूवी में अमिताभ बच्चन का मशहूर डायलॉग था. अब अनारकली ऑफ आरा मूवी का आखिरी डायलॉग भी स्वरा भास्कर कुछ इसी तेवर के साथ बोलती हैं कि रंडी हो, रंडी से थोड़ा कम हो या फिर बीवी ही क्यों ना हो, ..पूछ कर ही हाथ डालना… अनारकली ऑफ आरा का सैटअप जरूर बिहार के छोटे शहर का है, लेकिन इसमें मेट्रो की महानगरीय लड़की के तेवर नजर आएंगे. ये अलग बात है कि पिंक जैसी कॉमर्शियल कामयाबी से ये मूवी महरूम रह सकती है.
ऐ दारोगा दुनलिया में जंग लागा हो जैसे गाने लोकल स्टेज पर गाने वाली अनारकली जैसी लड़की भी प्राइवेट और पब्लिक का अंतर समझती है, स्वाभिमान से लबरेज है. अनार का रोल स्वार भास्कर ने किया है और इस रोल के लिए उन्हें कुछ अवॉर्ड मिलने भी तय हैं. हालांकि कहानी में फिल्लौरी की तरह आपको नयापन नजर नहीं आएगा, जिस तरह शबाना को बेबी से निकालकर अलग से फिल्माया गया है, उसी तरह तमाम मूवी में जिन तवायफों को अपनी इज्जत बेचना पसंद नहीं था, वो सब किरदार स्वरा के किरदार में दिखेंगे.
कहानी है नाचने गाने वाली अनार कली की, जो बिंदास है, खुद पर फिदा होने वालों को खूब तबज्जो देती है, लेकिन उसे पब्लिक प्लेस पर कोई भी बदतमीजी पसंद नहीं और ऐसा ही हो जाता है. जब एक यूनीवर्सिटी का वीसी ( संजय मिश्रा) शराब पीकर भरी महफिल में उससे बदतमीजी कर देता है, और वो थप्पड़ मार देती है. उसके बाद उसके उलटे दिन शुरू और फिर कैसे वो उस वीसी की इज्जत भरी महफिल में उतारती है, यही है अनारकली ऑफ आरा की कहानी.
सबसे खास है बैकग्राउंड, लेंग्वेज और डायलॉग्स, तमाम देसी डायलॉग्स आपको अपील करेंगे, लेकिन फन की कमी आपको मूवी में दिखती है. वैसे भी फनी किरदार निभाने वाले संजय मिश्रा इस मूवी में विलेन के किरदार में हैं, उन्होंने न्याय भी किया है अपने रोल के साथ, लेकिन ऑडियंस के लिए वो छुटभैये ही हैं. ऐसे में पूरी मूवी स्वरा के कंधों पर आ जाती है, जिसे ढोना अकेले के लिए काफी मुश्किल था. मुश्किल ये भी थी कि जैसा आप सोचते जाते हैं, मूवी उसी तरह से आगे बढ़ती जाती है, क्लाइमेक्स और सस्पेंस ऑडियंस को जोड़े रखने के काम आते हैं, जो दिखे नहीं. मूवी में आरा के महान क्रांतिकारी कुंवर सिंह की जगह यूनीवर्सिटी का नाम कुबेर सिंह यूनीवर्सिटी रखा गया है, लेकिन यूनीवर्सिटी के प्रोग्राम में एनाउंसर कुंवर सिंह ही बोलता है.
लेकिन मूवी में एक मैसेज है, एक कल्चर है, एक सोसायटी और खास तबके से जुड़े लोगों की परेशानियों की सच्चाई है. नए डायरेक्टर अविनाश दास से डायलॉग्स, सींस और रीयल लगने वाले सैट्स पर मेहनत की है, जो दिखी भी है, भोजपुरी म्यूजिक पर भी उनकी पकड़ दिखी है. उम्मीद है कि वो आगे की मूवीज में और बेहतर करेंगे. संदीप कपूर फिल्म के प्रोडयूसर है, उम्मीद है कि उनकी मूवी को कुछ अवॉर्ड मिलेंगे ही.