चंडीगढ़/दिल्ली. किसान आंदोलन एक बर फिर जोर पकड़ रहा है लेकिन इस बार मोदी सरकार से ज्यादा पंजाब की भगवंत मान सरकार निशाने पर है. जिस तरीके से सीएम मान किसानों की बैठक छोड़कर तल्खी में निकले उसके बाद किसानों ने पंजाब सरकार से हिसाब बराबर करने का फैसला किया है. किसानों ने साफ कर दिया है कि केंद्र सरकार से जो उनकी मांगें है उसे वो कभी नहीं छोड़ेंगे लेकिन उससे पहले पंजाब सरकार उनकी मांगे पूरी करे.
किसानों की चंडीगढ़ में नो एंट्री
बेशक आप सरकार दिल्ली आंदोलन के दौरान किसानों का स्वागत कर रही थी लेकिन अब मान नहीं चाहते कि किसान चंडीगढ़ में प्रवेश करें जबकि किसान कह रहे हैं कि जिन मांगों को मान सरकार को पूरा करना है उसे तत्काल पूरा करे. भगवंत मान कह रहे हैं कि किसानों ने पंजाब को धरने वाला राज्य बना दिया है.
नाराज मान ने बैठक छोड़ी
किसानों के साथ भगवंत मान सरकार का टकराव 3 मार्च को शुरू हुआ . उस दिन सीएम भगवंत मान और 40 किसान नेताओं की बैठक हुई. किसानों केंद्र से एमएसपी गारंटी कानून की मांग कर रहे हैं जबकि पंजाब सरकार से कर्ज माफी, गन लाइसेंस रिन्यू करने, एग्रीकल्चर पॉलिसी बदलने तथा प्रीपेड इलेक्ट्रिक मीटर समेत 18 मांगें कर रहे हैं. बताते हैं कि बैठक में किसान नेताओं और सीएम मान में बहस हो गई. बैठक में माहौल इतना तल्ख हो गया कि मान बैठक छोड़कर बीच में ही निकल गये. मान ने यह कहते हुए बैठक छोड़ी कि पहले जो मांगे माने गई हैं, वह भी रद्द समझें.
मान ने किसानों का चंडीगढ़ कूच रोका
बातचीत फेल होने के बाद किसानों ने 5 मार्च यानी बुधवार को चंडीगढ़ कूच की घोषणा की और कहा कि वे सेक्टर 34 में प्रदर्शन करेंगे लेकिन मान सरकार ने उन्हें चंडीगढ़ में एंट्री की इजाजत नहीं दी. किसान नेता गिरफ्तार कर लिये गये. इसके बाद किसानों और पंजाब की आप सरकार में टकराव शुरू हो गया. किसानों का कहना है कि भगवंत मान सरकार भी वैसा ही व्यवहार कर रही है, जैसा केंद्र सरकार करती आ रही है. सत्ता का चरित्र एक ही होता है और दोनों सरकारें किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं चाहती है.
इस वजह से आप ने बदला स्टैंड
इस टकराव के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि दिल्ली में धरने की वकालत करने वाली आप सरकार ने चंडीगढ़ में किसानों को क्यों नहीं घुसने दिया. दरअसल मान सरकार का मानना है कि पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर पिछले एक साल से धरने पर बैठे किसानों के रवैये में लचीलापन नहीं है. वे चाहते हैं कि जो वो कहें वो सरकार मान ले. समझौते में कभी भी एक पक्ष की बात नहीं मानी जाती है. दूसरी वजह यह है कि सरकार को लगने लगा है कि किसानों में न तो एकजुटता है और न ही उनके आंदोलन में अब वो दम है जो 2020-21 में दिखा था. सरकार के लिए किसानों की सभी मांगों को पूरा करना संभव नहीं है.
ग्रामीण नाराज, शहर को खोना नहीं चाहते
सीएम भगवंत मान का मानना है कि किसानों ने समाज के अन्य वर्गों की सहानुभूति खो दी है. मान को पता है कि ग्रामीण इलाकों में उनकी सरकार के खिलाफ काफी असंतोष है लिहाजा वह शहरी तबके को नहीं खोना चाहते. यही वजह है कि वह कह रहे हैं कि किसानों के विरोध प्रदर्शन से पंजाब के बाकी हिस्सों में असुविधा हो रही है. खास बात यह है कि आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल इस समय होशियारपुर में विपश्यना कर रहे हैं और किसान आप सरकार के खिलाफ हल्ला बोल रहे हैं. इस तरह भगवंत मान बुरी तरह फंस गये हैं.
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