Loksabha Election 2019: लोकसभा चुनाव 2019 आने में सिर्फ कुछ समय ही बाकी है लेकिन यूपी में राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन के मूड में नहीं है. महागठबंधन न करने के ये तीन बड़े कारण हो सकते हैं.
लखनऊ. लोकसभा चुनाव 2019 दहलीज पर आ खड़ा हुआ है लेकिन उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी का सपा-बसपा और आएलडी के साथ महागठंबधन की स्थिति साफ नहीं है और आसार अब न के ही नजर आ रहे हैं. इसका ताजा उदाहरण कांग्रेस के वेस्ट यूपी प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया का बयान है जिन्होंने गठबंधन के कयासों को खारिज कर घी में आग डालने का काम कर दिया. हालांकि अखिलेश यादव अब भी कांग्रेस के इनकार में गठबंधन की उम्मीद तलाश रहे हैं, इसलिए वे कई बार कह भी चुके हैं कि कांग्रेस गठबंधन में शामिल है.
सूबे में स्थिति को देखकर कई बार तो महसूस होता है कि महागठबंधन कम और बीरबल की खिचड़ी ज्यादा पक रही है. गौर करने वाली बात है कि कांग्रेस से गठबंधन को लेकर सिर्फ अखिलेश ही जोर लगाते दिख रहे हैं, उनकी राजनीतिक बुआ यानी मायावती तो चुप्पी साधे बैठी हैं. कुछ समय पहले मायावती कांग्रेस को लेकर बोलीं तो पार्टी की कमियां गिनाई लेकिन महागठबंधन को लेकर कोई बात नहीं की. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि सपा-बसपा के गठबंधन में कांग्रेस को शामिल न होने पर नुकसान हो सकता है और नरेंद्र मोदी की भाजपा को फायदा. कांग्रेस भी इस बात को अच्छी तरह समझती है लेकिन समझौते के लिए तैयार नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि सबकुछ जानकार भी इसके नतीजों से क्यों अंजान है कांग्रेस?
प्रियंका गांधी से ज्यादा उम्मीद तो नहीं लगा रही कांग्रेस
कुछ समय पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी की पार्टी में ऑफिशियल एंट्री हो चुकी है. उन्हें महासचिव नियुक्त करते हुए लोकसभा चुनाव के लिए पूर्वी यूपी का प्रभार सौंपा गया है, वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया को वेस्ट यूपी प्रभारी बनाया गया है. जब से प्रियंका को यह जिम्मेदारी मिली तब से यूपी में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में दम आ गया है. वे प्रियंका में उनकी दादी इंदिरा गांधी को खोजने लगे हैं, लेकिन वो जमाना कुछ और था ये कुछ और है.
प्रियंका गांधी खुद इस बात को कह चुकी है कि उनके आने से कोई जादू नहीं हो जाएगा. लेकिन कांग्रेस के कार्यकर्ता इस बात को मान ही नहीं रहे हैं. दरअसल यूपी में ग्राउंड स्तर पर कांग्रेस का कैडर ज्यादा मजबूत नहीं है. इसलिए ये सोचना कि प्रियंका के आने से जीत मिलेगी तो यह सोच गलत भी साबित हो सकती है.
सपा-सपा का छोटा भाई नहीं बनना चाहती कांग्रेस
करीब 60 साल देश में सत्ता चलाने वाली कांग्रेस को उसके गृह राज्य में सिर्फ 2 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऑफर शायद थोड़ा कम हो सकता है. हाल ही में मिली तीन राज्यों में जीत से राहुल गांधी के हौंसले बुलंद हैं और वे किसी के सामने झुककर चुनाव नहीं लड़ना चाहते. ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि उनके रवैये से लग रहा है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो गठबंधन न करने से इतने खफा हो गए कि कांग्रेस को बीजेपी का ऐजेंट तक कह डाला लेकिन राहुल गांधी को कोई फर्क नहीं पड़ा.
दिल्ली की तरह ही वे यूपी में करते नजर आ रहे हैं. यूपी की 80 सीटों में से सपा 37 और बसपा 38 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. तीन सीटों पर आरएलडी भी चुनाव लड़ेगी, जबकि अमेठी और रायबरेली की सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दी है जिसका जिक्र करते हुए अखिलेश यादव कई बार नजर आ चुके हैं. सूत्रों की मानें तो अखिलेश ने कांग्रेस को 10 सीटें देने तक का फैसला कर लिया था लेकिन कांग्रेस यूपी में बराबरी का हक चाहती है. सपा-बसपा से दूरी की यह भी एक बड़ी वजह हो सकती है.
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मिली जीत से बढ़ा राहुल का आत्मविश्वास
जबसे राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद संभाला है, तबसे उनका रिपोर्ट कार्ड ज्यादा खराब नहीं रहा. गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अच्छा परफोर्म किया, वहीं कर्नाटक में जोड़-तोड़ कर जेडीएस के साथ मिलकर कांग्रेस ने सरकार बनाई. जिसके बाद साल 2018 में हुए राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के चुनाव में राहुल गांधी ने काफी रैलियां की, मंदिर-मंदिर घूमे, अपना धर्म भी बताया और सिक्का चल गया. तीनों राज्यों में राहुल को जीत मिली और उनके आत्मविश्वास को बढ़ावा. इसके बाद से राहुल गांधी लगातार नरेंद्र मोदी सरकार पर हमलावर हो रहे हैं. जमकर रैलियां कर रहे हैं और 2019 में यूपीए की वापसी का ऐलान कर रहे हैं.
फिलहाल चुनाव के नतीजों के बाद ही स्थिति साफ हो पाएगी. इस आर्टिकल में लिखे गए विचार लेखक के हैं. इन विचारों से इनखबर का कोई लेना-देना नहीं है.
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