नई दिल्ली। 7 चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव में पहले फेज की वोटिंग पूरी हो गई है। पहले चरण में 62.37 फीसदी मतदान हुआ है जो कि 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में कम है। 2019 लोकसभा चुनाव में पहले चरण में 69.43% वोटिंग हुई थी। जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है […]
नई दिल्ली। 7 चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव में पहले फेज की वोटिंग पूरी हो गई है। पहले चरण में 62.37 फीसदी मतदान हुआ है जो कि 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में कम है। 2019 लोकसभा चुनाव में पहले चरण में 69.43% वोटिंग हुई थी। जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है वहां पर भी मत प्रतिशत में कमी आई। त्रिपुरा को छोड़कर किसी राज्य में वोटिंग प्रतिशत 80 तक नहीं पहुंचा। NDA सरकार होने के बाद भी बिहार में सबसे कम 47.50 प्रतिशत वोटिंग हुई है। पहले चरण की वोटिंग प्रतिशत देखने के बाद सवाल उठने लगा है कि मतदाता आखिर पोलिंग बूथ तक क्यों नहीं पहुंच पाएं।
पहले चरण का मतदान प्रतिशत बीजेपी की टेंशन बढ़ा सकता है। पीएम मोदी के आने के बाद से वोटिंग प्रतिशत बढ़ा था, जो इस बार ब्रेक लगता हुआ दिख रहा है। बीजेपी ने इस बार 370 का टारगेट रखा है। साथ ही NDA गुट ने 400 पार का नारा दिया है। पहले चरण के वोटिंग ट्रेंड को देखते हुए इस बात की चर्चा होने लगी है कि आगे भी यहीं हाल रहा तो NDA 400 पार का आंकड़ा कैसे पार करेगी?
राजनीतिक जानकार वोटिंग प्रतिशत गिरने पर सवाल उठा रहे हैं कि कहीं भाजपा नेताओं की तरह उसके वोटर्स भी कही इस आत्मविश्वास में तो नहीं है कि हम आसानी से जीत जायेंगे। इस वजह से बीजेपी के वोटर्स मतदान केंद्र तक नहीं गए। हालांकि इसे लेकर अब तक कोई डाटा सामने नहीं आया है। बीजेपी के मजबूत राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और मध्य प्रदेश में भी वोटिंग प्रतिशत कम हुई है। बिहार में सबसे कम मत डाले गए हैं।
2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी मिशन साउथ को लेकर काफी एक्टिव दिखी है। पीएम मोदी दक्षिण की राज्यों में लगातार सभा कर रहे हैं। 370 के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए दक्षिण की राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करना भाजपा के लिए जरूरी है लेकिन क्या इस वजह से यूपी, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान जैसे राज्यों में कोई कमी रह गई? बिहार में पिछले चुनाव में 53 प्रतिशत वोट पड़े थे जो इस बार महज 47 है। वहीं यूपी में जिन सीटों पर चुनाव हुए हैं, पिछली बार 67 फीसदी मत पड़े थे लेकिन इस बार 57 प्रतिशत वोट डाले गए हैं।
भले ही कुछ राजनीतिक जानकार कम वोटिंग को भाजपा के लिए खतरा बता रहे हैं लेकिन आंकड़ों को देखे तो यह मोदी सरकार के साथ है। कई राज्यों के चुनाव में देखा गया है कि मत प्रतिशत बढ़ने से सत्ताधारी दल को नुकसान पहुंचा है। जनता सत्ता बदलने के लिए बंपर वोटिंग करती है। लेकिन 12 में से 5 चुनावों में मतदान प्रतिशत में गिरावट दर्ज हुई तो उसमें से 4 बार सत्ता बदली है। सिर्फ एक बार सत्ताधारी दल की वापसी हुई है। 2004 लोकसभा चुनाव में भी कम वोटिंग प्रतिशत का फायदा विपक्षी दलों को मिला था।
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