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नेवी की तारीफ में बनी फिल्म ‘द गाजी अटैक’ का ये एक डायलॉग करवा सकता है नेवी की फजीहत !

नई दिल्ली: नीयत बिलकुल साफ है, मूवी शुरू होने से पहले क्लेरीफिकेशन भी दिया गया है कि ये मूवी फिक्शनल है, यानी कहीं से भी विवादों में लाने की मंशा नहीं. लेकिन जिस किसी भी व्यक्ति या नेवी एक्सपर्ट ने डायलॉग राइटिंग में नेवी, सबमेरीन, वॉटर माइंस आदि के बारे में इतनी गहरी जानकारी दी […]

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  • February 18, 2017 10:06 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली: नीयत बिलकुल साफ है, मूवी शुरू होने से पहले क्लेरीफिकेशन भी दिया गया है कि ये मूवी फिक्शनल है, यानी कहीं से भी विवादों में लाने की मंशा नहीं. लेकिन जिस किसी भी व्यक्ति या नेवी एक्सपर्ट ने डायलॉग राइटिंग में नेवी, सबमेरीन, वॉटर माइंस आदि के बारे में इतनी गहरी जानकारी दी है, उस पर एक ब्लंडर हो गया है. उसका ये ब्लंडर या भारी चूक नेवी की फजीहत भी करवा सकती है. ‘द गाजी अटैक’ मूवी में ओमपुरी के मुंह से एक ऐसा डायलॉग बुलवाया गया है कि जिसे फिक्शन या मूवी कहकर खारिज नहीं किया जा सकता. कल को पाकिस्तान इस मूवी को अपने उस बहुचर्चित दावे को साबित करने के लिए सुबूत के तौर पर दे सकता है या सोशल मीडिया पर इसका लिंक दे सकता है, जिस दावे को आज तक भारत ने माना नहीं है.
 
 
आखिर क्या था वो दावा जिसे पाकिस्तान पिछले 52 सालों से करता आ रहा है और भारत उसे मानने को तैयार नहीं? और यही इस मूवी का ब्लंडर है कि जिस नेवी कमांडर का रोल ओमपुरी ने इस मूवी में किया है, वो पाकिस्तान के इस दावे को मूवी में ही सही लेकिन मान लेता है. इस दावे के बारे में विस्तार से समझने के लिए आपको ‘ऑपरेशन द्वारका’ के बारे में जानना होगा. लेकिन उसके पहले जानिए द गाजी अटैक मूवी में नेवी कमांडर के रोल में ओम पुरी ने क्या डायलॉग बोला था, जिस पर कि ऐतराज हो सकता है, ओम पुरी अपने जूनियर ऑफिसर को कहते हैं, ‘’हम दूसरा द्वारका अफोर्ड नहीं कर सकते’’. ये पाकिस्तान का वो ‘ऑपरेशन द्वारका’ था, जिसे पाक 1965 के युद्ध में अपनी विजय के तौर पर मनाता है, जबकि भारत इसे बस सामान्य घटना करार देता आया है.
 
आखिर क्या था पाकिस्तान का ऑपरेशन द्वारका? 8 सितम्बर का दिन पाकिस्तान में विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत के साथ हुई एक ऐसी जंग में विजय के रूप में जो कभी दोनों तरफ से लड़ी ही नहीं गई, अकेले पाकिस्तान लड़ता रहा. इस जंग का नाम था ऑपरेशन द्वारका. जी हां पाकिस्तान ने श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका पर अचानक हमला बोल दिया था. ये 1965 की बात है, जब भारत पाकिस्तान में जंग चल रही थी.
 
अप्रैल में शुरू हुई जंग सितम्बर तक आ गई थी और कश्मीर और पंजाब में पाकिस्तान बुरी तरह मात खा रहा था. ऐसे मॆं पाकिस्तान की नौ सेना युद्ध में हिस्सा नहीं ले पा रही थी तो पाकिस्तान के सैन्य जनरलों ने सोचा कि नेवी को काम में लगाकर भारत का ध्यान उत्तरी मोर्चे से हटाया जा सकता है. ऐसे में प्लानिंग हुई ‘ऑपरेशन द्वारका’ की,  द्वारका नगरी वो छोटा सा शहर है जो गुजरात के समुद्र तट पर है और कभी भगवान श्रीकृष्ण यादवों की राजनीति से परेशान होकर मथुरा छोड़कर वहां चले आए थे. उन्होंने वहां राज किया और बाद में सोमनाथ के पास एक बहेलिए का तीर लगने से वो स्वर्ग सिधार गए थे. दीव से लेकर द्रारका तक के समुद्र तटीय रास्ते पर सोमनाथ और पोरबंदर भी आते हैं और धीरू भाई अम्बानी का गांव भी.
 
