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‘मोहेंजो दारो’ से खफा पाकिस्तान, गोवारिकर से जताएगा विरोध

मुंबई. महीनों से ह्रतिक रोशन की फिल्म ‘मोहन जोदाड़ो’ की चर्चा थी. इस विषय पर आज तक कोई फिल्म नहीं बनी थी और ऐतिहासिक बैकग्राउंड पर आशुतोष गोवारिकर की पुरानी दो फिल्में ‘लगान’ व ‘जोधा और अकबर’ ने जिस तरह से बॉक्स ऑफिस पर धमाल किया था, उससे ऑडियंस को इस फिल्म से काफी उम्मीदें थीं. फिल्म की चर्चा पाकिस्तान में भी थी, लेकिन ना रिलीज होने से पहले और ना रिलीज होने के 20 दिन बाद तक पाकिस्तान की तरफ से इस फिल्म को लेकर कोई बयान नहीं आया था. ऐसे में अचानक से पाकिस्तान के एक मंत्री ने मोहन जोदडो को लेकर अपनी आपत्ति जताकर चौंका दिया है.
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दरअसल मोहन जोदाडों यानी मृतकों का टीला सिंधु घाटी सभ्यता की उन साइट्स में से थी, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान के हिस्से में आई और चूंकि सिंधु घाटी सभ्यता इस्लाम के उदय से भी हजारों साल पहले की है सो पाकिस्तान के इतिहासकार मोहन जोदाडो को वो जगह नहीं दे पाए, जो भारत ने अपने इतिहास में दी. लेकिन यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल होने और दुनियां भर के पुरातत्व प्रेमियों की दिलचस्पी के चलते पाकिस्तान ने उसको सहेज कर भी रखा है.
ऐसे में जब पाकिस्तान की धरती से जुड़ी किसी चीज पर भारत में फिल्म बने तो उनकी नजर उस पर रहना लाजिमी था. फिल्म बनी भी, काफी पैसा भी खर्च किया गया लेकिन फिल्म उम्मीद पर खरी नहीं उतरी और सौ करोड़ के क्लब में शामिल नहीं हो पाई. अब तक पाकिस्तान ने भी फिल्म पर कोई कमेंट नहीं किया था, लेकिन अचानक से चार सितम्बर को पाकिस्तान के कल्चर एंड टूरिज्म मिनिस्टर सरदार अली शाह ने सिंध क्षेत्र का दौरा किया और पत्रकारों से बातें करते बयान दिया कि, आशुतोष गोवारिकर ने अपनी फिल्म में सिंध की पांच हजार साल पुरानी सभ्यता का मजाक उड़ाया है और ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया है.
पाक अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, वो इतने पर नहीं रुके हड़प्पा और मोहन जोदाडो की आपसी जंग और कर वसूली को लेकर जिस तरह से गोवारीकर ने मनगढ़त सीन दिखाए हैं, उसका इतिहास से कोई लेना देना नहीं है. वो अपनी आपत्ति फिल्मकार आशुतोष गोवारिकर को दर्ज करवाएंगे. हालांकि अभी तक आशुतोष या फिल्म से जुड़े किसी भी शख्स की कोई प्रतिक्रिया इस पर सामने नहीं आई है लेकिन इतना तो तय था कि जब उस सभ्यता का कोई लिखित इतिहास नहीं है, ना अभी तक उसकी लिपि पढ़ी जा सकी है तो फिल्मकार को तो सब कुछ कल्पना से ही गढना था.
वैसे भी शानदार टाउन प्लानिंग, स्नानागार, एक श्रंगी पशु, नील की खेती, ऊंचा नगर, निचला नगर, मातृदेवी की पूजा, विदेशी व्यापार, बाढ़ का खतरा आदि तथ्यों की समावेश करना आसान तो नहीं था, ऐसे में भले ही फिल्म कामयाब नहीं हुई लेकिन गोवारीकर ने इस दिशा में पहला कदम तो बढाया ही था. ऐसे में बच्चों को जो मोहनजोदाडो याद रहेगा, वो किताबों से बहुत कुछ अलग नहीं होगा, सिर्फ कहानी को छोड़कर. और पाकिस्तान मंत्री का बयान भी अभी तक पॉलटिकल ही माना जा रहा है.
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