West Bengal politics of violence Loksabha Election 2019: 2019 लोकसभा चुनाव के छह दौर पूरे हो चुके हैं. पश्चिम बंगाल से इस दौरान दो खबरें प्रमुखता से आईं. पहली पश्चिम बंगाल में हुई बंपर वोटिंग और दूसरी पश्चिम बंगाल में फिर हुई चुनाव में हिंसा. एक तरफ बंपर वोटिंग जहां लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है तो वहीं लगातार बढ़ती चुनावी हिंसा एक बड़ा खतरा भी. आइए समझने की कोशिश करते हैं बंगाल की राजनीति और हिंसा का रिश्ता क्या है.
कोलकाता. पश्चिम बंगाल की सियासत देश की राजनीति से अलग राह अख्तियार करती आई है. 2019 लोकसभा चुनावों में भी यह चलन देखने को मिल रहा है. एक और चलन जो बंगाल को बाकी देश से अलग करता है वह है राजनीति और हिंसा का गहरा संबंध. तीन दशक से ज्यादा समय तक रहे कम्युनिस्ट शासनकाल हो या अब ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और भाजपा की लड़ाई. 2019 लोकसभा चुनाव के छह दौर पूरे हो चुके हैं. पश्चिम बंगाल से इस दौरान दो खबरें प्रमुखता से आईं. पहली पश्चिम बंगाल में हुई बंपर वोटिंग और दूसरी पश्चिम बंगाल में फिर हुई चुनाव में हिंसा. एक तरफ बंपर वोटिंग जहां लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है तो वहीं लगातार बढ़ती चुनावी हिंसा एक बड़ा खतरा भी. आइए समझने की कोशिश करते हैं बंगाल की राजनीति और हिंसा का रिश्ता क्या है.
एक नजर लोकसभा चुनाव 2019 के छह चरणों में पश्चिम बंगाल में मतदान प्रतिशत और हिंसा पर
पहला चरणः 83.80% मतदान. अलीपुरदुआर और कूच बिहार पर टीएमसी और भाजपा समर्थकों में हिंसा हुई. कई बूथों पर मतदान धीमा रहा. टीएमसी समर्थकों ने लेफ्ट फ्रंट प्रत्याशी गोविंदा राय पर हमला किया. उनकी गाड़ी तोड़ी.
दूसरा चरणः 81.72% मतदान. रायगंज के इस्लामपुर में सीपीआई-एम सांसद मो. सलीम की कार पर टीएमसी समर्थकों पत्थरों और डंडों से हमला किया.
तीसरा चरणः 81.97% मतदान, हिंसा की 1500 शिकायत चुनाव आयोग को मिली. बूथों पर बमबाजी हुई. सीपीएम समर्थकों पर हमला. मुर्शिदाबाद में 56 वर्षीय कथित कांग्रेस समर्थक की टीएमसी समर्थकों ने पीट-पीटकर हत्या कर दी. कोलकाता में 60 लोग गिरफ्तार हुए.
चौथा चरणः 82.84% मतदान. आसनसोल में टीएमसी कार्यकर्ताओं और सुरक्षाबलों में जमकर झड़प. कुछ टीएमसी कार्यकर्ताओं ने सांसद बाबुल सुप्रियो की कार का शीशा तोड़ दिया.
पांचवा चरण: पिछले चार चरणों की तरह पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक मतदान हुआ. वहां 74.15 प्रतिशत मतदाताओं ने मत डाले. चुनाव आयोग के अनुसार पश्चिम बंगाल में हिंसा की छिटपुट घटनाओं को छोड़कर मतदान शांतिपूर्ण रहा.
छठा चरण: रविवार को हो रहे छठे चरण के मतदान से पहले शनिवार रात झारग्राम में बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या की गई है, तो वहीं मरधारा के कांठी में टीएमसी कार्यकर्ता को मारा गया है. टीएमसी के सुधाकर मैती रविवार रात से ही गायब थे, लेकिन बाद में उनका शव मिला. बताया जा रहा है कि देर रात को वह किसी रिश्तेदार से मिलने जा रहे थे लेकिन वापस ही नहीं लौटे.
