Akhilesh Yadav SP Nishad Party Gorakhpur Loksabha: लोकसभा चुनाव 2019 से ठीक पहले अखिलेश यादव की सपा-मायावती की बसपा और अजीत सिंह की आरएलडी का साथ छोड़कर निषाद पार्टी बीजेपी का हाथ थामने जा रही है. इसी को लेकर निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद ने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात भी की है. अब सपा के लिए यह झटका जरूर है लेकिन समाजवादी पार्टी के मुखिया हार नहीं माने हैं.
लखनऊ. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को उस समय झटका जरूर लगा होगा, जब निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद ने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की. जिसके बाद राजनीतिक गलियारों में बात फैल गई कि सपा-बसपा और आलरएलडी गठबंधन में शामिल हुई निषाद अब बीजेपी का हाथ थामने जा रही है. दरअसल, निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण गोरखपुर से सपा पार्टी से सांसद है. ये वहीं प्रवीण निषाद हैं जिन्होंने साल 2018 हुए उपचुनाव में योगी आदित्यनाथ की परंपरागत सीट गोरखपुर पर भाजपा के प्रत्याशी को पटखनी दी थी.
समाजवादी पार्टी इस बार पर भी गोरखपुर से प्रवीण निषाद को अपना प्रत्याशी बनाने जा रही थी लेकिन आखिरी मौके पर सबकुछ पलट गया. लेकिन अखिलेश यादव भी राजनीति के पत्तों के मंजे हुए खिलाड़ी हैं और इसका उदाहरण उन्होंने गोरखपुर सीट पर अपने नए प्रत्याशी राम भुआल निषाद को उतारकर दिया. हालांकि राम भुआल के साथ-साथ पार्टी ने कानपुर से राम कुमार को अपना उम्मीदवार घोषित किया है.
— Samajwadi Party (@samajwadiparty) March 30, 2019
क्या राम भुआल निषाद बनेंगे अखिलेश यादव का तुरुप का इक्का
उप चुनाव में योगी आदित्यानाथ के गढ़ गोरखपुर में बीजेपी उम्मीदवार को हराने वाले प्रवीण निषाद अब भाजपा के टिकट पर इसी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. शायद यह बात अखिलेश को भी पता थी जो उन्होंने निषाद को निषाद से काटने की चाल चली, जो अगर काम कर गई तो गठबंधन के लिए यह जीतना काफी आसान भी हो सकता है.
दरअसल, उत्तर प्रदेश में उम्मीदवारों को जातिगत वोट मिलने का पुराना अनुमान रहा है. अगर निषाद पार्टी के प्रवीण को बीजेपी गोरखपुर से टिकट देती है तो उनकी सीधी टक्कर गठबंधन के राम भुआल निषाद से होगी. दोनों एक ही जाति हैं तो हो सकता है मतदाता भी बंट जाए.
राम भुआल निषाद सपा में निषाद समुदाय के एक बड़े चेहरे हैं और गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा बनने के पूर्व कौड़ीराम सीट से विधायक रहे हैं. इसके साथ ही वे मायावती की बसपा सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. और इनकी निषाद समाज में अच्छी पकड़ भी मानी जाती है.
अगर सपा के निषाद उम्मीदवार अपनी ही जाति के वोटर्स को लुभा पाए तो बीजेपी के लिए फिर से गोरखपुर जीतना मुश्किल हो जाएगी. क्योंकि गठबंधन को यकीन है कि दलित, यादव और मुस्लिम वोट बैंक करीब-करीब उनके पास है. ऐसे में जब गोरखपुर सीट पर जातिय समीकरण बनेंगे तो गठबंधन के लिए जीत की डगर सरल बनती चली जा सकती है.
निषाद पार्टी ने क्यों छोड़ा SP-BSP-RLD गठबंधन का साथ
सूत्रों की मानें तो हाल ही में गठबंधन में शामिल निषाद पार्टी सपा के साथ सीट बंटवारे से खुश नहीं थी. दरअसल निषाद पार्टी की मांग थी कि वह महाराजगंज लोकसभा सीट से अपने टिकट प्रत्याशी उतारे. लेकिन अखिलेश यादव इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे, जिसके बाद यह कलह और बढ़ गई.
बात इतनी जा पहुंची कि निषाद पार्टी के मुखिया गठबंधन का साथ छोड़कर यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ से मिलने पहुंच गए. हालांकि इस मुलाकात के बाद सीएम योगी या संजय निषाद की ओर से कुछ बयान तो नहीं आया लेकिन साफ हो गया कि निषाद पार्टी के इस कदम से पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल जरूर मचेगी.