Raees Movie Review: क्लाइमेक्स ‘रईस’ को रोक सकता है ‘दंगल’ बनने से

मूवी देखकर कोई शायद शाहरुख को ये ना सलाह दे बैठे कि आपको नवाजुद्दीन का किरदार करना चाहिए था और क्लाइमेक्स को बदलना चाहिए था. यही दो वजहें जो रईस को दंगल जैसी कामयाबी या आस पास भी फटकने में रोड़ा बनेंगी.

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Raees Movie Review: क्लाइमेक्स ‘रईस’ को रोक सकता है ‘दंगल’ बनने से

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  • January 25, 2017 7:14 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
मुंबई. मूवी देखकर कोई शायद शाहरुख को ये ना सलाह दे बैठे कि आपको नवाजुद्दीन का किरदार करना चाहिए था और क्लाइमेक्स को बदलना चाहिए था. यही दो वजहें जो रईस को दंगल जैसी कामयाबी या आस पास भी फटकने में रोड़ा बनेंगी.
 
 
अन्डरवर्ल्ड डॉन-माफियाओं को ग्लेमराइज करने वाली मूवी जितनी भी बनी होंगी, दीवार से लेकर सुल्तान तक, रईस भी ऑडियंस पर वैसी ही पकड़ बनाती है. फिल्म के पहले हाफ में कॉमर्शियल फिल्मों से अभी तक दूर रहे डायरेक्टर राहुल ढोलकिया वाकई में पास हुए हैं. म्यूजिक, थ्रिल, दमदार डायलॉग्स, एक एक सीन को जिस कायदे से पिरोया है, लगा था मूवी दूसरी डॉन साबित होगी. राम सम्पत का म्यूजिक मस्त है. लेकिन दिक्कत हो गई उनके एजेंडा के साथ, फिल्म को बार बार गैंगस्टर अब्दुल लातिफ की जिंदगी की घटनाओं के साथ जोड़ा गया, और रईस के किरदार को महान और पाक साफ दिखाने के लिए तथ्यों से खेला गया और फिल्म कमजोर पड़ती गई और क्लाइमेक्स तो बदलने ही लायक है.
 
कैसे एक मुस्लिम गली का डेयरिंग लड़का प्रतिबंधित राज्य गुजरात में बनिए के दिमाग के साथ अवैध शराब का धंधा जमाता है, फिल्म के सैट्स, शानदार डायलॉग डिलीवरी, मस्त म्यूजिक, दंगल जैसे करीने से रचे गए विटी सींस के जरिए वो कहानी आगे बढ़ती है और नवाजुद्दीन के हिस्से में आए शानदार डायलॉग्स और डिलीवरी के चलते वो शाहरुख पर भारी पड़ते हैं. गुजराती कल्चर और मुसलमानी मोहल्ले के रहन सहन और स्टाइल को बखूबी फिल्माया गया है, गुजरात दंगों पर ‘परजानियां’ जैसी फिल्म बनाने वाले राहुल ढोलकिया खुद को रोक नहीं पाए और ट्रेन में आग और मुंबई बम विस्फोट को दिखा ही दिया, चाहे शहरों के नाम बदलकर. यही गलती पंकज कपूर की सोनम-शाहिद की मूवी ‘मौसम’ में हुई थी, जबरन दंगों के सीन फिल्म को ले डूबे थे.
 
 
एक कॉमर्शियल मूवी या फिर एजेंडा, दोनों के बीच फिल्म फंस गई. फिल्म में जबरदस्त डायलॉग्स थे—कोई धंधा छोटा नहीं होता… अपनी दुनियां में तेरी बुकिंग करूंगा.. शेरों का तो दौर होता है… और भी बहुत. कई जगह शाहरुख के फैंस सीटियां बजा सकते हैं. लेकिन फिल्म भटकी वहां जहां राहुल अहमदाबाद के मशहूर गैंगस्टर अब्दुल लातिफ को महान और बेकुसूर बताने पर तुल गए, जिसके लिए तमाम फैक्ट्स से छेड़छाड़ की गई. सबसे पहले राधिका जिमखाना में 9 लोगों का कत्ल, जिसमें शऱाब कारोबारी हंसराज त्रिवेदी भी मारा गया, वाले सीन में सनी लियोन का गाना और शाहरुख की मजबूरी बताकर ग्लेमराइज किया गया. मुंबई बम विस्फोट के लिए जो विस्फोटक दाऊद ने दुबई के मुस्तफा मजनू से लातिफ के जरिए मंगवाया, उसमें भी लातिफ को अनजान दिखाया, यहां तक कि मूसा, जो असल जिंदगी में दाऊद था, उसको भी इस मूवी में लातिफ या रईस मार देता है.
 
