नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा और जम्मू कश्मीर चुनाव के नतीजों ने पूरे देश को चौंका कर रख दिया था. कश्मीर का मिजाज अलग है लेकिन हरियाणा का रिजल्ट किसी को समझ में नहीं आया. खूब हाय तौबा मची, मामला चुनाव आयोग तक गया लेकिन परिणाम आने के बाद जब तक कोई तथ्य और आधार न हो कुछ नहीं होता.
चुनावी पंडितों ने सीएम योगी के नारे बंटेंगे तो कटेंगे और जाट बनाम नान जाट की लड़ाई को जिम्मेदार ठहराया. अब जबकि महाराष्ट्र और झारखंड के नतीजे आ रहे हैं तो एक बार फिर भाजपानीत एनडीए आगे निकलता हुआ दिख रहा है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि अब राहुल बाबा का क्या होगा. लोकसभा चुनाव में उन्होंने जोर शोर से जाति जनगणना, संविधान की रक्षा का मुद्दा उठाया था और वो चला भी था लेकिन इन चुनावों में ये मुद्दे फुस्स होते दिख रहे हैं.
राहुल गांधी ने अपनी चुनाव सभा में समानता, एक व्यक्ति एक वोट, हर धर्म, हर जाति राज्य तथा भाषा के लिए सम्मान की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि संविधान में सावित्रीबाई फुले और महात्मा गांधी की आवाज है. वो ये बात जोर शोर से उठाते रहे हैं कि भाजपा और संघ संविधान पर हमला कर रहे हैं, ये देश की आवाज पर हमला है. उन्होनें जाति जनगणना की बात भी शिद्दत से उठाई और कहा कि इसे कराकर रहेंगे. दलितों, ओबीसी और आदिवासियों का हक दिलाकर मानेंगे. इसी क्रम में उन्होंने यह भी कहा कि 50 फीसद आरक्षण के कैप को तोड़ देंगे. चुनाव के अंतिम दौर में अडानी और पीएम मोदी को जोड़ना नहीं भूले.
आपको बता दें कि महाराष्ट्र में दलित 12 फीसद, ओबीसी 38 फीसद, आदिवासी 9 फीसद और मराठा लगभग 28 फीसद हैं. नागपुर जहां आरएसएस का मुख्यालय है वहां कहा कि संघ छुपकर संविधान पर हमला कर रहा है. सीधे वार करने की उनमें हिम्मत नहीं है. उन्हें पता है कि सामने से हमला करेंगे तो हार जाएंगे. राहुल गांधी ने लोकसभा में भी यही दांव खेला था, तब कांग्रेस को देश में 100, महाराष्ट्र में गठबंधन को 30, कांग्रेस को 13 और भाजपा को महज 8 सीटें मिली थी.
लोकसभा चुनाव की हार से भाजपा ने बहुत कुछ सीखा था, उसने समझ लिया था कि विपक्ष खासतौर से कांग्रेस और राहुल गांधी ने जाति जनगणना का जो मुहिम छेड़ा है उसका जवाब हिंदुओं की एकजुटता ही हो सकती है लिहाजा यूपी सीएम योगी ने हरियाणा चुनाव में बंटेंगे तो कटेंगे का नारा दिया था उसे ही थोड़ा सुधार कर पीएम मोदी ने एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे कर दिया. साथ में यह भी जोड़ दिया कि कांग्रेस समाज को बांटना चाहती है. इसी दौरान हिंदू-मुस्लिम के मुद्दे गरमा दिये गये. एनसीपी नेता अजित पवार ने इन नारों का विरोध किया लेकिन संघ और भाजपा के पास जानकारी थी कि यह मुद्दा काम कर रहा है लिहाजा इसे और तेज कर दिया और अब उसका नतीजा सामने आ रहा है.
स्वभाविक रूप से इन नतीजों से विपक्ष खासतौर से राहुल गांधी को धक्का लगेगा और सोचना पड़ेगा कि अगले साल होने वाले दिल्ली व बिहार के चुनाव में कौन सी चाल चली जाए कि पासा सही बैठे.
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