महाराष्ट्र सरकार के गठन में समस्या सिर्फ एकनाथ शिंदे या उनकी पार्टी की तरफ से ही नहीं, भाजपा के अंदर भी है. मराठा सीएम के दांव ने देवेंद्र फडणवीस के सामने मुश्किलें खड़ी कर दी है. हालांकि उन्हें पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ आरएसएस का भी आशीर्वाद प्राप्त है.
नई दिल्ली. महाराष्ट्र के महारण में बेशक महायुति ने तीन चौथाई सीटें हासिल कार ऐतिहासिक जीत दर्ज की हो लेकिन एक हफ्ते बीत जाने के बाद भी सरकार का गठन नहीं हो पाया है. कार्यवाहक सीएम एकनाथ शिंदे के सतारा जाते ही अटकलें लगने लगी कि वह नाराज हैं लेकिन अंदर की खबरें छनकर जो बाहर आई है उसके मुताबिक सबसा बड़ा पेंच भाजपा के अंदर है. दूसरा पेंच मंत्रालय के बंटवारे को लेकर है.
सूत्रों के मुताबिक आरएसएस, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का आशीर्वाद होते हुए भी देवेंद्र फडणवीस को सीएम कुर्सी हासिल करने के लिए नाको चने चबाने पड़ रहे हैं. जितनी देरी हो रही है उतने ही दावेदार उभर रहे हैं. पार्टी में एक तबका ऐसा है जो मराठा, दलित और ओबीसी सीएम की वकालत कर रहा है. तर्क यह दिया जा रहा है कि महाराष्ट्र और मुंबई में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव में मराठा चेहरा काफी काम करेगा. बृहस्पतिवार की रात अमित शाह और महाराष्ट्र के तीन नेताओं देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे व अजित पवार की मुलाकात से एक दिन पहले भाजपा महासचिव विनोद तावड़े की अमित शाह से लंबी बैठक हुई थी.
बताते हैं कि उसमें मराठा सीएम को लेकर बात हुई थी. भाजपा केंद्रीन नेतृत्व ठोक बजाकर यह देख लेना चाहता है कि शिंदे को सीएम न बनाने और ब्राह्मण चेहरा फडणवीस को सत्ता के शीर्ष पर बिठाने से कोई राजनीतिक नुकसान तो नहीं होगा. उसी क्रम में तावड़े से लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले का नाम लिया जा रहा है. हालांकि विनोद तावड़े पैसे बांटने को लेकर विवादों में आ चुके हैं और उनकी संभावना बहुत कम है.
दूसरा पेंच मंत्रालयों को लेकर है, कार्यवाहक सीएम एकनाथ शिंदे जैसे ही सतारा स्थित अपने गांव के लिए निकले नाराजगी की खबरें आने लगी लेकिन इसमें ज्यादा दम नहीं है. लोकतंत्र संख्याबल से चलता है, शिंदे जानते हैं कि संख्याबल भाजपा के साथ है इसलिए उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस करके ऐलान कर दिया था कि पीएम मोदी जो भी फैसला करेंगे वह उन्हें मान्य होगा. वही डिप्टी चीफ मिनिस्टर बनेंगे या नहीं यह तो स्पष्ट नहीं है लेकिन एक बात जरूर है कि वह चीफ मिनिस्टर पद का त्याग कर उसका मुआवजा वसूलना चाहते हैं.
इसी क्रम में डिप्टी चीफ मिनिस्टर पद के साथ वह गृह और वित्त जैसे मंत्रालय, केंद्र में एक मंत्री पद और विधान परिषद का अध्यक्ष पद मांग रहे हैं. जबकि भाजपा गृह और वित्त मंत्रालय अपने पास रखना चाहती है. शिंदे समर्थकों का तर्क है कि जब वह सीएम थे तब गृह मंत्रालय फडणवीस के पास व वित्त अजित पवार के पास था लिहाजा उनकी दावेदारी स्वभाविक है.
अमित शाह के साथ बैठक में मंत्रालयों पर चर्चा अधूरी रह गई थी और इसे मुंबई में बैठकर सुलझाने को कहा गया. अब देखना यह है कि जो भी समझौते का फार्मूला निकलता है उसमें कौन कितना त्याग करता है. जहां तक विधायक दल का नेता चुनने और महायुति की बैठक की बात है वह शनि अमवस्या के बाद होगी और सब कुछ ठीक रहा तो शपथ ग्रहण 5 दिसंबर को हो सकता है. सूत्रों के मुताबिक भाजपा इस बात के लिए तैयार है कि शिंदे की पार्टी से 11-12 मंत्री और अजित पवार की एनसीपी कोटे से 8-10 मंत्री बनें. इस हिसाब से भाजपा के कोटे से 20-22 मंत्री बन पाएंगे. नियम के मुताबिक 288 विधायकों वाले महाराष्ट्र में सीएम सहित कुल 43 मंत्री बन सकते हैं.
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