इतना ही नहीं फिल्म में सीएम और विपक्ष का नेता जैसे दो किरदार दिखाए गए हैं, जिन्हें विलेन की तरह पेश किया गया है. सीएम कांग्रेस का है या केशूभाई, ये तो राहुल बेहतर जानते होंगे, लेकिन जिस तरह से बाघेला के खिलाफ लातिफ के बेटे दो बार चुनाव लड़े हैं, उससे लगता है एनकाउंटर बाघेला की शह पर हुआ था. वो भी शायद इसलिए क्योंकि कांग्रेस के एक पूर्व राज्यसभा सदस्य की हत्या लातिफ ने करवा दी थी. लातिफ के गैंग पर 64 कत्ल के मुकदमे थे और ये वो बंदा था जो मुंबई ब्लास्ट के बाद कराची में अगस्त 1993 से 1994 तक रहा तो रोज दाऊद से मिलता था, ये उसने अपने पुलिस को अपने कनफैशन में माना था. फिल्म में ये फैक्ट छुपाया गया. लातिफ को महान दिखाने के लिए एक सीन में बैकग्राउंड में काला पत्थर का अमिताभ वाला सीन भी दिखाया गया. इतना ही नहीं एनकाउंटर के वक्त उस पर कई दंगों समेत 243 केस थे, जिसमें 64 कत्ल के थे. लेकिन एजेंडा उसे सेकुलर और राजनीति का शिकार दिखाना था, इसलिए वो हिंदू मोहल्लों में भी लंगर चलाता है.
 
फिल्म का सबसे गलत फैक्ट है कि लातिफ ने सरेंडर किया, हकीकत ये थी कि लातिफ को जामा मस्जिद दिल्ली इलाके से फोन टेपिंग के बाद पकड़ा गया था, और उसका एनकाउंटर भी गिरफ्तारी के कई साल बाद पेशी से जेल जाते वक्त हुआ. लेकिन उस गैंगस्टर को महान बनाने के लिए उसका सरेंडर दिखाकर उस जिस आसानी से मरता दिखाया, उससे मूवी को दो बडे नुकसान हुए, एक क्लाइमेक्स कमजोर पड़ गया, दूसरे पूरी फिल्म में शाहरुख पर भारी पड़ने वाला नवाजुद्दीन का किरदार छोटा हो गया. जिस क्लाइमेक्स के लिए आमिर ने असली कोच से पंगा ले लिया, उसको राहुल ने एजेंडे के लिए एक तरह से बर्बाद कर दिया.
 
एक्टिंग में शाहरुख खान नेचुरल हैं, जैसे होते हैं, क्लाइमेक्स निकाल दें तो नवाजुद्दीन का रोल शाहरुख भी शायद इतना बेहतर नहीं कर पाते, माहिरा के हिस्से में ज्यादा कुछ है नहीं, इसका फायदा शायद ही बॉलीवुड में उनको मिले, उम्र भी हो ही गई है, अतुल कुलकर्णा हमेशा की तरह दमदार हैं, उनके आखिरी सीन में डायरेक्टर ने उन्हें कमजोर किया. बाकी फिल्म में मस्ती है, मजा है, रोमांस है, एक्शन है, डॉयलॉग्स हैं और गुजरात भी. बस एजेंडा नहीं होता तो फिल्म जितनी कामयाब होगी, उससे कई गुना ज्यादा होती. इस फिल्म को देखने से पहले अगर आप ये आर्टीकल भी पढ़े लेंगे तो और मजा आएगा.

 

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