दिल्ली विधानसभा चुनाव हारते ही विरोधियों के साथ साथ अपने भी अरविंद केजरीवाल को आंख दिखाने लगे हैं. पंजाब में 20 विधायक बगावत के मूड में बैठे हैं तो दिल्ली में नेता विपक्ष चुनना आप प्रमुख के लिए मुश्किल हो गया है.
नई दिल्ली. आम आदमी पार्टी और उसके प्रमुख अरविंद के लिए ये परीक्षा की घड़ी है. दिल्ली विधानसभा चुनाव हारते ही विरोधियों के साथ साथ अपने भी आंख दिखाने लगे हैं. पार्टी की पंजाब यूनिट में चल रही गुटबाजी थामने के लिए उन्होंने अपने सभी विधायकों के साथ बैठक की और समझाया कि अभी नहीं संभले तो दिल्ली की तरह 2027 में पंजाब की सत्ता हाथ से निकल जाएगी. उधर दिल्ली की हार को लेकर मंथन चल ही रहा था कि नेता विपक्ष को लेकर खींचतान शुरू हो गई है. पार्टी के बड़े नेता अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सतेंद्र जैन व सौरभ भारद्वाज चुनाव हार चुके हैं. इनमें से कोई जीता होता तो अरविंद केजरीवाल को दिक्कत नहीं होती.
बड़े नेताओं में आतिशी और गोपाल राय चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. आतिशी सीएम की कुर्सी संभाल रही थी और गोपाल राय मंत्री की. आतिशी ने रमेश विधूड़ी जैसे नेता को हराया है लिहाजा नेता विपक्ष पर उनकी दावेदारी बनती है. पहले मंत्री और बाद में मुख्यमंत्र के रूप में केजरीवाल ने उन पर काफी भरोसा जताया था लेकिन खबर है कि गोपाल राय भी चाहते हैं कि उन्हें नेता विपक्ष बनाया जाए.
हालांकि उनकी दावेदारी उतनी मजबूत नहीं है क्योंकि वह पार्टी के दिल्ली यूनिट के संयोजक हैं. इन दोनों के अलावा बुराड़ी से जीते संजीव झां और कोंडली से जीते अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाल कुलदीप कुमार भी चाहते हैं कि मौका मिले तो वह कुछ करके दिखाएं. संजीव झा पूर्वांचल के चेहरा हैं और अपनी बात को हर मंच पर मजबूती से रखते हैं.
भाजपा के बारे में माना जाता है कि कहीं पर भी हार के बाद वह तुरंत तैयारी में जुट जाती है और यदि जीतती है तो अपने को और मजबूत बनाने के लिए काम करने लगती है. किसी भी सूरत में वह चैन से नहीं बैठती है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा 70 में से 48 सीटें यानी दो तिहाई बहुमत हासिल करने में कामयाब हुई है लेकिन उसे इतने से संतुष्ट नहीं है. आप को डर है कि पार्टी में ज्यादा खींचतान होगी तो इसका लाभ भगवा पार्टी उठा लेगी. सत्ता संभालने के बाद भाजपा उनके कुछ विधायकों पर डोरे डाल सकती है लिहाजा केजरीवाल को सबको विश्वास में लेकर समय रहते फैसला करना होगा.
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