हालांकि, ये हत्या कब, कैसे और किसने की है इसकी पूछताछ अभी भी जारी है. इसके अलावा बंगाल की बहुचर्चित पूर्व IPS ऑफिसर और घाटल सीट से बीजेपी प्रत्याशी भारती घोष ने आरोप लगाया है कि टीएमसी कार्यकर्ताओं ने उनके साथ बदतमीजी की है. उन्होंने आरोप लगाया है कि केशपुर में टीएमसी कार्यकर्ताओं ने उनके साथ बदसलूकी की. TMC कार्यकर्ताओं ने भारती घोष की गाड़ी पर भी हमला कर दिया.
West Bengal: Vehicles in BJP Candidate from Ghatal, Bharti Ghosh's convoy vandalized. BJP has alleged that TMC workers are behind the attack pic.twitter.com/xdsJNkKhV8
— ANI (@ANI) May 12, 2019
30 साल में 28 हजार राजनीतिक हत्याएं हुई हैं बंगाल में
पश्चिम बंगाल विधानसभा के एक जवाब के मुताबिक 1977 से 2007 तक (लेफ्ट फ्रंट की सत्ता) 28,000 राजनीतिक हत्याएं हुई थीं. सिंगूर और नंदीग्राम का आंदोलन भी हिंसा का एक नमूना है. लेकिन बहुत सारी घटनाएं तो ऐसी होती हैं, जो रिपोर्ट ही नहीं हो पातीं. हाल ही में पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत स्तर के चुनावों में भी बहुत हिंसा हुई थी. इस हिंसा पर देश भर ने चिंता व्यक्त की थी.
क्यों हिंसक है बंगाल की राजनीति
केरल के बाद पश्चिम बंगाल देश में दूसरा ऐसा सूबा था जहां वामपंथ फला-फूला. लगभग चार दशकों तक पश्चिम बंगाल में लेफ्ट राजनीति के सेंटर में रही. इस दौरान सत्ता पर एक दल का एकाधिकार जैसा था. ज्योति बसु बंगाल के बेहद लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे. लेकिन इसी दौरान सत्ताधारी दल और विपक्षी पार्टियों के संबंध बिगड़ते गए.
70 के दशक में बंगाल से ही नक्सल आंदोलन भी शुरू हुआ जिसने बाद में हिंसक स्वरूप ले लिया. बंगाल की राजनीति में नक्सलियों की भूमिका ने भी इसे हिंसक स्वरूप देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. पहले वाम दल और कांग्रेस के बीच हिंसक झड़पें होती थीं. इसके बाद वाम दलों और तृणमूल के बीच सत्ता का संघर्ष हिंसक हुआ.
बंगाल की सियासी हिंसा में नया किरदार भारतीय जनता पार्टी का है. पिछले कुछ वर्षों में बीजेपी ने बंगाल में अपनी पैठ जमाई है. ऐसे में अब हिंसक संघर्ष तृणमूल और बीजेपी/आरएसएस के बीच है. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच बिगड़ते संबंधों ने भी हिंसा की आग में घी डालने का काम किया है.
गौरवशाली अतीत समेटे हुए है पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल कभी भारत की कला-संस्कृति से लेकर सियासत तक का केंद्र था. कलकत्ता एक जमाने में देश की राजधानी थी. आजादी की लड़ाई के दौरान बंगाल से नेताजी सुभाष चंद्र बोस बगावत के सबसे बड़े झंडाबरदार थे तो गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर पूरी दुनिया में संगीत और काव्य के पुरोधा माने गए. स्वामी विवेकानंद ने भारत की आध्यात्मिक चेतना का लोहा दुनिया को मानने पर मजबूर कर दिया. इसी बंगाल में जब बंटवारे के दौरान हिंसा भड़क गई तो महात्मा गांधी अकेले यहां आ गए.
उन्होंने हिंसा रोकने के लिए आमरण अनशन कर दिया. एक तरफ जहां पूरे देश में हिंसा की आग में लाखों जिंदगियां झुलस गई बंगाल बचा रहा. उसने गांधी के जीवन को कीमती समझा और हिंसा को छोड़ दिया. अंग्रेज वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने लिखा था, ” पंजाब में हमारी डेढ़ लाख की फौज भी हिंसा नहीं रोक पाई लेकिन बंगाल में एक अकेले गांधी ने हिंसा रोक दी.” आज उसी बंगाल को हिंसक राज्य के तौर पर पहचान मिल रही है. यह निश्चित तौर पर उस बंगाल के लिए अच्छी बात तो नहीं जो अपनी कला-संस्कृति और मधुरता के लिए जाना जाता रहा है.