 
द्वारका से महज 200 किलोमीटर दूर है कराची. ऐसे में पाक हुक्मरानों ने ऑपरेशन द्वारका को हरी झंडी दे दी, टारगेट था द्वारका में लगा राडार और लाइट हाउस. इस ऑपरेशन के चलते इंडियन एयरफोर्स को भी कश्मीर और पंजाब से दूर हटाये जाने की उनकी प्लानिंग थी. सात वॉरशिप्स का बेड़ा पाकिस्तान ने इस अटैक के लिए तैयार किया, पीएनएस बाबर, पीनएस खैबर, पीएनएस बद्र, पीएनएस जहांगीर, पीएनएस आलमगीर, पीएनएस शाहजहां और पीएनएस टीपू सुल्तान. जबकि द्वारका में भारत का एक ही वॉरशिप तैनात था आईएनएस तलवार, जो उस वक्त पास ही के एक पोर्ट ओखा में रिपेयरिंग का काम करवा रहा था, जो अगले दिन ही हालात का जायजा लेने आ पाया था.
 
सात सितम्बर को रात 11 बजकर 55 मिनट पर पाक के वॉरशिप्स से मिसाइलें और बम दागे जाने लगे. बीस मिनट तक यानी रात को 12 बजकर 15मिनट तक ये जारी रहे, ज्यादातर मिसाइलें या बम मंदिर और रेलवे स्टेशन के बीच की तीन किलोमीटर की समुद्री रेत पर गिरे, बहुत से फटे ही नहीं. ऐसे 40 बमों पर लिखा पाया गया था इंडियन ऑर्डीनेंस, दरअसल वो 1940 में ब्रिटिश राज की हथियार फैक्ट्री में बने थे, नुकसान केवल रेलवे गेस्ट हाउस, एक सीमेंट फैक्ट्री और कुछ इमारतों को पहुंचा. ना राडार का वो लोग कुछ बिगाड़ पाए और ना लाइट हाउस का, लेकिन पाकिस्तानी रेडियो ने प्रसारण भी कर दिया कि द्वारका शहर को बुरी तरह बर्बाद कर दिया गया है. पाकिस्तान में इस ऑपरेशन पर एक फिल्म भी बनाई गई, टाइटल था—ऑपरेशन द्वारका 1965. जबकि भारत की तरफ से कोई विरोध हुआ ही नहीं था, क्योंकि उस वक्त वहां कोई तैनाती ही नहीं थी.
  
लेकिन ये तय है कि इस घटना के बाद भारत में नेवी का सूरत-ए-हाल बदल गया. नेवी का बजट चार गुना कर दिया गया. कच्छ, पोरबंदर और द्वारका में मिसाइल बोट्स की तैनाती कर दी गई, इसके लिए सोवियत संघ की मदद ली ग.. बड़े स्तर पर नेवी अधिकारियों के खिलाफ एक्शन लिया गया, नेवी के मॉर्डनाइजेशन के लिए कमेटी बना दी गई. लेकिन आज भी लोग इस बात पर हैरत करते हैं कि जब एक गोली भारत की तरफ से नहीं चली तो कैसे पाकिस्तान के सात सात वॉरशिप्स ना श्रीकृष्ण के मंदिर को कोई नुकसान पहुंचा पाए और ना राडार या लाइट हाउस को, ये वाकई में चमत्कार ही था. केवस बीस मिनट की गोली बारी के बाद पाक के वॉर शिप्स वापस लौटे और अपने आकाओं को बता दिया कि द्वारका शहर बरबाद कर दिया गया है. हालांकि भारत ने इसे खारिज किया कि वहां कोई जंग हुई है या बड़ा नुकसान हुआ है, चूंकि किसी के घायल होने या मौत की खबर भी नहीं मिली तो इसे साबित कर पाना भी मुश्किल था.
 
लेकिन ये लापरवाही का मामला जरूर था कि कोई पोर्ट कराची पोर्ट से महज 200 किलोमीटर की दूरी पर है, फिर भी उसकी सिक्योरिटी के पुख्ता इंतजामात क्यों नहीं? लेकिन पाकिस्तान की विजय को भारत नहीं स्वीकारता, ऐसे में अगर इस मूवी में कोई नेवी का टॉप ऑफिसर अगर ये कहता है कि हम दूसके द्वारका को अफोर्ड नहीं कर सकते तो भले ही मूवी हो लेकिन पाकिस्तान इसका इस्तेमाल अपनी नस्लों को दिखाने के लिए, अपने दावों को सही साबित करने के लिए और इंटरनेशनल मीडिया में भारत पर अपनी इकलौती जीत दिखाने के लिए इस्तेमाल कर सकता है. ऐसे में इंडियन नेवी की ही नहीं देश की भी फजीहत होगी, सीधी सी बात है कि वॉर पर बनी फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड में कोई ना कोई सैन्य अधिकारी जरूर होना चाहिए. फिलहाल तो सवाल ये है कि द गाजी अटैक का मामला सरकार के संज्ञान में कब तक आएगा.
 

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