मुंबई: लिव इन रिलेशन पर आधारित फिल्म
ओके जानू आखिर कोई क्यों देखे ? कोई भी विलेन नहीं, ना घर वाला और ना ही बाहर वाला, मूवी में क्लाइमेक्स भी नहीं, सब कुछ प्रिडेक्टेबल, ना कोई ऐसा डायलॉग जो बार बार आप दोहराएं सिवाए ‘ओके जानू’ के और अभी तक कोई ऐसा गाना नहीं जो लोगों की जुबां पर चढ़ गया हो और डांस नंबर भी हम्मा हम्मा का रीमेक.
पूरी मूवी में किसी ने भी किसी पर एक थप्पड़ तक नहीं उठाया, पूरी मूवी में एक बार भी ऐसा कोई सस्पेंस वाला सीन नहीं जिसे देखकर आपकी धड़कनें रुक जाएं कि अब क्या होगा, अब क्या होगा? चेज सीन भी केवल वीडियो गेम में. फिल्म के छह-सात किरदारों में है एक अल्जाइमर पीड़ित महिला, एक वीबी की सेवा में लगा रिटायर्ड जज, एक तलाकशुदा बीवी और मां-बाप के प्यार से दूर लड़की.
ना कोई धोखा, ना कोई क्राइम, ना कोई विलेन ऐसे में कोई इस मूवी को देखने जाए भी तो क्यों? फिर भी इस मूवी में ऐसा कुछ है, जो युवाओं के लिए नया है, शायद सभी के लिए है. इस मूवी को प्रोडयूस करने के लिए साउथ के बड़े डायरेक्टर मणि रत्नम और बॉलीवुड के बड़े डायरेक्टर करण जौहर ने हाथ मिलाया है.
डायरेक्शन की जिम्मेदारी दी गई ‘बंटी और बबली’ जैसी रोमांटिक थ्रिलर डायरेक्ट करने वाले शाद अली को, म्यूजिक दिया एआर रहमान ने और डायलॉग लिखे गुलजार ने और मूवी में दो जोडियां थीं एक
‘आशिकी टू’ फेम
श्रद्धा कपूर और
आदित्य कपूर की तो दूसरी लीला सैम्सन और नसीरुद्दीन शाह की है.
इतने सारे दिग्गज मिले फिर भी फिल्म उतनी हंगामाखेज नहीं है कि आप उसे 100 करोड़ के क्लब में शामिल करने की सोचें भीं, लेकिन ये वो मूवी है जो धीरे से आपके दिल में घुस जाती है. हालांकि ‘हम तुम’ की तरह शाद अली ने मूवी के पहले सीन से लेकर एंड क्रेडिट दोनों को वीडियो गेमिंग के जरिए एनीमेटेड दिखाया है, आदित्य वीडियो गेमर है और श्रद्धा आर्किटेक्ट, दरअसल युवाओं के लिए ये मूवी कम मैसेज ज्यादा है.
एक अल्जाइमर पीड़ित बीवी से बिना सुहानुभूति दिखाए उसकी हर छोटी बड़ी चीज का ख्याल रखने वाला पति, शादी में ना यकीन करने वाले और लिव इन में रहने वाले जोड़े को सिखाता है कि प्यार क्या होता है और इसको बड़े करीने से शाद अली ने शायरी की तरह परोसा है, एआर रहमान के मेलोडियस म्यूजिक की चाशनी में सारे गाने को लपटे कर पेश किया है.
ये अलग बात है कि मस्ती की आशा से केवल टाइटिल देखकर मूवी देखने गए युवाओं को लगेगा कि कुछ मिसिंग है यानी सस्पेंस, फाइट, विलेन, बोल्डनेस, लाउड म्यूजिक आदि. हर गंभीर सिचुएशन को डायरेक्टर ने हलके फुलके डायलॉग से हलका ही बना दिया है.
‘नेवर मिस द ट्रेन ईवन यू डोंट हैव दी टिकट’ और ‘ये तो ऐसे ओल्ड फैशन्ड हैं कि इंडीकेटर देने के वाबजूद शीशा खोलकर मुडने के लिए हाथ देते हैं’, या फिर ‘वो दिन में एक बार पपलू जी बोल देती है तो बस पूरी जिंदगी की एनर्जी वापस आ जाती है” जैसे डायलॉग्स से लगेगा कि कहीं गुलजार भी मौजूद हैं.
कैसे बुजुर्ग उम्र की परेशानियां और लिव इन में रहने वाले युवाओं की सोच एक जगह आकर मिल सकती है, ये है फिल्म का मैसेज, बुजुर्गों को थोड़ा नसीर और किट्टू से सीखना होगा कि प्यार को लेकर नई जनरेशन को कैसे डील करें तो युवाओं को वो सीखना होगा जो आदित्य और श्रद्धा ने नसीर और लीला से सीखा है.
हालांकि मणि रत्नम की तमिल फिल्म ‘ओके कनमनि’ की रीमेक होने के बावजूद शाद अली इसे और बेहतर बना सकते थे. चर्च के सीन में आंटी लगातार कैमरे में देख रही थी, कानपुर में मोबाइल कैसे ऑफ हो जाता है, प्रेग्नेंसी का क्लीनिक में ही क्यों चैक होना, गेम के लिए आदित्य का घटिया आइंडिया बॉस को इतना पसंद आना जैसे मामूली सवाल युवाओं के दिमाग में आ सकते हैं, प्रहलाद कक्कड़ और किट्टू गिडवानी बनावटी लगे, उनके डायलॉग और बेहतर हो सकते थे.
नसीर और श्रद्धा रोल में पूरे घुसे दिखे. समय हो तो ये जानने के लिए ये फिल्म जरूर देखें कि आपकी जिंदगी में वाकई में असली विलेन होता कौन है आपकी सोच जो थोड़ी सी बदल जाए तो जिंदगी ही बदल जाए.